#1EK फिल्म 'द केरल स्टोरी' ....
जब आप सिनेमा देखते हैं तो... और कहानी मन को भाने लगे तो आप सिर्फ देखते हैं... आपका दिमाग भी उसी कहानी के साथ खुद को जुड़ा हुआ पाता है... #1EK किरदार के तौर पर आप भी फिल्म का हिस्सा बन जाते हैं और... जब फिल्म खत्म होती है.. बोले तो The End.... तो आपको लगता है कि आपकी यात्रा पूरी हो गई और आप वापस अपनी जद्दोजहद की दुनिया में लौट आते हैं।
लेकिन जिंदगी में #1EK इत्तफाक भारी बदलाव ला सकता है, the keral story इसी प्रकार की कहानी है!
फिल्म की जैसी कहानी होती है... हमारे भाव भी वैसे ही हो जाते हैं... कभी हम हंसने लगते हैं तो कभी-कभी हमारी आंखों आंसू भी निकल जाते हैं... जीतता हीरो है और लगता है कि हम जीत गए। विलेन को कुटता देखने से लगता है कि हमारी ताकत दोगुनी हो गई है और हम दांत पीसते हुए.... लगता है कि हम ही उसे मार रहे हैं... यही है मनोरंजन की दुनिया...।
फिल्म सच में ब्लाइंड मीडिया है... खासकर जब आप सिनेमाघरों में होते हैं। वहां का अंधेरा हमें ऐसी दुनिया में ले जाता है जहां हम खो जाते हैं। #1EK खिड़की से निकल रहा प्रकाश हमें नए संसार की सैर करवा रहा होता है। अब मुद्दे की बात... आजकल फिल्म 'द केरल स्टोरी' जबरदस्त चर्चा में है। सनातन धर्म को मानने वालों की निगाह में यह सच्ची कहानी है... और तमाम राजनीतिज्ञ इसे झूठा बता रहे हैं। पांच मई को रिलीज हुई फिल्म कश्मीर फाइल्स की तरह ही विवादित हो चुकी है। राजनीतिक सरगर्मी का आलम यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक इस फिल्म की चर्चा अपने भाषण में कर चुके हैं। ऐसे में इस फिल्म की सफलता निश्चित कही जा रही है।
यहां पर बात सफलता और असफलता की नहीं है... बल्कि कहानी की है। निर्देशक सुदीप्तो सेन और निर्माता विपुल अमृतलाल शाह ने जिस कहानी पर दांव लगाया है... वह लोगों के दिमाग को झकझोर रही है। फिल्म का ट्रेलर आने के बाद से ही यह फिल्म चर्चा में आ गई थी। कहा जाता है कि सिनेमा जनमानस की विचारधारा को बदलने की ताकत रखता है... और मेरी निगाह में यह काफी हद तक सही भी है। तमाम ऐसी घटनाएं हुईं हैं, जो फिल्मों से प्रेरित रही हैं। ऐसे में इस फिल्म की कहानी ने जिस मुद्दे को उठाया है, वह काबिलेगौर है।
इस फिल्म में केरल की हजारों महिलाओं के जबरन धर्मांतरण कराने और उन्हें सीरिया भेजकर आईएसआईएस में शामिल करने के घटनाक्रम के कहानी के तौर पर पिरोया गया है। लेखकों में सूर्यपाल सिंह , सुदीप्तो सेन और विपुल अमृतलाल शाह के नाम हैं और कलाकार के तौर पर अदा शर्मा, योगिता बिहानी, सोनिया बलानी और सिद्धि इदनानी आदि शामिल हैं। विवाद का आलम यह रहा कि इस फिल्म की रिलीज को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दखलंदाजी करने से साफ मना कर दिया। नतीजा फिल्म रिलीज का रास्ता साफ हो गया और अब यह फिल्म थियेटरों में देखी जा रही है।
इस फिल्म पर केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी आपत्ति जाहिर की थी। उन्होंने इसकी कहानी को संघ परिवार की झूठ की फैक्टरी का उत्पाद बताया तो कांग्रेस ने इसे झूठ का पुलिंदा कहा है। कांग्रेसी नेता शशि थरूर और मुस्लिम लीग ने भी उस व्यक्ति को एक करोड़ रुपये इनाम तक देने की घोषणा कर दी है कि जो इस कहानी का सबूत दे दे। दरअसल, कहानी में पहले प्यार और धर्मांतरण के मुद्दे को इस तरह से दिखाया गया है कि यह फिल्म ट्रेलर से ही चर्चा में आ गई थी। हाल के वर्षों में #1EK शब्द लव जिहाद चर्चा में रहा है और इसी को साबित करने के लिए फिल्म की कहानी पुख्ता तौर पर आंखों के सामने से गुजरती है। इसके बाद वह कई सवाल छोड़ना शुरू करती है, जिसके जवाब आम जनमानस को तलाशने हैं। यदि यह कहानी सच्ची है तो इसे दुनिया को जरूर दिखाया जाना चाहिए...!
