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Showing posts from July, 2022

रविवार, संडे या इतवार... बस नाम का फर्क है... लेकिन

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#1EK लेखक साहिर लुधियानवी... दो फिल्में वर्ष 1959 मंे रिलीज हुई फिल्म ‘धूल का फूल’ का गाना ‘तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा...’, जिसे मोहम्मद रफी ने गाया था... और वर्ष 1968 में रिलीज ‘दो कलियां’ का गीत, जिसे लताजी ने गाया था- ‘बच्चे मन के सच्चे, सारे जग की आँख के तारे ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे...’ मेें बच्चों को कच्ची मिट्टी सरीखा बताकर इस नई पौध को सही दिशा देने की बात कही थी...! लेकिन बदलते दौर में अब शिक्षा के क्षेत्र में यह सोच अब धरातल पर नहीं दिख रही.. बल्कि बच्चों का बालपन खत्म करने का कुचक्र रचा जा रहा है...! माना जाता है कि बचपन तब खत्म हो जाता है जब कोई बच्चा खिलौना आदि की मांग करना बंद कर दे और अब ज्यादातर बच्चे खिलौने की जगह मोबाइल के नागपाश में फंसने लगे हैं...! दूसरी ओर स्कूलों में एक्टिविटी के नाम पर बच्चों को जो काम करने को दिया जा रहा है, वो मां-बाप कर रहे हैं या किसी और से करवा रहे हैं। इसी प्रकार स्कूल चलाने वाले पुरोधा बच्चों को अपनी सोच के दायरे मेें समेटने के लिए उनकी रचनात्मक प्रवृत्ति को खत्म करने की जद्दोजहद में जु...

सामूहिक चेतना की #1EK क्रांति की हमें है जरूरत

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आजादी के अमृत महोत्सव की तैयारी जोरों पर है और जैसे-जैसे स्वतंत्रता दिवस नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे सारे देश में ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के लिए जोश व उत्साह बढ़ने लगा है। सही मायने में हमारा तिरंगा हमें जात-पात, मजहब, पंथ, क्षेत्र व अन्य भेदभाव से ऊपर उठकर देश के लिए एकजुट भाव से काम करने की प्रेरणा देता है। यह भारत की संप्रभुता का सर्वोच्च प्रतीक चिह्न है। इसमें शामिल तीन रंगों में ‘भगवा’ किसी का प्रिय है तो कोई ‘हरा’ रंग पसंद करता है लेकिन ये दोनों रंग अब धर्म-मजहब की पहचान बन गए हैं...! लेकिन तिरंगे का तीसरा रंग ‘सफेद’ हर कोई भूल-सा गया है। यह शांति का प्रतीक है, जो हर देशवासी चाहता है। एक बार अपना मन शांत कर देखें तो इसकी महत्ता पता चल जाएगी...! हमारी जिंदगी एक-दो रंगों की गुलाम नहीं है। इसे इंद्रधनुष के सभी रंग चाहिए और इंद्रधनुष का दर्शन करने के लिए सभी को इंतजार भी करना पड़ता है...! और भूलभूत जरूरतों के लिए आज भी ज्यादातर भारतीय प्रतीक्षारत हैं। तिरंगे की शान तब ही है, जब हम #1EK (एक) बने। तिरंगा जब लहराता है तो बाकी ध्वज फीके पड़ जाते हैं। यही सच है...! यही सच है...! बस इसे हम...

