#1EK ध्येय ः उठो और जागो और तब तक रुको नहीं...
देश में विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है और इस मौके पर उनके विचारों को याद करना प्रासंगिक है। वह कहते हैं- उठो और जागो और तब तक रुको नहीं...जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते...। जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी। #1EK समय में #1EK काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ...!
लेकिन #1EK बात हमें नहीं भूलनी चाहिए कि उन्होंने विश्वस्तर पर भारत को जो पहचान दी थी, वह उल्लेखनीय है। शिकागो के धर्म सम्मेलन में दिए गए उनके भाषणों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। अब आज के परिदृश्य की बात करते हैं... हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चलते हुए विश्व स्तर पर भारत को स्थापित करने में जुटे हुए हैं। और सबसे बड़ा इत्तफाक... दोनों के नाम भी नरेंद्र... है।
जी हां... विवेकानंद के बचपन का नाम भी नरेंद्र था... पूरा नाम- नरेंद्र नाथ दत्त... बाद में उन्हें विवेकानंद नाम मिला। कई लोगों का मानना है कि यह नाम उन्हें उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने दिया, लेकिन यह सत्य नहीं है। असल में नरेंद्र अमेरिकी यात्रा पर जाना चाहते थे लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। तब उनकी इस यात्रा का खर्च राजपूताना के खेतड़ी नरेश ने उठाया था। उन्होंने ही नरेंद्र को विवेकानंद नाम भी दिया। इसके बाद जब विवेकानंद शिकागो पहुंचे तो विवेकानंद हर जुबां पर छा गए थे। याद करें... उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत भाइयो और बहनों... शब्दों के साथ की। यही उनकी यूएसपी बना था।
अब बात करते हैं नरेंद्र मोदी की... वह भी भाइयों और बहनों... का भाषणों में जिक्र करते रहते हैं.... साथ में मित्रों भी...। #1EK अन्य इत्तफाक का जिक्र #1EK बार मोदी ने स्वयं किया था। उन्होंने कहा था 11 सितंबर को अमेरिका में हमले के लिए याद किया जाता है। इस दिन मानवता पर हमला हुआ था लेकिन #1EK सदी पहले 1893 में इसी दिन शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में #1EK भाषण देकर दुनिया को भारत के मानवीय मूल्यों से परिचित कराकर वसुधैव कुटुंबकम का संदेश दिया था।
पीएम मोदी ने स्वामी विवेकानंद के इस भाषण को याद करते हुए ट्विटर पर लिखा था- “11 सितंबर का स्वामी विवेकानंद से विशेष संबंध है। आज ही के दिन साल 1893 में उन्होंने शिकागो में अपना सबसे उत्कृष्ट भाषण दिया था। उनके संबोधन ने दुनिया को भारत की संस्कृति और लोचाकार की झलक दिखाई थी।”
सच है... स्वामी विवेकानंद ने बहुत ही कम उम्र में हिंदू धर्म और आध्यात्म की आधुनिक और प्रेरणादायक व्याख्या की थी और आज के परिप्रेक्ष्य में मोदी भी यही काम कर रहे हैं। वह हिंदू गर्व का प्रतीक बनकर उभरे हैं। साथ ही यह भी सत्य है कि वह कट्टरवाद के विरोधी के तौर पर भी दुनिया भर में प्रसिद्ध हो रहे हैं। कई सर्वे में लोकप्रियता के बढ़ते मानक इसे बता रही हैं। जैसे विवेकानंद युवाओं को आगे बढ़ने का संदेश देते थे, वैसे ही मोदी कहते हैं- "मैं चाहता हूं कि भारत के युवा कभी भी बिना किसी सवाल के किसी भी स्थिति को स्वीकार न करें। बहस करें। स्वस्थ बातचीत करें। चर्चा करें और फिर किसी नतीजे पर पहुंचें। स्वामी जी कभी भी यथास्थिति के लिए सहमत नहीं हुए।"
पीएम मोदी ने विवेकानंद के दिए एकजुटता के विचार पर बल देते हुए कहा, "मैंने इमरजेंसी के दिन देखे हैं। विभिन्न राजनीतिक मान्यताओं के बहुत सारे लोग थे - कांग्रेस से, आरएसएस से कई अन्य विचार वाले भी थे। लेकिन हम सभी राष्ट्रीय हित के एक साझा उद्देश्य से एकजुट थे। हम इसे रोजमर्रा की जिंदगी में भी देख रहे हैं। हमें लोकतंत्र में हेल्दी डिबेट को अवसरवाद से दूर रखना होगा।"
गौरतलब है कि स्वामी विवेकानंद की 125वीं जयंती पर पीएम मोदी ने स्वामी जी के '#1EK एशिया' के विचारों पर जोर देते हुए कहा था- "स्वामी विवेकानंद ने '#1EK एशिया' की अवधारणा दी थी। उन्होंने कहा कि दुनिया की समस्याओं का समाधान एशिया से आएगा।"
यदि देखा जाए तो यह कथन सच सबित हो रहा है। आज भारत की ताकत विश्व परिदृश्य पर लगातार बढ़ी है। इसी क्रम में मोदी ने कहा था कि आज दुनिया भारत को #1EK आशा की दृष्टि से, #1EK विश्वास की दृष्टि से देखती है क्योंकि भारत का जन भी युवा है और भारत का मन भी युवा है। भारत अपने सामर्थ्य से भी युवा है, भारत अपने सपनों से भी युवा है। भारत अपने चिंतन से भी युवा है, भारत अपनी चेतना से भी युवा है। उन्होंने कहा कि आज भारत के युवा में अगर टेक्नोलॉजी का चार्म है, तो लोकतंत्र की चेतना भी है। आज भारत के युवा में अगर श्रम का सामर्थ्य है, तो भविष्य की स्पष्टता भी है। इसलिए भारत आज जो कहता है, दुनिया उसे आने वाले कल की आवाज मानती है।
फ्लैशबैक में लौटते हैं...शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने कहा था- सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है। उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है। न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए। यदि ये खौफनाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज़्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है। लेकिन उनका वक्त अब पूरा हो चुका है। मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा... चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से...।
#1EK Dr. Shyam Preeti
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