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Showing posts from May, 2023

चर्चा में भारत का #1EK राजदंड बोले तो #सेंगोल

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प्राचीन भारत की कहानियों में राजदंड की चर्चा मिलती रही है लेकिन आधुनिक भारत में भी भारत का #1EK राजदंड बोले तो #सेंगोल इस समय जबरदस्त ट्रेंड कर रहा है। दरअसल, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्वतंत्रता के एक 'महत्वपूर्ण ऐतिहासिक' प्रतीक के तौर पर #सेंगोल (राजदंड) की प्रथा को पुनः शुरू करने की भी घोषणा की है। उनका कहना है यह अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक रहा है। नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु से #सेंगोल प्राप्त करेंगे और वह इसे नए संसद भवन के अंदर रखेंगे। इसे स्पीकर की सीट के पास रखे जाने की तैयारी है। उनका कहना है कि नया संसद भवन हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का सुंदर प्रयास है। इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा- 'इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान कोई हो ही नहीं सकता इसलिए जब संसद भवन देश को समर्पण होगा, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी बड़ी विन

प्रचलन में रहा 2000 का गुलाबी नोट अब हुआ ‘लाल’

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सरकार के 2000 रुपये के नोट को प्रचलन से बाहर करने की घोषणा के बाद से यह गुलाबी नोट अब खतरे की घंटी के प्रतीक ‘लाल’ रंग जैसा लोगों को नजर आने लगा है। हालांकि अभी घबराने की कोई बात नहीं है क्योंकि आम लोग आगामी 30 सितंबर तक इसे बैंकों में जमा करवा सकते हैं। मुद्राओं में 2000 का यह ब्रांड अब कुछ समय बाद सिर्फ ‘नाम’ के तौर पर हमारी यादों में जिंदा ही रहेगा। आम लोग परेशान न हों। 2000 के नोट से जुड़े सवालों के उत्तर इस प्रकार हैं ः- ये बैंक नोट वापस क्यों लिए जा रहे हैं? वर्ष 2016 नवंबर में इस गुलाबी नोट का जन्म हुआ था। मकसद था कि 500 और 1000 रुपये के नोटों को वापस लेने के बाद अर्थव्यवस्था को गति देना। परिणाम अपेक्षानुरूप आए और इसके बाद 2018-19 में इनकी छपाई बंद कर दी गई। ज्यादातर ये नोट मार्च 2017 से पहले जारी किए गए थे। चूंकि प्रचलन में धीरे-धीरे ये नोट बाहर होते गए और इनका जीवन काल भी चार-पास साल ही था, सो अब सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक की 'क्लीन नोट नीति' के अनुसार, इन्हें चलन से बाहर करने का निर्णय लिया। अब आपका प्रश्न होगा कि क्लीन नोट नीति क्या होती है? तो सरल भाषा में ज

#1EK फिल्म 'द केरल स्टोरी' ....

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जब आप सिनेमा देखते हैं तो... और कहानी मन को भाने लगे तो आप सिर्फ देखते हैं... आपका दिमाग भी उसी कहानी के साथ खुद को जुड़ा हुआ पाता है... #1EK किरदार के तौर पर आप भी फिल्म का हिस्सा बन जाते हैं और... जब फिल्म खत्म होती है.. बोले तो The End.... तो आपको लगता है कि आपकी यात्रा पूरी हो गई और आप वापस अपनी जद्दोजहद की दुनिया में लौट आते हैं। लेकिन जिंदगी में #1EK इत्तफाक भारी बदलाव ला सकता है, the keral story इसी प्रकार की कहानी है! फिल्म की जैसी कहानी होती है... हमारे भाव भी वैसे ही हो जाते हैं... कभी हम हंसने लगते हैं तो कभी-कभी हमारी आंखों आंसू भी निकल जाते हैं... जीतता हीरो है और लगता है कि हम जीत गए। विलेन को कुटता देखने से लगता है कि हमारी ताकत दोगुनी हो गई है और हम दांत पीसते हुए.... लगता है कि हम ही उसे मार रहे हैं... यही है मनोरंजन की दुनिया...। फिल्म सच में ब्लाइंड मीडिया है... खासकर जब आप सिनेमाघरों में होते हैं। वहां का अंधेरा हमें ऐसी दुनिया में ले जाता है जहां हम खो जाते हैं। #1EK खिड़की से निकल रहा प्रकाश हमें नए संसार की सैर करवा रहा होता है। अब मुद्दे की बात... आजकल फि

हास्य.... सौ है तो गम #1EK शून्य ....

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पता नहीं क्यों... हास्य से मुझे 'सौ' की ध्वनि सुनाई देती है... लगता है कि यही पूर्ण है पर हास्य जितना सुनने में आसान लगता है.. उतना समझना मुश्किल। लोग मुझे सीरियस कहते हैं जबकि मैंने तमाम व्यंग्य लिखे हैं। मेरे #1EK व्यंग्य संग्रह का नाम ही है- बजाओ घंटा विकास आ रहा है... लेकिन यह भी सच है कि व्यंग्य और हास्य में भेद है। मेरा स्पष्ट मानना है कि यही अंतर व्यंग्य पर हास्य की श्रेष्ठता बताता है! लेकिन सबसे बलवान समय है और यह मेरे साथ भी साबित हुआ। कैसे... प्रस्तुत व्यंग्य संग्रह कोरोना के आगमन से ठीक पहले प्रकाशित होकर आया... नाम से स्पष्ट है कि विकास की बात इसमें की गई है सो मैंने इसे विकास पुरुष के तौर पर चर्चित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को समर्पित किया था... लेकिन मेरे प्रयास को कोरोना ने गुड़गोबर कर दिया। विकास का ऐसा घंटा बजा कि किताब... चर्चा में ज्यादा न आ सकी। खैर, कभी-कभी खीसे निपोर कर कहता हूं कि देश के घंटा बजाने से पहले मैंने विकास के नाम का घंटा बजाया था। अब तो कई ऑफिसों में सफलता में नाम पर घंटा-घंटी बजाने की परिपाटी चल पड़ गई है... चैनलों में घंटी बजाओ.. जैसे