विज्ञापन और विवाद ... चर्चा पाने का हथियार

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नाम : रणबीर सिंह काम : अभिनेता दाम : यह तो आयकर वाले ही बता सकते हैं तो आप कौन है... हम हैं खुराफातीलाल... जब व्यास कुर्सी पर बैठते तो हमारे ज्ञानचक्षु खुल जाते हैं और मुंह से प्रवचन रूपी ज्ञान की बात खुद-ब-खुद निकलने लगती हैं...! कुछ लोग इसे बकवास कहते हैं पर सोशल मीडिया के दौर में जब चलता है.... मन तो रुकेें.. और नहीं तो आगे बढ़ें....! आज विज्ञापनों पर होने वाले विवादों पर बक-बक करने का मन आया तो... बकबकाने लगा...! यदि आपको सुनने में कोई दिक्कत हो तो कान की मशीन ऑनलाइन आर्डर कर मंगा सकते हैं...! लेकिन सरकार, आप तो इसे ऑनलाइन पढ़कर रहे हैं... तो....! देखा... यही है चमत्कार ऑनलाइन होने का... हाथ में हमारे फुंतुड़ू बोले तो मोबाइल है... और हम हैं उसके गुलाम...! इसे घिसने की जरूरत नहीं है... बस उंगली करने की है और आप... इसके चंगुल में फंस जाते हैं... जैसे अभी फंसे हुए हैं। क्षमा चाहूंगा कि मैं विषय से भटक गया था... सही ट्रैक पर आता हूं और ज्ञान की बात सुनाता हूं। बात अकेले रणबीर सिंह की नहीं है... इस फेहरिस्त में ज्यादातर अभिनेताओं और अभिनेत्रियों आदि के नाम शामिल हैं। ये सभी मुस्कुरा ...

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बोले तो चमकते चेहरों के साथ बातों का संगीतमय संजाल...!

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देश के संविधान में लोकतंत्र के चार मुख्य स्तंभों में से एक मीडिया है। ऐसे में उसकी समाज और देश के प्रति बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। एक गलत सूचना से देश में आग लग सकती है और फिर उसे दुरुस्त करने में सालों लग जाते हैं। ऐसे में मीडिया की जवाबदेही बनती है कि वह गलत तथ्यों को परोसने से पहले कई बार परख ले। समाज के प्रति प्रिंट मीडिया तो थोड़ा जिम्मेदार लगता है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। अभी हाल में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने भी उसे कटघरे में खड़ा किया है। मेरी नजर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बोले तो चमकते चेहरों के साथ बातों का संगीतमय संजाल...! बदलते दौर में संचार माध्यम (मीडिया) के अंतर्गत टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा, समाचार पत्र, पत्रिकाओं के अलावा अब सोशल मीडिया बड़ा प्लेटफार्म बनकर उभरा है। यही वजह है कि हाल के दिनों में कई गलत सूचनाओं की वजह से समाज में बिखराव बढ़ रहा है। इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया में सूचनाओं का प्रवाह ज्यादा तेजी से होता है। वहीं प्रिंट मीडिया में थोड़ी जल्दबाजी कम है लेकिन यहां भी प्रिंट आर्डर को देखते हुए कई बार जल्दबाजी करनी पड...

#1EK भविष्यवाणी.... बदल गया पुनीत का भाग्य

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भविष्य में कब, क्या होगा और क्यों? यह किसी को पता नहीं है लेकिन हममें से सभी यह जानना जरूर चाहते हैं! क्यों? हम आज का आनंद नहीं लेते हैं? साहेब! आज में जीना सचमुच में काबिलेगौर है लेकिन...हर कोई कल की फिक्र में रहता है। पल की खबर नहीं... और अचार साल भर का डाला जाता है। तुलसीदास जी लिखते हैं- हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि-हाथ। अर्थात् जन्म से लेकर मृत्यु तक आदमी हानि-लाभ, यश-अपयश जो कुछ भी अर्जित कर पाता है, उस में उसका अपना वश या हाथ कतई कुछ नहीं रहा करता। विधाता की जब जैसी इच्छा हुआ करती है, तब उसे उसी प्रकार की लाभ-हानि तो उठानी ही पड़ती है, मान-अपमान भी सहना पड़ता है। मेरे शब्दों में... सच कहूं तो जीवन अनिश्चित था, है और रहेगा। बस #1EK इत्तफाक... या संयोग और सारा परिदृश्य बदल जाता है। कई बार व्यक्तित्व बदल जाता है... चरित्र बदला नजर आता है.... शक्ल पुराने स्वरूप से जुदा हो जाती है और न जाने क्या-क्या हो जाए, कल्पना से परे है। कई बार न चाहते हुए हम चल देते हैं... जाना कहां है... पर चलते रहते हैं...! कुछ ऐसी ही कहानी पुनीत गुप्ता की है। ये साहेब कौन है....? इस प्रश्न का जवाब ...

#1EK आम महिला द्रौपदी मुर्मू जी : पार्षद से राष्ट्रपति तक....

