हास्य.... सौ है तो गम #1EK शून्य ....
पता नहीं क्यों... हास्य से मुझे 'सौ' की ध्वनि सुनाई देती है... लगता है कि यही पूर्ण है पर हास्य जितना सुनने में आसान लगता है.. उतना समझना मुश्किल। लोग मुझे सीरियस कहते हैं जबकि मैंने तमाम व्यंग्य लिखे हैं। मेरे #1EK व्यंग्य संग्रह का नाम ही है- बजाओ घंटा विकास आ रहा है... लेकिन यह भी सच है कि व्यंग्य और हास्य में भेद है। मेरा स्पष्ट मानना है कि यही अंतर व्यंग्य पर हास्य की श्रेष्ठता बताता है! लेकिन सबसे बलवान समय है और यह मेरे साथ भी साबित हुआ।
कैसे... प्रस्तुत व्यंग्य संग्रह कोरोना के आगमन से ठीक पहले प्रकाशित होकर आया... नाम से स्पष्ट है कि विकास की बात इसमें की गई है सो मैंने इसे विकास पुरुष के तौर पर चर्चित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को समर्पित किया था... लेकिन मेरे प्रयास को कोरोना ने गुड़गोबर कर दिया। विकास का ऐसा घंटा बजा कि किताब... चर्चा में ज्यादा न आ सकी।
खैर, कभी-कभी खीसे निपोर कर कहता हूं कि देश के घंटा बजाने से पहले मैंने विकास के नाम का घंटा बजाया था। अब तो कई ऑफिसों में सफलता में नाम पर घंटा-घंटी बजाने की परिपाटी चल पड़ गई है... चैनलों में घंटी बजाओ.. जैसे कार्यक्रम भी आ रहे हैं...! मेरे साथ हुई ट्रेजडी... आज मुझे कॉमेडी लग रही है। शायद सभी के साथ ऐसा ही होता है... यह मेरा मानना है।
मेरी इस बात को जरा मनन करें तो... सच कहूं तो मुझे व्यंग्य... विकृत जैसा लगता है... इसका स्वभाव आक्रामक होता है और ऐसे में कई बार यह घातक हो सकता है जबकि हास्य... कोमल होता है। इसका मंतव्य साफ होता है कि चेहरा खिलना..! हास्य बोले तो विनोद... आमोद की उत्पत्ति का होना...! व्यंग्य किसी वस्तु.. व्यक्ति.. बयान आदि का उपहास उड़ाता है और हास्य उसे सहलाता है। तभी व्यंग्य को कई लोग व्यंग्य बाण कहते हैं और इसके विपरीत हास्य को योग से जोड़ा जाता है... योग बोले तो मेल, मिलाप या संयोग।
....और जहां संयोग बोले तो इत्तफाक होता है... वहां पर कुछ भी हो सकता है। दूसरों पर हंसना जितना आसान होता है... उतना ही खुद पर हंसना मुशि्कल होता है। यह सच हर व्यक्ति समझता है लेकिन मानता नहीं है। कुछ वर्ष पहले मैंने #1EK कविता लिखी थी... अरे! हंसी खिल गई...! फेसबुक के जमाने में याद लौटी तो मेरा भी ज्यादातर न हंसने वाला चेहरा खिल गया। उसमें मैंने लिखा था... अरे! हंसी खिल गई...! दिमाग की नसें खुल गईं... सिकुड़ा था जो माथा, सारी सिलवटें उड़ गईं... अरे! हंसी खिल गई...!
