रविवार, संडे या इतवार... बस नाम का फर्क है... लेकिन
#1EK लेखक साहिर लुधियानवी... दो फिल्में वर्ष 1959 मंे रिलीज हुई फिल्म ‘धूल का फूल’ का गाना ‘तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा...’, जिसे मोहम्मद रफी ने गाया था... और वर्ष 1968 में रिलीज ‘दो कलियां’ का गीत, जिसे लताजी ने गाया था- ‘बच्चे मन के सच्चे, सारे जग की आँख के तारे ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे...’ मेें बच्चों को कच्ची मिट्टी सरीखा बताकर इस नई पौध को सही दिशा देने की बात कही थी...! लेकिन बदलते दौर में अब शिक्षा के क्षेत्र में यह सोच अब धरातल पर नहीं दिख रही.. बल्कि बच्चों का बालपन खत्म करने का कुचक्र रचा जा रहा है...! माना जाता है कि बचपन तब खत्म हो जाता है जब कोई बच्चा खिलौना आदि की मांग करना बंद कर दे और अब ज्यादातर बच्चे खिलौने की जगह मोबाइल के नागपाश में फंसने लगे हैं...! दूसरी ओर स्कूलों में एक्टिविटी के नाम पर बच्चों को जो काम करने को दिया जा रहा है, वो मां-बाप कर रहे हैं या किसी और से करवा रहे हैं। इसी प्रकार स्कूल चलाने वाले पुरोधा बच्चों को अपनी सोच के दायरे मेें समेटने के लिए उनकी रचनात्मक प्रवृत्ति को खत्म करने की जद्दोजहद में जु...