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द्रौपदी मुर्मू जी ने अपना राजनीतिक कॅरिअर पार्षद से शुरू किया था और अब वह भारत की 15वीं राष्ट्रपति निर्वाचित हुईं हैं। यह देश के लिए बड़ा संदेश है कि #1EK आम महिला भी भारत की राष्ट्रपति बन सकती है। उन्हें करीब 64 प्रतिशत वोट मिले हैं। उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम में #1EK भी वोट नहीं मिला और वे अंततः पराजित हुए। द्रौपदी मुर्मू जी ने अपने गृह जनपद से शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद भुवनेश्वर के रामादेवी महिला महाविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। पढ़ाई पूरी होने के बाद एक शिक्षक के तौर पर अपने कॅरियर की शुरुआत की और कुछ समय तक इस क्षेत्र में काम किया। उनका विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ। उनके दो बेटे और बेटी हुई। बाद में दोनों बेटों और पति उन्हें पंचतत्व में विलीन हो गए। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और समाज सेवा के लिए राजनीति में कदम रखा। उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहतीं हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक कॅरिअर की शुरुआत भाजपा के साथ की थी। 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत के चुनाव में पार्षद बनीं। तब भाजपा ने उन्हें अन...

...जीतने के लिए फिर खेलना होगा

हार को ‘हार’ की तरह लेना होगा। जीतने के लिए फिर खेलना होगा। सफलता की राह में खड़े होंगे पहाड़ अनेक। अपनी बिखरी सारी ताकतों को करना होगा एक। मन की आशंकाओं, डर को देना होगा फेंक। तुम्हारी जीत पर दुनिया भी घुटने देगी टेक। असफलता का अंधेरा छंटकर ही नया सवेरा होगा। जीतने के लिए फिर खेलना होगा। कछुआ-खरगोश दौड़ में खरगोश आगे निकलता है। पर कछुआ रुकता नहीं, अनवरत चलता रहता है। नदी की धारा-सा बन वह विजेता बनता है। कहानी का यह सबक हमको समझाता रहता है। संकल्प पूरा होने तक रुकना नहीं होगा। जीतने के लिए फिर खेलना होगा। जब भी तुम हारोगे, पास न कोई आएगा। लोग हंसेंगे तुम पर, हर कोई मजाक बनाएगा। चलते व्यंग्य बाणों से कलेजा छंलनी हो जाएगा। रात न नींद आएगी, दिन भी खूब रुलाएगा। ऐसे अवसादों को मन से दूर भगाना होगा। जीतने के लिए फिर खेलना होगा। रात और दिन का क्रम एक-सा रहता है। कभी रात लंबी, कभी दिन लंबा होता है। सुख-दुख का भी ऐसा ही हाल रहता है। कभी सुख हावी, कभी दुख परेशान करता है। परिस्थितियां कैसी भी हों, खुद को संभालना होगा। जीतने के लिए फिर खेलना होगा। डॉ. श्याम प्रीति

विकास@विनाश

डॉ. श्याम प्रीति विकास नगर मोहल्ले में आज ज्यादा चहल-पहल थी। चमचमाती सीसी टाइल्स रोड का उद्घाटन जो होना था...! नौवीं-दसवीं के छात्र दक्ष के घर के सामने बने तीन मंजिला मकान की रेलिंग में लगे बैनर पर विधायक पवन कुमार का नाम लाल रंग से बड़े हर्फों में चमक रहा था। मोहल्ले के कई कथित गणमान्य लोगों के नाम भी नीचे की ओर छपे थे। बैनर के ठीक नीचे स्टेज बनाया गया था। उसके सामने रोड पर कुर्सियां बिछाई जा रही थीं। घर के फर्स्ट फ्लोर में बने कमरे की खिड़की से यह नजारा देख रहा दक्ष थोड़ा दुखी था। इसकी वजह थी, जो उसके भारी विरोध के बावजूद उखाड़ फेंकी गई थी...! शून्य के निहारते दक्ष की निगाहों में बीती बातें एकाएक घूमने लगीं...! सीन-1 रोड की नाप-जोख हो रही थी। इसे देखकर ज्यादातर मोहल्ले वाले खुश थे तो कई खफा भी नजर आ रहे थे। नाराज होने वालों में ज्यादातर वो थे, जिनके अवैध कब्जे रोड बोले तो सड़क के विकास के लिए बलि चढ़ रहे थे। मौसम सुहावना था और शायद इसीलिए मजदूरों के काम की स्पीड भी देखने लायक थी। दनादन हथौड़े चल रहे थे और चबूतरे या फर्श की बैंड बज रही थी...! कई लोगों से सड़क की यह हालत देखी नहीं ज...

