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टेलीविजन बोले तो वसुधैव कुटुंबकम

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टेलीविजन बोले तो छोटा पर्दा... अब यह और भी छोटा होकर हाथों तक सिमट गया है। दूसरे शब्दों में मोबाइल की दुनिया... अब बात करते हैं जनरल नॉलेज यानी जीके के एक तथ्य की। वर्ष 1996 के नवंबर में संयुक्त राष्ट्र ने पहला वर्ल्ड टेलीविजन फोरम आयोजित किया था। इसमें कई प्रमुख मीडिया हस्तियां शामिल हुई और उन्होंने देश-दुनिया में टेलीविजन के बढ़ते हुए महत्‍व पर चर्चा की। यह दो दिवसीय आयोजन 21 और 22 नवंबर तक चला। बाद में 17 दिसंबर 1996 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 नवंबर को विश्व टेलीविजन दिवस मनाने की घोषणा की। आज यह सभी मानते हैं कि टेलीविजन और मोबाइल ने हमारी बदलती जीवनशैली को खूबसूरती से अपनाया है और आज हम इसके बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। विश्व टेलीविजन दिवस बोले तो वसुधैव कुटुंबकम! अब चलिए थोड़ा पीछे लौटते हैं। जीके एक तथ्य बताता है कि टेलीविजन का आविष्कार स्कॉटिश इंजीनियर जॉन लोगी बेयर्ड ने वर्ष 1924 में किया था। इसके बाद वर्ष 1927 में फार्न्सवर्थ ने दुनिया के पहले वर्किंग टेलीविजन का निर्माण किया। इसके बाद एक सितंबर 1928 में मीडिया के सामने इसे पेश किया गया। शुरुआत में टीव...

बच्चे का #एडमिशन #सैनिक_स्कूल में कराना है तो...

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बच्चे का #एडमिशन #सैनिक_स्कूल में कराना है तो... AISSEE Notification 2024 नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) ने ऑल इंडिया सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा (AISSEE 2024) के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू कर दिया हैं। इच्छुक उम्मीदवार अपना फॉर्म वेबसाइट Exams.nta.ac.in/AISSEE/ पर जमा कर सकते हैं। AISSEE 2024 के लिए आवेदन की आखिरी तारीख 16 दिसंबर, शाम 5 बजे तक है। पांचवीं के बाद छठी.... यानी बच्चों की पहली नींव... शैक्षणिक वर्ष 2024-25 के लिए सैनिक स्कूलों में प्रवेश के लिए फॉर्म आ गए हैं। साथ ही नौवीं तक के लिए प्रवेश लिए जाएंगे। सैनिक स्कूल में प्रवेश परीक्षा के माध्यम से दाखिला मिलता है। गौरतलब हैं कि देश में सैनिक स्कूलों की संख्या 33 है। AISSEE इन सैनिक स्कूलों में कक्षा 6 और कक्षा 9 में एडमिशन के लिए एग्जाम आयोजित करती है। सैनिक स्कूल केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से संबद्ध अंग्रेजी मीडियम के आवासीय स्कूल हैं। वे राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, भारतीय नौसेना अकादमी और अन्य ट्रेनिंग अकादमियों के लिए कैडेट तैयार करते हैं। शेड्यूल के मुताबिक कक्षा 6 से 9वीं में एडमिशन के लिए ऑनलाइन आवेदन फॉर्म आधिकारिक वे...

