नंदी.... प्रतीक्षा का #1EK प्रतीक
जहां पर शिवलिंग... वहां पर नंदी जरूर दिखाई पड़ते हैं। नंदी.... अर्थात शिव के सबसे प्रिय। पुराणों के अनुसार, वे शिव के वाहन तथा अवतार भी हैं जिन्हे बैल के रूप में शिवमंदिरों में प्रतिष्ठित किया जाता है। संस्कृत में 'नन्दि' शब्द का अर्थ प्रसन्नता या आनंद है। नंदी को शक्ति-संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है। इसके विपरीत समाज में काम में तल्लनीता से जुटे व्यक्ति को ‘बैल’ कह देना बड़ा आसान रहा है। इसी से मुहावरा बन गया कोल्हू का बैल...। ‘बैल’ शब्द का पर्याय नंदी भी है.. लेकिन बुद्धिजीवियों ने इन दोनों में भी अंतर खोज निकाले हैं...! लेकिन यहां ‘बौद्धिकता’ पर नहीं... ‘सरलता’ के संबंध में चर्चा है...!
जहां तक अध्ययन की बात है तो एक जगह पढ़ा था कि नंदी.... प्रतीक्षा के #1EK प्रतीक हंै। वह सजग है लेकिन सुस्त नहीं। वह आलसी की तरह नहीं बैठे हैं। वह सक्रिय हैं और सजगता से बैठे हैं लेकिन उन्हें कोई उम्मीद नहीं है या वह कोई अंदाजा नहीं लगाते। यही ध्यान है। वह यह संदेश देते हैं कि जीव को हमेशा परमेश्वर पर केंद्रित होना चाहिए। यौगिक दृष्टिकोण से कहा जाता है कि नंदी परम शिव को समर्पित मन है...!
जिस भी मंदिर में जाएंगे... शिवजी के साथ नंदी को पाएंगे लेकिन...। अहं ब्रह्मास्मि... अर्थात मैं ब्रह्म हूं... और ब्रह्म ही भ्रम है... इसे जितनी सरलता से समझा जा सकता है... यह उतना ही दुष्कर भी है। धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में स्थित कालेश्वर महादेव का संभवतः अकेला ऐसा मंदिर है, जहां शिवलिंग के सामने नंदी नहीं मिलते। मान्यता है कि त्रेतायुग में लंकापति रावण और उसके पुत्र मेघनाथ ने यहां शिव की तपस्या करके अकाल मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी। रावण के प्रार्थना करने पर शिवजी ने यहां पर नंदी को भी अपने से दूर कर दिया था। इससे समझा जा सकता है कि न दुनिया में कोई अंतिम सत्य है और जरूरी नहीं है जो हम देख, समझ, सुन या महसूस कर रहे हो, वहीं अंतिम सत्य हो।
शास्त्रों में कहा गया है- शिवम् ज्ञानम् ... और इसका अर्थ है.. शिव ही ज्ञान है। और ज्ञान ही शिव है। जीवन का गणित भी कुछ इसी प्रकार है। गणित में #1EK (एक) से शुरुआत होती है और फिर दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ और नौ अंक तक यह गिनती पहुंचती है। नौ सर्वाधिक श्रेष्ठ और पूर्ण अंक माना जाता है लेकिन जैसे ही #1EK के साथ शून्य लगता है तो वह नौ से बढ़ा बन जाता है। देखा जाए तो शून्य की कीमत कुछ नहीं मानी गई है, जैसे समाज का आम आदमी लेकिन जैसे ही वह किसी व्यक्ति से जुड़ना शुरू होता है.... तो वह व्यकि्त खास बनने की राह पर चल पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहे तो सेलिब्रिटी बन जाता है। तभी शायद कहा जाता है वही शून्य है, वही इकाय, जिसके भीतर बसा शिवाय...!
इसी क्रम में रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने एक दोहा लिखा है- ‘‘सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहहु मुनिनाथ, हानि लाभ जीवन मरन जस अपजस विधि हाथ।’’ अर्थात ...हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश व अपयश ये छह वस्तु भगवान के हाथ में होती हैं। ये मनुष्य के हाथ में नहीं... #1EK इत्तफाक और सारा परिदृश्य बदल जाता है...! प्रभु श्रीराम के राजा बनने की घोषणा हुई लेकिन अगले दिन वह राजा की जगह वनवासी बन गए थे...! अपने जीवन के भीतर झांक कर आप भी देखिए... कोई न कोई ऐसा वाक्या जरूर होगा कि उस घटनाक्रम ने आपका जीवन बदल दिया होगा। एक ही क्लास में पढ़ने वाले तमाम बच्चों का जीवन... समय के साथ उन्हें अलग-अलग जगह पहुंचा देता है...!
आप मेरी बात का विरोध करने के लिए स्वतंत्र हैं... यह स्वतंत्रता मैं आपको स्वयं देता हूं...! विरोध करना दरअसल... हममें से ज्यादातर का स्वभाव बन गया है। हम जैसे ही किसी व्यक्ति या विचारधारा आदि से खुद का तारतम्य नहीं बना पाते तो उसका विरोध करने लगते हैं। कई बार गलत चीजों को मजबूरी में हम सहते भी जाते हैं... क्योंकि यही मानवीय प्रकृति है। #1EK उदाहरण सनातन धर्म भी है...जो इसे मानते हैं, उन्हें कोई बंदिश नहीं है लेकिन यदि आप किसी और पंथ को मानते हैं तो आप पर बंदिश थोप दी गई हैं लेकिन सनातन धर्म की कथित कमियां बताकर नए-नए पंथ जन्मे... सनातन की खूबसूरती है कि उसने सभी को स्वयं में समाहित किया क्योंकि वह निर्गुण के साथ सगुण को भी मानता है। दोनों को मानने वालों में #1EK महत्वपूर्ण समानता है कि वे आस्तिक हैं और ब्रह्म को किसी ना किसी रूप में मानते हैं। इसके बावजूद दुनिया में वैमनस्य क्यों फैला है... क्योंकि कोई नंदी बनना नहीं चाहता।
हम सभी के पास जीवनएक (#Zee1EK) है और इसका प्रारंभ कैसे हुआ... यह हम नहीं तय कर सकते थे लेकिन इसका प्रारब्ध बेहतर बनाने का प्रयास जरूर कर सकते हैं। तभी वसुधैव कुटुंबकम सही मायने में सच साबित हो सकता है।
Dr. Shyam Preeti
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