डॉक्टर खुराफातीलाल का फ्री मेडिकल कैंप

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डॉ. श्याम प्रीति गेट पर बैनर टंगा था, जिस पर लाल हर्फों में चमक रहा था फ्री मेडिकल कैंप। शुगर की जांच फ्री, दवाएं फ्री। रजिस्ट्रेशन के लिए काउंटर नंबर-एक से टोकन प्राप्त करें। विनम्र अनुरोध : बारी-बारी से आएं और फायदा उठाएं। नीचे स्टार के साथ छोटे काले अक्षरों में लिखा था- बाकी की जांच का चार्ज काउंटर नंबर दो पर जमा कर कृपया रसीद जरूर प्राप्त करें। बीच में रिवर्स में कोरोना वायरस से बचाव के लिए मास्क पहनने की लोगों से अपील के साथ 2 गज की दूरी बनाए रखने का अनुरोध भी किया गया था लेकिन कोरोना से अब डरता नहीं कोई दिखता... बस ढपोरशंख की तरह उसे समझा जा रहा है। ... इस्तहार पढ़कर पब्लिक वहां पर उमड़ रही थी...! वह भूल गई थी कि यहां पर फ्री का 'चारा' डाला गया था और जो फंस गया, वह मरीज 'रजिस्टर्ड' बनने वाला था...! उसे खुद को 'रिचार्ज' करवाने के लिए डॉक्टर साहब की शरण में आना मजबूरी थी...! एक दूसरी सच्चाई भी थी कि फ्री डायबिटीज कैंप तनाव ग्रसित लोगों के लिए डॉक्टर खुराफाती लाल का प्यार भरा तोहफा था! असलियत में यह डॉक्टर खुराफाती लाल के लिए एक मौका था अपनी फ्लॉप ड...

यमराज को नारदजी का "भौकाली" ज्ञान...!

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डॉ श्याम प्रीति यमलोक में अपने सिंहासन पर गंभीर मुद्रा में बैठे यमराज के चेहरे पर पसीने की बूंदें छलक रही थी तभी नारद जी का आगमन हुआ...! नारायण...! नारायण...! महाराज यमराज! आपके चेहरे पर पसीना...! क्या यहां का एसी नहीं चल रहा..! फिर व्यंग्य करते हुए बोले, पृथ्वी लोक की तरह यहां भी बिजली कटौती शुरू हो गई क्या? नारद जी! आपको इस तरह से तुच्छ व्यंग्य करते हुए शोभा नहीं देता...! तभी वहां पर चित्रगुप्त का आगमन हुआ। वह बोले, क्या हुआ प्रभु ? आज चिंतित लग रहे हैं? क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं? यह सुनकर यमराज ने नारद की और निहारा...! फिर उनके मुख से वचन निकले- देखा नारदजी ऐसे होते हैं विश्वासपात्र सेवक। जो चेहरा देखकर ही समस्या का अंदाजा लगा लेते हैं और आप जैसे पत्रकार समस्या देखकर उनका समाधान नहीं मजाक बनाया करते हैं। यह सुनकर नारद जी का खिला चेहरा थोड़ा-सा मुरझा गया लेकिन नारायण...! नारायण...! कहते ही चेहरे की लालिमा एक बार फिर से नजर आने लगी। तभी चित्रगुप्त ने प्रश्न किया- महाराज! कोरोना वायरस के प्रकोप से पृथ्वी लोक के लोग मर रहे हैं और चिंतित आप नजर आ रहे हैं, यह बात कुछ समझ ...