बहादुर शाह जफर..... महल नहीं अंतिम सांस गैराज में ली

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अंतिम मुगल सम्राट का नाम... बहादुर शाह जफर... बहादुर बोले तो वीर.. शाह अर्थात राजा और ज़फर का मतलब होता है विजय... लेकिन किस्मत ने उन्हें बादशाह होने के बावजूद बहुत गम दिया। उनकी असाधारण शोहरत की वजह 1857 ई. का इंकलाब माना जाता है लेकिन यह भी सच है कि वह #1EK बड़े शायर भी थे। अपनी मौत से पहले ही उन्होंने लिख दिया था- कितना बदनसीब है ज़फर दफ़न के लिए, दो गज़ ज़मीन भी न मिले कुए यार में...। तारीख थी 7 नवंबर 1862 और जगह थी रंगून (अब म्यांमार)... उनकी मौत हो गई और भारत का अंतिम मुगल सम्राट गुमनामी में खो गया। इसे मुकद्दर ही कहेंगे कि उनकी चार बीबियों से 47 औलादें हुईं थीं... लेकिन उनके आखिरी समय में सिर्फ दो बेटे बचे थे। इससे पहले उनकी जिंदगी में आई सात अक्टूबर की तारीख... उन्हें गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए काला साया बनकर आई थी। किसी को पता तक नहीं चला कि बहादुर शाह ज़फर को निर्वासित कर दिया गया। तड़के तीन बजे अंग्रेज अफसरों ने उन्हें नींद से जगाया और फौरन तैयार होने का फरमान सुना दिया। समय बलवान होता है... इस समय वह बादशाह केवल नाम के रह गए थे... और दिल्ली मंे हुक्म अंग्रेजों का चल रहा थ...

जानते हैं... भारत की सबसे महंगी कार अंबानी, अडाणी के पास नहीं....

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हर गाड़ी खास है... क्योंकि उसके पास अपनी पहचान है... बोले तो उसका नंबर लेकिन ऐसा पहले नहीं था। आपने कभी सोचा है कि इस दुनिया में पहली नंबर प्लेट की शुरुआत कहां से हुई? चलिए हम आपको बताते हैं... वर्ष 1783 में फ्रांस के राजा लुईस सोलहवें ने अपनी बग्घी पर सबसे पहले नंबर प्लेट का प्रयोग किया था ताकि उनकी गाड़ी अन्य गाड़ियों से अलग दिखे। इसके बाद जब कार और अन्य गाड़ियों की संख्या बढ़ी तो रिकॉर्ड रखने के लिए नंबर प्लेट की शुरुआत हुई। सबसे पहले फ्रांस में यह चलन शुरू हुआ। तारीख थी 14 अगस्त 1893... और जब इस नंबर प्लेट के फायदे की जानकारी दूसरों को हुई तो जर्मनी ने 1896 और नीदरलैंड ने 1898 में नंबर प्लेट सिस्टम को अपनाया। इसके बाद दुनिया भर में यह सिस्टम लागू होता गया। भारत में नंबर प्लेट की शुरुआत 1902 से यानी अंग्रेजों के कार्यकाल से मानी जाती है। देश में इस समय जो नंबर प्लेट सिस्टम लागू है उसे 90 के दशक में लाया गया था। समय बदला तो लोगों का खास नंबरों पर रुझान भी बढ़ने लगा। नतीजा... कई नंबर वीआईपी और कुछ वीवीआईपी...। जैसे 0001 और 0007 आदि। गौरतलब है कि श्रेणी #1EK नंबर प्लेटों में 0001...

पापा! #1EK प्रेरणा... दो कहानियां...

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पापा... पिता जी... डैड... संबोधन कोई हो... प्रेम एक-सा ही मिलता है...! कई बार चेहरे पर रूखा भाव होता है तो कभी गुस्सा दिखता है पर प्रेम एक-सा ही मिलता है...! #11EK पिता के प्रेम की दो कहानियां पेश हैं.... बच्चों के किरदार में हैं बेटियां... पिता का नाम ः प्रेम गुप्ता और बेटी का नाम साक्षी यह कहानी है #1EK हौसले की... जो पिता ने अपनी बेटी को दिया। फ्लैश बैक में जाते हैं... तारीख 28 अप्रैल 2022.... उन्होंने झारखंड बिजली वितरण निगम में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत और रांची के सर्वेश्वरी नगर निवासी सचिन गुप्ता के साथ अपनी बेटी साक्षी का विवाह बड़े धूमधाम से किया। कई कहानियां की तरह.... साक्षी का उत्पीड़न ससुराल में किया जाने लगा। पता चला कि सचिन ने दो शादियां की हुईं हैं... आरोप-प्रत्यारोप के बीच साक्षी की जिंदगी शोषण और प्रताड़ना से जहन्नुम बन गई। तब उसने पिता को सारी बात बताई। अमूनन मायके वाले बेटी को समझाते हैं कि ससुराल से उसकी अर्थी ही निकलेगी लेकिन यहां मायके वालों ने बेटी की जिंदगी को अहमियत दी... जब पिता ने अपने नाम के अनुरूप बेटी को अपने प्रेम का रूप दिखाया तो बेटी भी वापस म...

