विकास@विनाश

डॉ. श्याम प्रीति विकास नगर मोहल्ले में आज ज्यादा चहल-पहल थी। चमचमाती सीसी टाइल्स रोड का उद्घाटन जो होना था...! नौवीं-दसवीं के छात्र दक्ष के घर के सामने बने तीन मंजिला मकान की रेलिंग में लगे बैनर पर विधायक पवन कुमार का नाम लाल रंग से बड़े हर्फों में चमक रहा था। मोहल्ले के कई कथित गणमान्य लोगों के नाम भी नीचे की ओर छपे थे। बैनर के ठीक नीचे स्टेज बनाया गया था। उसके सामने रोड पर कुर्सियां बिछाई जा रही थीं। घर के फर्स्ट फ्लोर में बने कमरे की खिड़की से यह नजारा देख रहा दक्ष थोड़ा दुखी था। इसकी वजह थी, जो उसके भारी विरोध के बावजूद उखाड़ फेंकी गई थी...! शून्य के निहारते दक्ष की निगाहों में बीती बातें एकाएक घूमने लगीं...! सीन-1 रोड की नाप-जोख हो रही थी। इसे देखकर ज्यादातर मोहल्ले वाले खुश थे तो कई खफा भी नजर आ रहे थे। नाराज होने वालों में ज्यादातर वो थे, जिनके अवैध कब्जे रोड बोले तो सड़क के विकास के लिए बलि चढ़ रहे थे। मौसम सुहावना था और शायद इसीलिए मजदूरों के काम की स्पीड भी देखने लायक थी। दनादन हथौड़े चल रहे थे और चबूतरे या फर्श की बैंड बज रही थी...! कई लोगों से सड़क की यह हालत देखी नहीं जा रही थी लेकिन मोहल्ले वाले कर भी क्या सकते थे? काम का ठेका तो ठेकेदार के पास था और वह एसी कार में बैठकर मजदूरों की मदद से इसे करवा रहा था। मेहनत मजदूर कर रहे थे और कमीशन के बाद की सारी कमाई बिना पसीना बहाए उसका होनी वाली थी...! सच है, घरों के सामने की सफाई जब गंदगी में बदलती है, तब खाली प्लाट पर फेंके जाने वाले कूड़े जैसी हालत हो जाती है...! बढ़िया सीसी टाइल्स वाली रोड चाहिए तो पहले खुदाई झेलो...! यह जानने नहीं महसूस करने की चीज है...! खैर, नाप-जोख के दौरान अचानक ठेकेदार की निगाह में रोड पर लगा नीम का पेड़ खटका...! यह दक्ष के घर के सामने लगा था। उसने मजदूरों को इशारा किया तो उन्होंने काम रोक दिया। सब वहां पर आकर सुस्ताने लगे। काम अचानक रुका तो कुछ 'जागरूक' मोहल्ले वाले ठेकेदार के बगल में खड़े होकर 'हालचाल' लेने लगे...! कार में बैठा ठेकेदार बोला- 'सही ढंग से रोड बनाने के लिए इस पेड़ का हटना जरूरी है। आप लोग क्या कहते हैं...?' मोहल्ले वालों को पेड़ से नहीं रोड से मतलब था इसलिए लगभग सब बोल पड़े- 'आपको जो बेहतर लगे, वो करें। हमें तो बस रोड बढ़िया चाहिए।' दरवाजे पर खड़ा दक्ष सारा वार्तालाप सुन रहा था। उसके दिमाग में कहीं पर पढ़ा वाक्य घूमने लगा... 'अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता...', पर यहां जनता अपना काम बनाने के लिए एक बेजुबान पेड़ को भाड़ में झोंकने के लिए हो-हल्ला मचा रही थी...! अचानक दक्ष को ना जाने क्या सूझा, वह झपट कर उन लोगों के सामने पहुंच गया और बोल पड़ा- 'जिस छांव के नीचे खड़े रहते हो, उसी को काटने की बात कर रहे हो...! क्या यह आपको शोभा देता है...?' उसकी बात सुनकर ठेकेदार तो चुप हो गया लेकिन मोहल्ले वालों को एक मुद्दा जरूर मिल गया कि वे सभी अकेले दक्ष से पिल पड़े। दक्ष वैसे तो बहुत होशियार था लेकिन इतनी भीड़ को संभालना उसके लिए खासा मुश्किल हो रहा था...! कहते भी हैं कि भीड़ सबसे कम बुद्धि वाले आदमी के हिसाब से