नंबर-1 मतलब खुद को सीमित करना और #1EK बोले तो अनंत

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डॉ श्याम प्रीति आज सफलता की चाह का अर्थ है नंबर-एक बनने की इच्छा और हरेक सफल कंपनी या शख्स आदि खुद को नंबर 1 घोषित कर सिद्ध करने का प्रयास करता है। लेकिन जनाब यह तो खुद को सीमित करना है। कैसे? नंबर-1 के बाद क्या? बस केवल अपनी इस पोजीशन को बचाए रखने की जद्दोजहद। इसके विपरीत यदि हम ",1EK" बनते हैं तो अकेले रहें या साथ-साथ "1EK" ही रहते हैं बोले तो असीमित बोले तो अनंत बन सकते हैं! दूसरा उदाहरण और देता हूं। सफलता मिलने पर लोग अपनी दो उंगलियों से "विक्ट्री" बोलें तो "V" का निशान दिखाते हुए अपनी फोटो खिंचवाते हैं। यह विंस्टन चर्चिल की केवल नकल करना है। अब इसे मेरे नजरिए से देखें तो ये लोग खुद को नंबर-दो दिखा रहे होते हैं। #1EK बार आप भी अपना नजरिया बदलें... अरे! आपका चेहरा खिल गया। आइए थोड़ा खुद को बदलते हैं! क्या हम अपने जीतने की खुशी को अपनी तर्जनी से प्रदर्शित नहीं कर सकते? इसे "अंकुश मुद्रा" कहते हैं। मेरी नजर में सफलता बस नजरिए का खेल है और खेल में जीत हार नहीं खेलना महत्वपूर्ण होता है। दुनिया में पूजा भले चांद को जाता है लेकिन ध्रुव...

‘श’ से शब्द और ‘स’ से संसद

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वेद में शब्दों को ‘ब्रह्म’ कहा गया है और ‘ब्रह्म’ तो #1EK (एक) है। दुनिया में सबसे ज्यादा वही ताकतवर है जो #1EK (एक) को समझता है...! गुस्ताखी माफ! इसीलिए शब्दों की ताकत सबसे घातक मानी जाती है। यह बात और है कि इसकी तीव्रता का असर कभी जल्दी या कभी देर से दिखाई देता है। हिंदी में ही ‘श’ और ‘स’ के उच्चारण पर लंबी बहस होती रही है लेकिन तुलसीदास जी धड़ल्ले से ‘संकर’ लिखते हैं और उन्हें इसका मलाल भी नहीं दिखता लेकिन आज के कथित हिंदी बुदि्धजीवी इन दोनों अक्षरों पर ऐसी बहस करते दिख जाते हैं कि जैसी उनकी भैंस कोई चुरा ले गया हो। शब्दों पर मैं ज्ञान बखार रहा हूं, तो आपको चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मैं ‘एक’ पीडि़त खुद हूं, जो #1EK को दुनिया भर को समझाने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन कोई समझता नहीं है यार! अभी लोकसभा सचिवालय ने कुछ ऐसा शब्दों की नई सूची जारी की, जिनका संसद में इस्तेमाल अब असंसदीय माना जाएगा और इसे सदन की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग से हटा दिया जाएगा। इन शब्दों मेंे भ्रष्ट, नौटंकी और शर्मिंदा जैसे कई शब्द शामिल किए गए हैं तो शब्दों पर चर्चा समाज और सोशल मीडिया और मीडिया हल...

बढ़ती जनसंख्या के फायदे-नुकसान

डॉ. श्याम प्रीति #1EK सांस से शुरू हुआ सफर जिंदगी कहलाता है और जैसे ही सांस थमती है, जिंदगी खत्म...! लेकिन जब ऐसी सांसों का संगम होने लगता है तो जन-जन से जुड़ने वाले इस समूह तो हम जनसंख्या कहते हैं। इस पर वाह-वाह कहने से बेहतर है कि बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणामों पर चर्चा की जाए...! कहते हैं कि जनसंख्या वृद्धि से देश के समक्ष बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोषण जैसी समस्याएं मुंह खोलना शुरू करती हैं और फिर शहरी क्षेत्रों में घनत्व बढ़ता है और प्रति व्यक्ति की आय में कमी होने लगती है, नतीजा परेशानियों का बढ़ना...! इस नजरिये का दूसरा पहलू भी है। अब हंसना मत, जनसंख्या को राष्ट्र की शक्ति भी कहा जाता है। कैसे? यार, आप सवाल बहुत पूछते हैं। खैर, घमंड से बताता हूं- रजिस्टर्ड बुद्धिजीवी जो हूं बोले तो पत्रकार। देखिए साब! जब जनसंख्या बढ़ती तो कुशल श्रम, मानव संसाधन का निर्यात, जनांकिकीय लाभांश और सस्ते मजदूरों जैसे कारकों का लाभ उठाना आसान हो जाता है। इसके अलावा ज्यादा जनसंख्या बोले तो बड़ा बाजार। जैसे भारत का हाल है। विदेशी कंपनियों को कमाई चाहिए तो माल की खपत कहां होगी? सही पकड़े हैं ...

