आइए #1EK शपथ लें... हम बदलेंगे अपना नजरिया
ऊपर वाले बोले तो ईश्वर ने हमको दो हाथ, दो पैर, दो कान, दो आंखें और #1EK मुख दिया है... रक्त का रंग भी लाल है... इस लिहाज से हम सभी सहोदर हैं। हालांकि बहुत से ऐसे भी लोग होते हैं जो किन्हीं विसंगतियों की वजह से ऐसे नहीं होते... लेकिन फिर भी समाज के वे भी अंग हैं। यही विविधता... हमें ईश्वर के नजदीक ले जाती है। अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न कि ऐसा क्या... है जिसने इंसान को इंसान से अलग कर रखा है? इस क्या... का उत्तर है... दृषि्टकोण... बोले तो नजरिया...! जी हां... नजरिया को भी दो भागों में बांटा गया है... सकारात्मक और नकारात्मक लेकिन यही नकारात्मक किसी दूसरे के लिए सकारात्मक हो सकता है... और सकारात्मक... नकारात्मक बन जाता है... है ना गजब। यही सोच... मनुष्य को #1EK-दूसरे से जुदा करती है। इसे हर क्षेत्र में देखा और महसूस किया जा सकता है। जैसे-जैसे #1EK पीढ़ी का पाखंड समय के साथ परंपरा बन जाता है। दूसरा उदाहरण ः राजनीति को ही ले लें... एक दल दूसरे की नीतियों की बखिया उधेड़ता नजर आता है और जब सत्ता बदल जाती है तो स्थितियां बदल जाती हैं। विरोध का तरीका दो तरह से होता है... पहला वैचारिक और दूसरा...