यमराज को नारदजी का "भौकाली" ज्ञान...!

डॉ श्याम प्रीति यमलोक में अपने सिंहासन पर गंभीर मुद्रा में बैठे यमराज के चेहरे पर पसीने की बूंदें छलक रही थी तभी नारद जी का आगमन हुआ...! नारायण...! नारायण...! महाराज यमराज! आपके चेहरे पर पसीना...! क्या यहां का एसी नहीं चल रहा..! फिर व्यंग्य करते हुए बोले, पृथ्वी लोक की तरह यहां भी बिजली कटौती शुरू हो गई क्या? नारद जी! आपको इस तरह से तुच्छ व्यंग्य करते हुए शोभा नहीं देता...! तभी वहां पर चित्रगुप्त का आगमन हुआ। वह बोले, क्या हुआ प्रभु ? आज चिंतित लग रहे हैं? क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं? यह सुनकर यमराज ने नारद की और निहारा...! फिर उनके मुख से वचन निकले- देखा नारदजी ऐसे होते हैं विश्वासपात्र सेवक। जो चेहरा देखकर ही समस्या का अंदाजा लगा लेते हैं और आप जैसे पत्रकार समस्या देखकर उनका समाधान नहीं मजाक बनाया करते हैं। यह सुनकर नारद जी का खिला चेहरा थोड़ा-सा मुरझा गया लेकिन नारायण...! नारायण...! कहते ही चेहरे की लालिमा एक बार फिर से नजर आने लगी। तभी चित्रगुप्त ने प्रश्न किया- महाराज! कोरोना वायरस के प्रकोप से पृथ्वी लोक के लोग मर रहे हैं और चिंतित आप नजर आ रहे हैं, यह बात कुछ समझ में नहीं आई? चित्रगुप्त जी! आपका कथन सर्वथा उचित है लेकिन कोरोना वायरस से हम भी परेशान हो गए हैं। अभी तो फिलहाल स्थिति ठीक है। कुछ समय पहल मृत शरीर ढोते-ढोते हमारे यमदूतों ने पृथ्वीलोक की तरह हड़ताल करने की चेतावनी हमें जारी कर दी थी। उनका कहना था कि हाथों को सैनिटाइज करते-करते हमारी जीवन रेखा धुंधली पड़ने लगी है..! उनका कहना था कि प्रभु आपने हमें मुर्दे ढोने के काम में खच्चर की तरह लगा दिया है और हम भी मूर्ख अपने काम का मूल्यांकन किए बिना कोल्हू के बैल की जुटे हुए हैं। हमारे काले-कलूटे शरीर को देख कर पृथ्वी की सारी आत्माएं घृणा से नाक-मुंह सिकोड़ने लगती है। कहती हैं, इतना लंबा सफर इसके साथ कैसे कटेगा? यह तो पहली समस्या है। यह सुनकर चित्रगुप्त की मुखमुद्रा भी गंभीर हो गई। महाराज यमराज ने बात आगे बढ़ाई...! दूसरी समस्या इससे भी ज्यादा गंभीर है। देवदूत फरमाते हैं जो भी आत्मा लेने जाओ, 99 फीसद लोगों की मौत का कारण कोरोना वायरस कर्मफल के रजिस्टर में लिखना पड़ रहा था। आपका सख्त आदेश है कि हर आत्मा को संपूर्ण और सुरक्षित तौर से सैनिटाइज करने के साथ अपने हाथ भी लगातार धोते रहें। एक दिन में 50 आत्माएं पृथ्वी से यमलोक लेकर आने का ठेका हमें मिला है और ऐसे हाथों को धोने के लिए पीठ पर 20 लीटर की केन बांधकर जाना पड़ता था। कांधे पर आत्मा के साथ केन का बोझ भी लगातार हम ढो रहे थे। लॉकडाउन और अनलॉक के चलते सड़क हादसों में कमी के चलते अकाल मौतें भी कम हो गई थी..! भला हो वैज्ञानिकों का जिन्होंने कोरोनावायरस की दवा बना दी! अब हमारे अच्छे दिन फिर लौट रहे हैं! यह सुनकर नारदजी हंस पड़े और बोले- नारायण...!, नारायण...! तो महाराज यमराज आपके देवदूत बोले तो मरदूत पृथ्वी का भार कम करने के साथ वहां मौज-मस्ती भी करने जाते हैं...! नारद जी की इस बात पर चित्रगुप्त भड़क गए। बोले, नारद जी आप धर्म विरुद्ध आचरण कर रहे हैं। यह आपको शोभा नहीं देता। तभी यमराज ने उन्हें