सिंहासन खाली करो... कि जनता आती है...!

#1EK डॉ. श्याम प्रीति रामायण काल में हनुमान जी ने लगाई थी सोने की लंका को धू-धू कर जला डाला था...! यह काम उन्होंने करके रावण को प्रभु श्रीराम की ताकत का नमूना दिखाया था लेकिन रावण तो मद में चूर था तो कैसे श्रीराम की प्रभुताई स्वीकारता... और नतीजा तुलसीदास जी लिखते हैं- ‘डोली भूमि गिरत दसकंधर छुभित सिंधु सरि दिग्गज भूधर।’ संप्रति, रावण जैसा ही हाल श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का हो गया है..! पब्लिक गुस्से में है और श्रीलंका में ‘लंका’ लगी हुई है...! अर्थव्यवस्था की चूं बोलने से नाराज लोग सड़कों पर ही नहीं सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के घरों में घुसकर अराजकता दिखा रहे हैं...! अरे सरकार, थोड़ा ठंड रखें। पहले थोड़ा ज्ञान बढ़ाते हैं। इतिहास और भौगोलिक तथ्यों की बातें करते हैं। भारत के दक्षिण में हिंद महासागर में महज 32 किलोमीटर दूर स्थित श्रीलंका का पहले 1972 तक ‘सीलोन’ नाम था, जिसे बदलकर पहले ‘लंका’ तथा 1978 में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द ‘ श्री’ जोड़कर ‘श्रीलंका’ कर दिया गया। यह वही दौर था जब यहां सम्मान के लिए बड़ी लड़ाई छिड़ने लगी थी। सिंहली और तमिलों का संघर्ष बढ़ना शुरू हो चुका था। दरअस...

#1EK शेर पर मचा शोर... आता माझी सटकली...

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सिंघम फिल्म का डॉयलाग.... आता माझी सटकली... आप भूले नहीं होंेगे। अभिनेता अजय देवगन जब गुस्से में कहते हैं कि एक शेर मेरे पीछे भी है... फिर डॉयलाग आता माझी सटकली... मारते हैं तो पब्लिक तालियां...बजाती है! ... और अब फिर से अशोक की लाट चर्चा में है और विपक्षी दलों के नेता चिल्ला रहे हैं- आता माझी सटकली... और केंद्र सरकार की आलोचना कर रहे हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 जुलाई को नए संसद भवन पर बने अशोक स्तंभ का अनावरण किया तो यह विवाद गरमाया। कहा जा रहा है कि अशोक स्‍तंभ में जो शेर दिखाई दे रहे हैं, वे हमारी परंपरा से मेल नहीं खाता। अशोक की लाट के शेर शांत सौम्य हैं और ये शेर खूंख्वार दिख रहे हैं...! और जहां तक असली शेरों की संख्या की बात करें तो 2020 में इनकी संख्या महज 674 बताई जाती है। खैर, चलिए, पहले अशोक स्तंभ की बात करते हैं। यह स्तंभ बिहार राज्य के वैशाली जिले में स्थित है। बताते हैं कि सम्राट अशोक प्रसिद्ध कलिंग विजय के बाद बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए थे तब वैशाली में एक अशोक स्तंभ बनवाया। चूंकि भगवान बुद्ध ने वैशाली में अपना अंतिम उपदेश दिया था,उसी की याद में य...