खैर, बात चल रही थी हास्य की तो विश्व हास्य दिवस हर वर्ष मई माह के पहले रविवार को मनाया जाता है। इसके उत्थान का इतिहास खोजा तो पता चला कि 11 जनवरी, 1998 को मुंबई में पहली बार 'हास्य दिवस' का विश्वस्तरीय आयोजन डॉ. मदन कटारिया के नेतृत्व शुरू हुआ। मेरा मानना है कि इस दिन की नहीं... इस महीने और साल की जरूरत मुझे ज्यादा लगती है बोले तो सौ प्रतिशत... जाति, धर्म... अर्थ... की लड़ाई के बीच हास्य की कल्पना आसान नहीं है पर कल्पना ही को तो हम धरातर पर उतारते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि हंसी दुनियाभर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकती है।
इसी को हास्य योग की संज्ञा दी जाती है। हमें अपने आत्मद्वंद्व से खुद को अलग करना ही होगा तभी हास्य योग कर सकते हैं। किसी को हंसता देखकर बेवजह हमारा चेहरा भी खिल जाता है। सकारात्मक ऊर्जा का संचार खुद-ब-खुद हमारे भीतर हो जाता है। मैं ज्ञान की यह बात कह रहा हूं लेकिन खुद बहुत कम हंसता हूं... लेकिन यह लोगों की सोच है। मैं जब हंसता हूं तो लोग मुझे घूरकर देखते हैं... पर क्या करूं... मैं कुछ नहीं करता। बस... फिर हंस देता हूं। लोग भी जन्मदिन और पुण्यतिथि की तरह अब हास्य दिवस मनाते हैं... तो मुझे इसमें कोई बुराई नहीं दिखती। अपनी खोई हंसी तलाशने के लिए श्याम बाबा... यह ख्याल बढ़िया है...! कहकर अपना दिल बहला लेता हूं।
याद आया... मैंने कभी लिखा था... आदमी चाहे जितना भी घटिया हो... उससे हालचाल पूछो तो हरदम कहेगा कि बढ़िया है...! उसके हालात पर भी उसके श्रीमुख से यही जवाब मिलेगा... यह मेरी गारंटी है। और जनाब यदि आपको विश्वास न हो तो पूछकर देख लीजिएगा। यही जवाब मिलेगा... और आप भी यही जवाब देते होंगे.... बढ़िया है...! जो यह बढ़िया है... वही सौ.. है.. वर्तनी की गड़बड़ी कर दूं तो सो... जब हम जोर से हंसते हैं तो हांफ सकते हैं.. और हांफते वहीं है जो ऊर्जावान होते हैं और ऊर्जा तलाशने के लिए हम कभी अध्यात्म की ओर मुड़ जाते हैं तो कभी घूमने निकल पड़ते हैं लेकिन भीतर नहीं झांकते... यदि ऐसा कर लेते तो शायद हंस लेते और हमारी तलाश हम पर ही आकर खत्म हो जाती...! वैसे भी माना जाता है कि हंसने से तमाम बीमारियां खुद-ब-खुद छूमंतर हो जाती है। कैसे.. हंसने से हमारे पेट और छाती के बीच हंसने से हवा भर जाती है और गुदगुदी से जो भीतर धुकधुकी होती है, उससे हमारे पेट, फेफड़े आदि की मालिश हो जाती है। नतीजा बेहतर रक्त संचार... कब्ज साफ...!
