बढ़ती जनसंख्या के फायदे-नुकसान

डॉ. श्याम प्रीति #1EK सांस से शुरू हुआ सफर जिंदगी कहलाता है और जैसे ही सांस थमती है, जिंदगी खत्म...! लेकिन जब ऐसी सांसों का संगम होने लगता है तो जन-जन से जुड़ने वाले इस समूह तो हम जनसंख्या कहते हैं। इस पर वाह-वाह कहने से बेहतर है कि बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणामों पर चर्चा की जाए...! कहते हैं कि जनसंख्या वृद्धि से देश के समक्ष बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोषण जैसी समस्याएं मुंह खोलना शुरू करती हैं और फिर शहरी क्षेत्रों में घनत्व बढ़ता है और प्रति व्यक्ति की आय में कमी होने लगती है, नतीजा परेशानियों का बढ़ना...! इस नजरिये का दूसरा पहलू भी है। अब हंसना मत, जनसंख्या को राष्ट्र की शक्ति भी कहा जाता है। कैसे? यार, आप सवाल बहुत पूछते हैं। खैर, घमंड से बताता हूं- रजिस्टर्ड बुद्धिजीवी जो हूं बोले तो पत्रकार। देखिए साब! जब जनसंख्या बढ़ती तो कुशल श्रम, मानव संसाधन का निर्यात, जनांकिकीय लाभांश और सस्ते मजदूरों जैसे कारकों का लाभ उठाना आसान हो जाता है। इसके अलावा ज्यादा जनसंख्या बोले तो बड़ा बाजार। जैसे भारत का हाल है। विदेशी कंपनियों को कमाई चाहिए तो माल की खपत कहां होगी? सही पकड़े हैं हुजूर, भारत जैसे मुल्क में, जहां लोगों की तादात बहुत ज्यादा है। कंपनी देसी हो या विदेशी सबके लिए हमारा भारत एक बहुत ही अनुकूल देश है जहां पर उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक आसानी से सब एक जगह मिल जाता है। शायद यही वजह है कि यहां ज्यादातर लोगों को मेहनत के अनुसार काम के पैसे कम ही मिलते हैं और ऐसे में ज्यादातर आंखों से काजल चुराते हैं और कोई-कोई तो सीधा हाथ मारता है। कुछ महानुभाव मेरी तरह ईमानदार होते हैं तो रोते रहते हैं...! खुद के आंसू पोंछते हैं और जीवन के संघर्ष मेें जुटे रहते हैं। और दूसरी कैटेगरी के सुविधा संपन्न लोग विदेशों की ओर रुख करते हैं... काहे? कमाई के लिए और अपने परिवार की आय बढ़ाने के नए स्रोत तलाशने के लिए। यहां आपको यूक्रेन युद्ध से पहले का वाकया याद करने की जरूरत है। जब वहां पर शिक्षा ग्रहण करने गए तमाम युवाओं को भारत सरकार ने एक्सपोर्ट कर वापस इंपोर्ट किया था...! तब सबको भारत की अहमियत का पता भी चला। एक तिरंगे ने कैसे तमाम छात्रों की जान बचाई थी। यह था जनसंख्या की ताकत का एक नमूना। आपके चेहरे की हंसी बता रही है कि आपको मजा आ रहा है। खैर, यही सबसे अच्छी चीज है लेकिन मेरे जैसे लोग केवल हंसने की सलाह देते हैं, हंसते नहीं हैं। इस पर चर्चा करना फिजूल है, क्योंकि हम बता नहीं सकते तो आप सुनना भी नहीं चाहेंगे। खैर, ज्यादा जनसंख्या हो तो सेना बनाई जा सकती है और खेलों आदि में प्रतिस्पर्धा करवाकर श्रेष्ठ लोगों को जुटाया जा सकता है। यह तो सकारात्मक सोच है जनाब लेकिन हमारे देश में ‘जुगाड़’ नाम का एक अचूक मंत्र है, जिसके सहारे ‘जग घूमेया थारे जैसा ना कोई...’ गाना हर कोई गाता है। जिसका जुगाड़ लग गया, वो काबिल और जिसका नहीं लगा तो नेतृत्व करने वाले अर्थात बॉस का पिछलग्गू बन जाता है। नेतृत्व करने वाला ही नेता कहता है और नेता बनने के लिए सोचना दिमाग से पड़ता है। ऐसा तभी संभव हो सकता हो जब पेट भरा हो। वैसे भी हमारे यहां कहा जाता है- भूखे पेट भजन नहीं होय गोपाला ले तेरी कंठी, ले तेरी माला। कुल मिलाकर साब! बढ़ती जनसंख्या के फायदे हैं तो नुकसान भी हैं। व्यापारी हर दृष्टिकोण से फायदा देखता है और मजदूर को हर काम मंे नुकसान दिखाई देता है, क्योंकि उसका पेट खाली होता है!

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