केबीसी के #1EK ब्रह्मास्त्र हैं... अमिताभ बच्चन

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‘हू वांट्स टू बी अ मिलियनेयर’ प्रोग्राम की तर्ज पर भारत मेें शुरू हुए कौन बनेगा करोड़पति बोले तो केबीसी की शुरुआत ने सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को भी नया जीवन दिया था। प्रसिद्ध क्लासिक फिल्म ‘ दीवार’ में एक डॉयलाग है- हम जहां से खड़े हो जाते हैं, लाइन वहां से शुरू होती है... ठीक यही केबीसी की शुरुआत के बाद हुआ। वर्ष 2000 था और तारीख थी तीन जुलाई, चैनल था स्टार प्लस और इसके बाद बु‌द्धबाक्स की दुनिया बदल गई। केबीसी ने स्टार प्लस को टीवी जगत का बेताज बादशाह बना दिया। यह हालात आज तक जारी हैं। क्विज मास्टर सिद्धार्थ बासु ने एक बार कहा था कि अमिताभ बच्चन केबीसी के ब्रह्मास्त्र हैं। अमिताभ बच्चन स्वयं यह बात स्वीकारते हैं कि उनके मुश्किल वक्त ने यश चोपड़ा ने मदद की और फिल्म 'मोहब्बतें' दीं। इस बीच उन्हें 'कौन बनेगा करोड़पति' होस्ट करने का ऑफर मिला। पहले ही सीजन से केबीसी रेटिंग में टॉप पर पहुंच गया और अमिताभ बच्चन को इसके लिए इसके लिए 15 करोड़ की बड़ी फीस मिली। केबीसी ने लोगों को एक राह दिखाई कि ज्ञान से भी पैसा कमाया जा सकता है। मनोरंजन के साथ अमिताभ बच्चन का स्टाइल आ...

#1EK ‘इत्तेफ़ाक़’.... से अपने भाई बीआर चोपड़ा से अलग हो गए थे यश राज चोपड़ा

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क्या आप जानते हैं कि वर्ष 1969 में फिल्म ‘इत्तेफ़ाक़’ बीआर चोपड़ा ने बनाई थी और इसके डायरेक्टर थे उन्हीं के भाई यश चोपड़ा। सस्पेंस ‌िथ्रलर ‘इत्तेफ़ाक़’ में मुख्य भूमिका निभाई थी अपने समय के सुपर स्टार राजेश खन्ना। उनके साथी कलाकारों में शामिल थे नन्दा, बिंदू, मदन पुरी और इफ्तिखार खां। बताते हैं कि यह फिल्म 1965 की अमेरिकी फिल्म 'साइनपोस्ट टू मर्डर' की रीमेक है। इस कहानी को पहले सरिता जोशी अभिनीत गुजराती नाटक 'धुम्मस' में प्रस्तुत किया गया था। ‘इत्तेफ़ाक़’ फिल्म के बाद ही यश चोपड़ा अपने भाई बीआर चोपड़ा से अलग हो गए थे और तब यशराज फिल्म्स की नींव पड़ी। यशराज फिल्म्स ने सबसे पहले राजेश खन्ना के साथ फिल्म ‘दाग’ का निर्माण किया। यह वर्ष 1973 में रिलीज हुई थी और सुपर हिट साबित हुई। सबसे मजेदार बात यह है कि ‘इत्तेफ़ाक़’ और ‘दाग’ दोनों ही फिल्मों के नाम से बाद में भी फिल्में बनीं। इसमें ‘इत्तेफ़ाक़’को बीआर चोपड़ा के पोते और रवि चोपड़ा के बेटे अभय ने बनाया था। खैर, पहले ‘इत्तेफ़ाक़’ की बात। पहली बिना इंटरवल वाली यह फिल्म थी और चौथी ऐसी फिल्म, जिसमें कोई गाना नहीं था। इससे पहले...

परिस्थितियों की वजह से इंसान फट पड़ते हैं और बादल भी...!

