#1EK शेर पर मचा शोर... आता माझी सटकली...
सिंघम फिल्म का डॉयलाग.... आता माझी सटकली... आप भूले नहीं होंेगे। अभिनेता अजय देवगन जब गुस्से में कहते हैं कि एक शेर मेरे पीछे भी है... फिर डॉयलाग आता माझी सटकली... मारते हैं तो पब्लिक तालियां...बजाती है!
... और अब फिर से अशोक की लाट चर्चा में है और विपक्षी दलों के नेता चिल्ला रहे हैं- आता माझी सटकली... और केंद्र सरकार की आलोचना कर रहे हैं।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 जुलाई को नए संसद भवन पर बने अशोक स्तंभ का अनावरण किया तो यह विवाद गरमाया। कहा जा रहा है कि अशोक स्तंभ में जो शेर दिखाई दे रहे हैं, वे हमारी परंपरा से मेल नहीं खाता। अशोक की लाट के शेर शांत सौम्य हैं और ये शेर खूंख्वार दिख रहे हैं...! और जहां तक असली शेरों की संख्या की बात करें तो 2020 में इनकी संख्या महज 674 बताई जाती है।
खैर, चलिए, पहले अशोक स्तंभ की बात करते हैं। यह स्तंभ बिहार राज्य के वैशाली जिले में स्थित है। बताते हैं कि सम्राट अशोक प्रसिद्ध कलिंग विजय के बाद बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए थे तब वैशाली में एक अशोक स्तंभ बनवाया। चूंकि भगवान बुद्ध ने वैशाली में अपना अंतिम उपदेश दिया था,उसी की याद में यह स्तंभ बनवाया गया। फिलहाल सारनाथ संग्रहालय में सिंह शीर्ष सुरक्षित है।
बाद में 26 जनवरी 1950 को राजकीय प्रतीक के रूप में यही अशोक चिह्न भारत में अंगीकृत किया गया। इसमें सामने से केवल तीन सिंह दिखाई देते हैं जबकि चौथा छिपा हुआ है, दिखाई नहीं देता है। केंद्र में चक्र दिखाई देता है, सांड़ दाहिनी ओर और घोड़ा बायीं ओर और अन्य चक्र की बाहरी रेखा बिल्कुल दाहिने और बाई छोर पर हैं। घंटी के आकार का कमल छोड़ दिया जाता है। प्रतीक के नीचे सत्यमेव जयते देवनागरी लिपि में अंकित है। शब्द ‘ सत्यमेव जयते’ शब्द मुंडकोपनिषद से लिए गए हैं, जिसका अर्थ है- 'सत्य की ही विजय होती है'।
सबसे मजेदार यही है... सत्य की बातेंे सभी करते हैं और झूठ के लंबरदार बनना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। इसी मुद्दे पर विपक्षी दलों के नुमाइंदों का कहना है कि अशोक काल की मूलकृति की जगह इससे निगल जाने की प्रवृत्ति का भाव दिखता है। वे राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान बताते हुए तत्काल बदलने की मांग कर रहे हैं और दूसरी ओर केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने भी दोनों का फोटो ट्वीट कर समझाया कि फर्क क्यूं है? उ
न्होंने कहा कि यह देखने वाले की आंखों पर निर्भर करता है कि वह क्या देखना चाहता है...!
सफाई में वह कहते हैं कि सारनाथ की मूलकृति 1.6 मीटर की है जबकि संसद पर लगी कृति 6.5 मीटर की है। अगर इसे सारनाथ के आकार में ही कर दिया जाए तो दोनों बिल्कुल एक जैसे लगेंगे। संसद भवन पर स्थापित अशोक स्तंभ 33 मीटर की ऊंचाई पर है। वहां मूल कृति के आकार की कृति लगाने से कुछ भी नहीं दिखता। लिहाजा बड़ी कृति लगाई गई है। अगर अशोक स्तंभ की मूलकृति को भी नीचे से देखा जाए तो वह उतनी ही सौम्य या गुस्सैल दिख सकती है जिसकी अभी चर्चा हो रही है।
इसी प्रकार भाजपा के इंटरनेट मीडिया प्रभारी अमित मालवीय का कहना है कि आलोचक प्रिंट में निकाली गई 2डी इमेज की विशालकाय 3डी इमेज के साथ तुलना कर रहे हैं, इसीलिए भ्रमित हैं। हालांकि विपक्षी केवल यही फरमा रहे हैं- आता माझी सटकली...!
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