सोचती है...! और ऐसे में दक्ष को हारना ही था...! तभी शोरगुल सुनकर उसके पिता और बाबा भी पहुंच गए। लड़ाई की वजह पता चलने पर उन्होंने भी पेड़ काटने का विरोध किया क्योंकि वह उनके घर को भरपूर छाया दे रहा था लेकिन काफी मान-मनोव्वल के बाद मोहल्ले वालों की बात उन्होंने भी मान ली...! सीधी सी बात थी, उन्हें वही मोहल्ले में रहना था और एक नीम के पेड़ की खातिर पूरे मोहल्ले से 'बैर' लेना ठीक ना था...! आरी और कुल्हाड़े चलने लगे...! घड़ी में समय बदला और दक्ष का प्यारा नीम क्या, घर के दरवाजे से उसकी छाया का भी लोप हो गया...! रोड के विकास के लिए एक और पेड़ का विनाश कर दिया गया था...! मोहल्ले वालों की एकता की शक्ति के आगे दक्ष पराजित हो गया था...! सीन-2 (फ्लैश बैक) संस्कार सीखने आए बच्चे क्लास में एक-दूसरे से जूझ रहे थे। कल से गर्मी की छुट्टियां शुरू हो रही थीं लेकिन आज यहां पर माहौल काफी तनावपूर्ण दिख रहा था। एक कोने में खड़ी शांति, स्नेहा और एकता उन्हें चुपचाप देख रही थीं। यही क्लास का भी सच था...! आपस में भिड़े बच्चों ने शांति, स्नेह और एकता को दिमाग से जैसे भुला दिया था...! अचानक दक्ष ने क्लास में प्रवेश किया। साथियों को आपस में भिड़ता देख वह चिल्लाया- 'आपस में क्यों लड़ रहे हो तुम सब?' उसकी गरजती हुई आवाज सुनकर सभी बच्चे शांत हो गए। क्लास का मानीटर दक्ष सचमुच में अपने हमउम्र साथियों में हनक रखता था...! इसकी एक वजह उसकी मेधा थी और दूसरा उसकी ताकत और आत्मविश्वास। बाक्सिंग मेें वह कालेज चैंपियन था। क्लास में शांति होने के बाद वह बोला, 'आपस में लड़ो नहीं, एकजुट बनो। भूल गए अंग्रेजों की नीति...! एकता में शक्ति है और शक्ति में ही सब कुछ है...!' सभी बच्चे शांत होकर उसकी बात सुन रहे थे...! थूक गटककर दक्ष फिर बोलना शुरू करता है- 'तन की शक्ति से हम रोगों से लड़ते हैं, मन की शक्ति से गंदे विचारों और धन की शक्ति से अपनी तमाम समस्याओं से...! और जन की शक्ति सबसे बड़ी होती है। तभी कहा जाता है कि एकता के बलबूते हम किसी को भी परास्त कर सकते हैं...!' उसकी तकरीर सुनकर उसके सारे साथी तालियां बजाने लगते हैं...! सीन-3 कार्यक्रम में बज रहीं तालियों की जोरदार आवाज से दक्ष की तंद्रा टूटती है। वह सामने देखता है तो विधायक पवन कुमार मंच पर खड़े नजर आते हैं। सामने पड़ी कुर्सियों पर मोहल्ले वाले बैठकर उनकी 'रसभरी' बातों को सुनने के लिए बैठे हैं। वहां पर तेज खुसफुसाहट देख विधायक पवन कुमार हाथों से लोगों को शांत करने का इशारा करते हैं। फिर माइक पकड़कर बोलना शुरू करते हैं- 'भाइयों और बहनों...! आपका विकास ही हमारा सपना है। यह रोड बनाकर हमने इसे साबित भी किया है। बहुमत में होने से हमें कोई हिला नहीं सकता है...!' तभी लोगों के साथ उन्हें भी सब कुछ हिलता-ढुलता महसूस होता है...! पैरों के नीचे टाइल्स ऊपर-नीचे होती महसूस होती है...! अचानक कोई चिल्ला पड़ता है- 'भागो...! लगता है भूकंप आया है...!' फिर क्या.... कुर्सियां छोड़कर ज्यादातर लोग खाली प्लाट की ओर भागते हैं...! वहां पर उन्हें न गंदगी समझ आती है और न ही बदबू। झटका तो कुर्सी पर बैठे दक्ष को भी महसूस होता है लेकिन वह डरता नहीं...! वह सारा तमाशा देखने के लिए धैर्य की 'सीट बेल्ट' बांधकर वहीं जम जाता है...! ...