कई बार हम शांत लोगों को भी फट पड़ते देखते हैं, यह परिस्थिति जन्य होता है। ऐसा ही आसमान के बादलों के साथ भी होता है। आसमान में वे भले हमें लुभाते बहुत हों ले‌िकन जब अवरोध आता है तो परिस्थितिजन्य हालातों में इस टकराव का नतीजा ही बादल फटना कहलाता है...! दूसरे शब्दों में- बादल फटना या क्लाउड बर्स्ट बारिश होने का एक्सट्रीम फार्म है। सरल भाषा में समझें तो जब बादल भारी मात्रा में पानी के साथ आसमान में चलते हैं और अचानक उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है तब वे फट पड़ते हैं। ऐसे में पानी इतनी रफ्तार में गिरता है कि एक सीमित जगह पर लाखों लीटर पानी धड़ाम से गिर पड़ता है। आप सही समझे...! जैसे- पानी की टंकी अचानक फट पड़े...! तो आसपास क्या हालात होंगे...! आपका ‌िदमाग हिल गया... अरे! जरा 2013 मेें 16 और 17 जून को केदारनाथ में हुई तबाही का मंजर याद करें... याद न आ रहो तो सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म ‘ केदारनाथ’ देख लें... सब साफ हो जाएगा...! दृश्य देखकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे आपके। चलिए एक पुरानी कथा सुनाता हूं। वैसे तो आप इसे जानते भी होंगे लेकिन फिर भी आपको बोर करने का रिस्क उठाता हूं...! पुराने पन...

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की गोली मारकर हत्या से विश्व सकते में... पर पहले भी हुई हैं ऐसी घटनाएं

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Shinzo Abe) की गोली मारकर हत्या तारीख आठ जुलाई 2022 को यह घटना उस समय हुई जब शिंजो आबे एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे। हमलावर तत्सुका यामागामी ने पीछे से उन्हें गोली मारी। घटना के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। हमलावर तत्सुका यामागामी जापान की नेवी का ऑफिसर रहा है और जापानी मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, उसने बताया कि वह आबे से 'असंतुष्ट' था। मौके पर वह एक पत्रकार बनकर कार्यक्रम स्थल तक पहुंचा था। वह साथ में हैंडगन लेकर गया था। हमलावर ने बंदूक को कैमरे की तरह रखा हुआ था। घटना के संबंध में आरोप लग रहा है कि हमले की साजिश चीन ने रची है पर इसकी पुष्टि नहीं हुई है और न ही किसी भी तरह का कोई आधिकारिक बयान सामने आया है। हमारा जीवनएक इत्तेफाक है... यह बात मैं यूं ही नहीं कहता... (Shinzo Abe) शिंजो आबे (Shinzo Abe) की हत्या से फिर इस तरह की हुई घटनाएं ताजा हो गईं...! पहले भी कई राष्ट्रप्रमुखों और बड़े नेताओं की हत्या की जा चुकी हैं। इनमें से अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राह्म लिंकन और जॉन...

ZEE1EK-Itifaq जीवन एक इत्तेफाक

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हमारी आत्मा अमर और अक्षय है, ठीक इसी प्रकार आशा है। जब तक यह हमारे पास रहती है, लड़ते रहते हैं जीतने के लिए। अस्तित्व में जो कुछ भी मौजूद है, वह ऊर्जा ही है। जीवन प्रक्रिया अनंत से जुड़ी है। हमारे अंदर भी अनंत है, जो अक्षय है। इसलिए हमें खुद मरने का अहसास भी नहीं होता। हमारे अंदर कुछ ऐसा है, जो कभी खत्म नहीं होता। यही ‘जी’ है... इसे ‘जीरो’ भी कह सकते हैं... दाएं लगते ही यह व्यक्ति की ताकत को कई गुना बढ़ा देता है। दूसरी बात हर शुरुआत ‘1EK’ बोले तो 1एक से होती है। एक-एक मिलकर 1EK (1एक) हो जाते हैं, दो हो जाते है और ग्यारह भी... केवल फर्क नजरिये का है। जीवनएक ZEE1EK हम सभी के पास ‘जीवनएक’ ही है और इसे खूबसूरत बनाना है... यही सकारात्मक सोच विकसित करनी है। जैसे- हर व्य‌िक्त ‘सम्मान’ चाहता है और जब हम किसी व्यक्ति के नाम के साथ ‘जी’ लगाकर संबोधित करते हैं तो उसे सम्मान का बोध होता है और उसका चेहरे खिल जाता है। दूसरी बात, हर इंसान को ईश्वर ने एक अलग पहचान दी है और हम सब में कुछ न कुछ अंतर भी है। इसके बावजूद ऊपर वाले ने सबको एक दिन में बराबर समय देकर समान भी दर्शाया है। ईश्वर-एक है और खून ...