हाथों से शांत रहने का इशारा किया। चित्रगुप्त ने सिर झुका लिया। गंभीर मुद्रा में यमराज बोले, नारद जी जैसे आप दिन-रात पत्रकार होने का धर्म निभाते हैं वैसे ही हम सृष्टि को चलाने के लिए आत्माओं को उनके नियत स्थान पर पहुंचाने का कार्य करते हैं। आप समाचार नहीं देंगे तो शायद ना तो पृथ्वी लोक पर और ना यमलोक पर कोई प्रभाव पड़ेगा लेकिन यदि हमने अपना काम बंद कर दिया तो सृष्टि में हाहाकार मच जाएगा। खबर से लोगों को केवल जानकारी मिलती है लेकिन जिसकी कब्र खुद जाती है उसे चिर शांति मिल जाती है...! धरती की जनसंख्या बढ़ने के साथ हमारा काम लगातार बढ़ रहा है। एक क्षण भी चैन की सांस लेने का अवसर ना तो हमें मिलता है और ना चित्रगुप्त को। काम की अधिकता से हम अपने परिवार को समय नहीं दे पाते...! और जिन यमदूतों को आप मरदूतों की संज्ञा देकर उपहास उड़ा रहे हैं, वे तो सब आप के परम भक्त हैं। आप तो बड़े भाग्यशाली हो कि आपको नारायण मिल गए और वे बेचारे भी इसी उम्मीद का दामन थामे अपने काम में जुटे पड़े हैं कि ना जाने कब उन्हें भी आपकी तरह नारायण के दर्शन हो जाए...! तभी चित्रगुप्त जी बुदबुदाए...! ऐसा होना नहीं है...! उनके हाथों में भाग्य रेखा है नहीं...! चित्रगुप्त की बात यमराज के कानों तक पहुंची तो उनके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी। नारद जी की और मुकाते होकर फिर वह बोले, नारद जी आपके केवल एक बॉस हैं प्रभु हरि। आप भी नारायण..! नारायण...! का गुणगान करते हुए चहुंओर विचरण करते रहते हैं और हम सभी के कई बॉस है...! ऊपर तक रिपोर्टिंग करनी पड़ती है। मैं अकेला हूं जिसे भैंसें के रूप में वाहन मिला है और बाकी सभी पैदल विचरण करते हैं। वीणा को कंधे पर लटकाने और शव को लटकाने मैं जमीन-आसमान का अंतर है। कई बार कंधे पर छिल जाते हैं। और आप हमारा मजाक बना रहे हैं...! आप जहां चाहते हो वहां पर नारायण...! नारायण...! का उद्घोष करते हुए प्रवेश पा जाते हो और हम इंतजार करते हैं कि कब शरीर से आत्मा बाहर निकले और उसे हम दबोचे। इसके बाद उसे अपने कंधे पर लादकर अपने यमलोक को रवाना हो जाते हैं। शौक जब पेशा बन जाता है तो मजा आता है और जब पेशा मजबूरी...! यह कहकर यमराज शांत हो गए। पेशा जब मजबूरी बन जाता है तो हर समय दिमाग पर बोझ बना रहता है...! बात चित्रगुप्त ने पूरी की। यह सुनकर नारद जी का दिमाग झनझना गया। आनन-फानन में चेहरे के भाव कठोर हो गए। पत्रकार के दिल में जब कोई बात चुभ जाती है तो यह उसके चेहरे पर साफ दिखने लगती है। लेकिन उतनी ही तेजी से वह खुद को संभाल भी लेता है..! ठीक ऐसा ही नारद जी ने भी किया। जैसे हर पत्रकार का अपना तकिया कलाम होता है। नारद जी ने भी नारायण...! नारायण...! का राग अलापा। फिर खींसे निपोरते हुए बोले- महाराज नाराज ना हो। हर व्यक्ति की पेशागत मजबूरियां होती हैं। आपने अपनी कह दीं, मन का बोझ हल्का हो गया होगा। महाराज! हम पत्रकारों को भी इसी तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सामने वाले को कई बार कुरेदना पड़ता है या पुचकाराना...! खबर निकालने के लिए कई बार आत्मा को भी मारना पड़ता है...! तो कई बार जलील भी होना पड़ता है, जैसे अभी आपने किया। महाराज! पृथ्वी लोक में आपके नाम