ढपोरशंख की वाणी में पेश है ‘संजय’ गाथा...।

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द्वापर युग में महाभारत हुई... उसमें महाराज धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे और संजय को सब कुछ दिख रहा था लेकिन इस कलयुग में आम आदमी पार्टी के संजय सिंह को सब देख रहे हैं और जनता नेत्रहीन है। कौरव-पांडव की तरह आप और भाजपा के कार्यकर्ता और नेता आपसी कलह में जूझ रहे हैं। ढपोरशंख की वाणी में इस बार पेश है ‘संजय’ गाथा...। चर्चा में नाम-संजय सिंह... काम-राजनीतिज्ञ... दल-आम आदमी पार्टी और ‘दाम’ बोले तो रुपये के चक्कर में वह इस समय जबरदस्त चर्चा पा रहे हैं। ढपोरशंख की वाणी में इस बार इनका गुणगान करता हूं। उत्तर प्रदेश में एक जिला है सुलतानपुर, जहां पर संजय सिंह का जन्म हुआ। इत्तफाक की बात है कि यह मेरे भी पूर्वजों का जिला है। यहीं का मैं भी मूल निवासी हूं... खैर, चर्चा हो रही है संजय सिंह की तो मैं कौन हूं.... जनता को क्या मतलब। तो संजय सिंह जी उड़ीसा में स्कूल ऑफ माइनिंग से इंजीनियरिंग से डिप्लोमा करने के बाद वे समाजसेवा के रास्ते राजनीति में आ गए। पंजाब केसरी की एक रिपोर्ट के अनुसार, माइनिंग से इंजीनियरिंग करने के बाद शुरुआती वेतन 25 हजार रुपये महीना होता है और बढ़ते हुए 50 हजार रुपये महीना तक पहु...

कॉरपोरेट जगत में भी #1EK स्वामीनाथन की है जरूरत

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कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन... बोले तो भारत की हरित क्रांति के जनक; इस दुनिया से रुखस्त भले हो गए हों लेकिन उनके किए गए काम से चमक रहा उनका नाम सदैव के लिए अमर हो चुका है। भारत की जनसंख्या आज विश्व में सर्वाधिक मानी जा रही है लेकिन देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर है, तो इसका श्रेय डॉ. स्वामीनाथन, अमेरिका के महान कृषि वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग और उनके साथी कृषि वैज्ञानिकों को दिया जाता है। डॉ. स्वामीनाथन और बोरलॉग के नेतृत्व में हुए अनुसंधानों के चलते बीमारियों से लड़ सकने वाली गेहूं तथा बाजरा के नए उन्नतशील किस्म के बीज विकसित किए गए थे। गौरतलब है कि दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र, पूसा में यह अनुसंधान किया गया था। यहां पर उल्लेखनीय है कि ये वैज्ञानिक अपने गहन शोध के दौरान इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि यदि पौधे की लंबाई कम कर दी जाए, तो इससे बची हुई ऊर्जा उसके बीजों में लग सकेगी। इससे कुल फसल की पैदावार बढ़ेगी। इनकी सोच रंग लाई और एक हेक्टेयर में दोगुना गेहूं की पैदावार संभव हो गई। पहले जहां करीब 20 क्विंटल गेहूं की फसल किसान ले पाता था, अब यह पैदावार करीब 40 कि्व...