‘लव जिहाद’ शब्द को यह फिल्म सिरे से समझाना शुरू करती है तो कई बार दर्शक सिहर तक जाते हैं। फिल्म खत्म होने के बाद ऐसे तमाम परिवारों के लोगों के इंटरव्यू भी दिखाए गए हैं, जिनके साथ ऐसा सब हुआ है। कैसे हंसते खेलते #1EK परिवार की युवती अपनी संस्कृति, परिवार, रहन-सहन को त्यागकर अपनी पहचान तक बदल लेती है। यह ऐसा तानाबाना है, जिसने उसने नहीं बुना बल्कि किसी और ने था और वह मकड़ी की तरह इस जाले में फंसती चली गई। फिर वह खुद को सही समझना शुरू कर देती है और इस्लाम के कथित रहनुमाओं की देह की भूख मिटाने के लिए महज चारा बना दी जाती है। यह तथ्य ही दिल को झकझोरने वाला है।
फिल्म पीके जैसी तमाम फिल्मों में हिंदू धर्म की कथित बुराइयों को उजागर करने का साहस फिल्मकार करते आए हैं और विरोध के बावजूद ऐसी फिल्मों ने समाज को झकझोरा भी है। यदि अब इस्लाम की कमियों को लेकर फिल्में बनाई जा रही हैं तो इसके अनुयायियों को भी सहिष्णु होकर फिल्म देखनी चाहिए। हर कालखंड में कुछ न कुछ ऐसा होता रहा है कि वह विवाद का कारण बनता है। हाल के दौर में मुसि्लम महिलाओं के विरोध को भी सलाम करने को दिल करता है, जिन्होंने इसकी बुराइयों की ओर दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है। बात चाहे हिजाब की हो या हलाल जैसी प्रथा आदि की। सबसे ज्यादा चर्चा 72 हूरों की होती हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति जन्नत में जाता है, उन्हें ये 72 हूरें मिलती हैं। मरते समय उसकी उम्र कुछ भी हो, वहां 30 वर्ष का युवक हो जाएगा और उसकी आयु आगे नहीं बढ़ेगी लेकिन यदि महिला जन्नत गई तो उसे क्या और कितना मिलता है, इस पर कोई चर्चा नहीं करता? हूरे क्या हिजाब पहनती हैं?
लोगों के मुताबिक, यह भीतर तक सिहरा देने वाली कहानी है। जैसे-जैसे यह आगे बढ़ती है, दर्शक इससे जुड़ने लगे हैं। दिखावे के हमले, सहानुभूति और प्रेम जाल में युवतियां फंसती जाती हैं और यह जाल ऐसा बुना जाता है, जिसे तोड़ना वह नहीं चाहती। उन्हें हिंदू देवी-देवताओं आदि को गलत नजरिये से दिखाया जाता है... हिंदू धर्म में तो कहा भी जाता है कि ब्रह्म ही भ्रम है...दरअसल, जब हम ईश्वर या सत्य की बात करते हैं तो हम कई सारे विचारों, सिद्धांतों से खुद को जोड़ लेते हैं। कई बार यह जुड़ाव सही नहीं होता और #1EK मामूली-सा अंतर हमें ब्रह्म की जगह भ्रम से जोड़ सकता है। साफ है कि अज्ञानता और ज्ञान में बस जरा सा फर्क है। धार्मिक मामलों में भी यही होता है। कट्टरता यानी अड़ियल होना... खतरनाक है। फिर आप उसे बदल नहीं सकते और वह बदलना भी नहीं चाहता। गुस्ताखी माफ! इस्लाम के मानने वाले ज्यादातर लोगों की सोच ऐसी ही बना दी गई है।
नाम बदलने से किसी का किरदार नहीं बदलता लेकिन सोच बदलने से जिंदगी जरूर बदल सकती है और यही इस फिल्म की कहानी का सार है। कई लड़कियां जो हिंदू थी... मुस्लिमों के साथ प्यार करने के बाद उसी वेशभूषा में ढल गईं। ज्यादातर की कहानी का अंत बड़ा भयावह हुआ तो कई बेहतरीन जिंदगी भी जी रही हैं लेकिन ऐसी लड़कियों की संख्या काफी कम है। दोस्ती महत्वपूर्ण है लेकिन दोस्तों के किरदार को समझना भी जरूरी होता है। खुद को श्रेष्ठ बताना अच्छा है लेकिन दूसरे को नीचा दिखाना बहुत खराब होता है। जब हम किसी तर्क को अपने नजरिये से सही साबित करने पर तुल जाते हैं तो हम खुद-ब-खुद गलत साबित हो जाते हैं।
होली में हम गले मिलते हैं तो ईद में वे... बस अंतर इतना होता है कि उनके कपड़े साफ होते हैं और हमारे गंदे लेकिन हम विभिन्न रंगों से रंगे होने के बावजूद दिल अपना साफ करने पर जोर देते हैं और वे कपड़े साफ पहनकर दिल को गंदा रखते हैं। तर्कों को बस इसी नजरिये से यदि गढ़ा जाए तो सही को गलत और गलत को सही साबित किया जा सकता है लेकिन यह सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने वालों के लिए संजीवनी बन सकता है।
Dr. Shyam Preeti
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