और थोड़ी देर में वहां का नजारा बदल जाता है...! विधायक जी तमाम लोगों के साथ कूड़े के ढेर पर खड़े हैं...! उन्हें देखकर दक्ष बुदबुदाता है- क्या विकास है सरकार के नुमाइंदे का...! मंच से सीधे कूड़े के ढेर पर...! मंद-मंद मुस्कुराता दक्ष अपनी आंखें बंद कर लेता है...! सीन-4 घर की नेम प्लेट पर नाम चमक रहा है- विकास शर्मा। वहां से एक शख्स हाथों में पालीथिन लेकर निकलता है। उन्हें देखकर सड़क पर खड़ा दक्ष कहता है- 'शर्मा अंकल...! आप लोग इस खाली प्लाट में कूड़ा फेंककर ठीक नहीं कर रहे। यह गैरकानूनी है...!' शर्मा अंकल को अपने घर का कूड़ा दूसरे की जगह में डालने में कोई शर्म नहीं आती क्योंकि वे बडे़ बेशर्म व्यक्ति हैं...! 'जाओ दक्ष...! खेलो जाके...! सफाई करने के लिए सफाईकर्मी हैं...! ले जाएंगे इसे...!' कहकर पालीथिन भरा कूड़ा हाथ में झुलाते हुए खाली प्लाट में फेंक देते हैं...! ...और कूड़े के ढेर में एक और पालीथिन बढ़ जाती है...! उनके नक्शेकदम पर चलने वाले तमाम और भी बेशर्म लोग हैं...! पर दक्ष सबको समझाने की कोशिश करता है...! पर लोग हैं कि मानते नहीं...! वह कोशिश करता रहता है...! समझाता रहता है कि आप लोग कूड़े में जो प्लास्टिक फेंक देते हो, यह नष्ट नहीं होता है। नालियों में फंसकर नाली और नाले को अवरुद्ध करता है। इससे शहर में जलभराव होता है और सभी लोग परेशान होते हैं। आप भी नाली- नाला चोक होने पर सरकार को कोसते हो। खुद की गलती भी तो देखो...! पर लोगों का क्या...! जब पैसा देकर डाक्टर, वकील या किसी अफसर से सलाह लेनी पड़ती है तभी उन्हें इसकी कीमत महसूस होती है। फ्री और बिना मांगे मिलने वाली सलाह पर ज्यादातर लोग ध्यान ही नहीं देते हैं...! दक्ष तो बच्चा था, कोई दूसरा भी ऐसे लापरवाह लोगों को मुफ्त में अच्छी सलाह देता है तो वे एक कान से सुनकर उसे दूसरे कान तक पहुंचने नहीं देते...! अपने घर के दरवाजे पर खड़ा दक्ष आते लोगों को देख रहा है। वे पालीथिन या डस्टबिन में कूड़ा लेकर आ रहे हैं.... और खाली पड़े प्लाट पर फेंक रहे हैं...! सीन-5 खिड़की में बैठा दक्ष जबरदस्त बारिश का आनंद ले रहा है। आसमान से गिर रहा पानी रोड पर भरता जा रहा है। लग रहा है जैसे कोई छोटी गंगा बह रही हो...! तमाम पालीथिन उस पर नाव की तरह तैर रही थीं। पानी थोड़ा रिमझिम हुआ तो जलभराव को रौंदने के लिए कई लोग निकलने लगे। बह रह पानी से बचने के लिए कुछ लोग इधर-उधर चबूतरे या ऊंचे स्थानों पर पैर ररखकर उछल-कूद करते दिख रहे थे। कई लोग छाते लेकर वहां गुजरते हुए सरकार को कोसते दिख रहे थे और कुछ बच्चे पानी में नहाने का आनंद ले रहे थे। मोटरसाइकिल वाले झूं... से गुजरकर पानी उड़ा रहे थे और कुछ की गाड़ी बंद होने पर वहां नहा रहे छोटे बच्चे ताली बजाकर उन्हें चिढ़ा रहे थे...! सच है, पानी तो अपनी रफ्तार से बह रहा था लेकिन कोई इसका आनंद ले रहा था और कोई भगवान से सवाल कर रहा था...! गर्मी के मौसम में गर्मी पड़ेगी। सर्दी के मौसम में सर्दी। जब ज्यादा गर्मी पड़ती है तो लोग भगवान से सवाल पूछते हैं और जब सर्दी पड़ती है तक नीली छतरी वाले की तरफ देखा करते हैं। क्या