कहीं पर पढ़ा था... वैज्ञानिक कहते हैं कि कहकहे लगाने से शरीर के हरेक अंग को गति मिलती है। नतीजा उसमें मौजूद एंडोफ्राइन ग्रंथि (हारमोन दाता प्रणाली) सुचारु रूप से चलने लगती है, जो कि कई रोगों से छुटकारा दिलाने में सहायक है। परिस्थितियां तो आकर थप्पड़ जड़ती रहती है लेकिन हम भी बड़े बेशर्म है... हंसते रहते हैं। किसी की बात सुनकर, किसी को देखकर... परिस्थितिजन्य हालात पर हम हंस सकते हैं और दूसरों को हंसा सकते हैं। वैसे भी कहते हैं कि ट्रेजडी... और कॉमेडी में ज्यादा अंतर नहीं होता। समय का पहिया... ट्रेजडी को कॉमेडी बना देता है और कॉमेडी को ट्रेजडी। हंसी.. ठट्ठा.. ठिठोली, दिल्लगी, मजाक से जो हंसी निकलती है, वही श्रेष्ठ है लेकिन किसी का दिल दुखाकर नहीं।
अब मुद्दे की.... हास्य सौ क्यों लगता है मुझे... तो मेरे प्रिय पाठकों... मेरी खोज के अनुसार... 100 एक पूर्ण वर्ग संख्या है और हास्य भी मुझे पूर्ण योग लगता है। प्रतिशत को हम % लिखते हैं.. इसे थोड़ा उलटे-पलटे तो यह भी 100 के जैसे ही लगेगा... एक जीरो आगे और एक जीरो पीछे... बीच में बचा #1EK तो उसे हम तिरछा कर देते हैं... अपने मैं को यदि हम थोड़ा तिरछा कर दें तो सारा झगड़ा ही समाप्त हो जाएगा लेकिन क्या करें... इस मुद्दे में हमारी नाक आड़े आ जाती है। नतीजा... हम अपने मैं के साथ खुद भी टेढ़े हो जाते हैं। ऐसे में हास्य की जगह विषाद उत्पन्न होता है।
इसी प्रकार... प्रतिशत के दो शून्य दाएं और बाएं लगे दिखते हैं... इसे खुशी और दुख का पर्याय मान लिया जाए तो... जीवन में इसमें ही हमें संतुलन बनाना होता है। इस नश्वर संसार में सुख व दुःख दोनों ही धूप-छांव की भाँति आते-जाते रहे हैं और आते-जाते रहेंगे लेकिन यदि मानव दोनों हालात में स्वयं के मन पर काबू रखना सीख लेता है तो चिंताओं से बच सकता है। वैसे भी चिंतामणि बनकर आप परिस्थितियों का उखाड़ भी क्या सकते हैं? ईश्वर ने हमें सबसे ज्यादा जो बेहतरीन तोहफा दिया है.. वह है भूल जाने की बीमारी... यह हमारे लिए रामबाण है। भलाई करो भूल जाओ तो हमें सिखाया जाता है लेकिन गम को भुलाना हमें खुद सीखना पड़ता है।
मेरे उद्गारों को पढ़कर शायद आपके दिमाग की बत्ती जल गई होगी... यदि ऐसा है तो बढ़िया नहीं तो आलेख को फिर से पढ़ना शुरू करें...! 100 प्रतिशत का आधार है और हास्य जीवन का। हास्य शतक बना सकता है लेकिन गम तो हमें शून्य पर आउट कर सकता है। स्पष्ट है कि जीवन में हमने क्या खोया और क्या पाया... इसी से तय होता है। हास-परिहास हर पीड़ा का शत्रु है। यही शत्रु हमारा सबसे बड़ा मित्र है। हर निराशा व चिंता का यह अचूक इलाज और दुःखों के लिए रामबाण औषधि है। मेरा बेटा कहता है कि दिमाग को फिल नहीं करो पापा, ड्रेन करना सीखिए... यही बात मैं आपसे भी कहता हूं।
विश्व हास्य दिवस मई के प्रथम रविवार को मनाया जाता है और ऐसे में निशि्चत है कि हर साल #1EK तारीख नहीं रहेगी तो... दुख को हम क्यों पकड़े...? सारी दुनिया 99 के फेर में परेशान है और शगुन के #1EK को भूल जाती है... इस #1EK को राम-राम जी की तरह दो बार याद रखने की जरूरत है। नतीजा.. 99 के फेर से मुक्ति और सौ से आगे शगुन की शुरुआत बोले तो 101 तक पहुंचना, आसान बन सकता है। इसके बाद अंत में #1EK अंतिम महत्वपूर्ण तथ्य.. हंसते समय हम क्रोध नहीं कर सकते...! लेकिन ज्यादा हंसे तो हमारी आंखों से आंसू निकल सकते हैं। तो... रोकर आंसू निकलने से बेहतर हंसकर आंसू गिराना नहीं हो सकता...? इस पर आपके विचार... मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं...!
Dr. Shyam Preeti
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