का हर और डंका बजता है। लोग आपके नाम से भय खाते हैं। और तो और आपके साथ चलने वाले भैंसें का भी रुतबा देखना हो तो किसी से जाकर पूछ सकते हैं...! और जहां पर मैं पहुंच जाता हूं; वहां पर लोग सचेत हो जाते हैं कहीं उनकी पोल ना खुल जाए। अपनी इज्जत का फालूदा ना हो जाए तो उसे बचाने के लिए लोग दूसरों की कमजोरियां बताना शुरू कर देते हैं। जैसे मैं स्वर्ग लोक में गया था, वहां पर देवराज इंद्र का वैभव देखकर मैं हर बार आश्चर्यचकित रह जाता हूं। इसके बावजूद जब उनसे वार्तालाप होता है तब वे भी अपनी समस्याएं गिनाना शुरू कर देते हैं...! भेंट वार्ता के दौरान कल वह कह रहे थे- इतने युगों से मेनका, रंभा और उर्वशी का चेहरा देख-देखकर मैं बोर हो चुका हूं। उनकी हर बात में गुरुर दिखता है। वह हर देवता से स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताते हैं। असुरों के युग में तो उन्हें अपनी राजगद्दी का खतरा हर समय बना रहता था लेकिन इस समय वह भी दूर हो गया है। मानव समाज से भी उन्हें कोई खतरा नहीं है। किसी की भी तारीफ उनके सामने करो तो वह नाराज हो जाते हैैं। वह कह रहे थे कि नाराद जी मैं देवराज इंद्र हूं यानी सर्वश्रेष्ठ...! मेरे सामने किसी की महिमा का बखान अर्थात मेरी निंदा करना है। यह आप जैसे भद्र पुरुष को शोभा नहीं देता। मेरे लिए स्वर्ग लोक हो या यमलोक, दोनों बराबर हैं। एक जगह सुखों का अंबार है तो दूसरी जगह पर दुखों की भरमार...! पर मैं ऐसा तराजू हूं कि अपने दोनों पलड़ों को हमेशा बराबर रखने की कोशिश में जुटा रहता हूं। मेरा एकतारा सभी को जागरूक करता रहता है...! कहते हुए उन्होंने इसे बजाया और नारायण..! नारायण...! का उद्घोष किया। उनकी बात पर चित्रगुप्त ने कहा, महाराज कुछ और ज्ञान दें। इस बात पर नारद जी मुस्कुराए। बोले, चित्रगुप्त जी! समस्याएं कभी खत्म नहीं होती। यमराज बोले कैसे? नारद जी फिर मुस्कुराए। बोले, नारायण...! नारायण...! महाराज, भैंसे की सवारी करनी हो तो उसे चारा खिलाना पड़ता है। सुविधा का मूल्य तो चुकाना पड़ता है..! चहुंओर समस्याओं का अंबार है। कोई मोटा है तो पतला होना चाहता है और पतला तंदुरुस्त बनने की जुगत में जुटा रहता है। देवराज इंद्र सुखों से परेशान हैं और आप दुखों से। महाराज! सत्य यही है कि सुख और दुखों का निर्धारण हमारी भावनाओं से होता है। इसलिए भावनाओं पर नियंत्रण जरूरी है। जब स्वर्ग लोक के स्वामी इंद्र देव परेशान हो सकते है तो कोई कैसे बच सकता है? मेरी समस्या है कि मैं कहीं टिक नहीं सकता और आपकी समस्या है कि आप आत्माओं के साथ डांस नहीं कर सकते...! जब नियति ने आपको उन्हें कष्ट देने के लिए तय किया है तो आप स्वयं कष्ट क्यों भोग रहे हैं? मानव प्रजाति में तमाम ऐसे बंदे हैं जो दूसरों को कष्ट देने में सुख का अनुभव करते हैं, तो उनकी आत्माओं से कुछ सीखिए...! ज्ञान तो हर एक कण में व्याप्त है...! असली ज्ञान तो हमें तब मिलता है जब हम हर चीज से कुछ ना कुछ सीखने लगते हैं नारायण...! नारायण ... नारदजी का "भौकाली" ज्ञान... सुनकर यमराज के ज्ञान चक्षु खुल गए और इसके बाद नारदजी यमराज से विदा लेकर पृथ्वी लोक की ओर चल पड़े...! डॉ श्याम प्रीति

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