करें, भगवान...! मौसम न बदले तो पर्यावरण संतुलित नहीं रह सकता और मानव उसे असंतुलित करने में खुद जुटा रहता है और मौसम जब असमय गड़बड़ा जाता है तो दोषी खुदा को ठहरा देता है...! सीन-6 अचानक उड़ते मच्छरों की भनभनाहट से उसकी आंखें फिर खुल जाती हैं। सामने मोहल्ले के लोग गंदगी से भरे खाली प्लाट पर खड़े थे। नई-नई बनी सीसी रोड एक-दो जगह थोड़ी-बहुत धंसी-सी दिखने लगी थी...! दरअसल गली में वह सबसे बड़ा प्लाट था, जिस पर उसके मालिक ने कंक्रीट का महल तो नहीं खड़ा किया था लेकिन लोगों ने उसे गंदगी फेंक-फेंककर उपेक्षित बना दिया था। दक्ष सोचता था कि लोग यदि कूड़ा-कड़कट न फेंके तो यह बच्चों के खलने का काम आ सकता है लेकिन ज्यादातर लोगों को खुद के घर की सफाई तो अच्छी लगती है लेकिन पड़ोसी का मकान बढ़िया हो तो हजम नहीं होता...! काम के दौरान ठेकेदार ने गुणवत्तापूर्ण काम के दावे मोहल्ले वालों से किए थे लेकिन कुदरत के आगे वैज्ञानिक दावों की ऐसी-तेसी होना आम बात है...! मौसम वैज्ञानिक मानसून की भविष्यवाणी करता है तो कई बार सूखा पड़ जाता है। कई बार वह कहता है कि मौसम साफ रहेगा तो पानी की बौछार इस बातों पर पानी फेर देती है...! प्रकृति की प्रवृति ही ऐसी है कि बड़े-बड़े दावे धरे के धरे रह जाते हैं। पहले भी प्रकृति प्रकोप दिखाती रही है लेकिन विनाशलीला अब ज्यादा नजर नहीं आती है...! इसकी वजह शायद यह है कि अब वैज्ञानिक यत्र-तत्र शोध कर प्रकृति के प्रकोप से बचने के आंकड़े जुटाते रहते हैं और लोग पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ करने के नए-नए तरीके तर्क के साथ गढ़ रहे हैं...! कानूनी किताब में जब हर अपराध के लिए सजा तजवीज की गई तो प्रकृति कैसे मानव को यूं ही छोड़ दे...! तभी शायद कुदरत यहां-वहां अक्सर अपना रौंद रूप दिखाती रहती है और मानव सभ्यता को चोट पहुंचाती रहती है...! अचानक दक्ष के मन में कुछ उमड़ता है सो वह कुर्सी से उठकर नीचे की चल देता है। वह बिना डरे मंच के समीप पहुंच जाता है। फिर वह माइक से अपने दिन की बात कहना शुरू कर देता है- नई रोड की मुबारकबाद। नीम के विनाश का कोप शायद आप झेल रहे हैं...! आपने एकता की ताकत दिखाकर मुझ तब हरा दिया था और पालीथिन जैसे अवशिष्टों की एकजुटता प्रकृति के विनाश का कारण बन रही है। सच है कि एकता में शक्ति है...! कथित विकास के लिए पर्यावरण को चोट पहुंचाना आसान है, सो पेड़ काट डाले जाते हैं लेकिन लोगों को भावनाएं आहत न हों, इसके लिए सड़क पर अवरोध बनती मजारें और मंदिर या मस्जिद आदि नहीं तोड़ी जातीं, क्यों...? क्याेंकि राजनीति लोगों से चलती हैं पेड़-पौधों से नहीं...! विकास के लिए यदि प्रकृति का विनाश जरूरी है तो उसे बैलेंस भी करना होगा। यदि ऐसा नहीं किया एक दिन सब गंदगी में ही खड़े नजर आएंगे...! हालांकि आप सभी यह बात कब समझ पाएंगे, कहना मुश्किल है...! दक्ष का यक्ष प्रश्न सुनकर गंदगी में खड़े मोहल्ले के लोगों के चेहरे झुके नजर आने लगते हैं...! वहां पर तालियों की गड़गड़ाहट तो सुनाई नहीं देती लेकिन सबके दिल में हथौड़े बजने की आवाज जरूर महसूस हो रही थी...! डॉ. श्याम प्रीति

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