...जीतने के लिए फिर खेलना होगा

हार को ‘हार’ की तरह लेना होगा। जीतने के लिए फिर खेलना होगा। सफलता की राह में खड़े होंगे पहाड़ अनेक। अपनी बिखरी सारी ताकतों को करना होगा एक। मन की आशंकाओं, डर को देना होगा फेंक। तुम्हारी जीत पर दुनिया भी घुटने देगी टेक। असफलता का अंधेरा छंटकर ही नया सवेरा होगा। जीतने के लिए फिर खेलना होगा। कछुआ-खरगोश दौड़ में खरगोश आगे निकलता है। पर कछुआ रुकता नहीं, अनवरत चलता रहता है। नदी की धारा-सा बन वह विजेता बनता है। कहानी का यह सबक हमको समझाता रहता है। संकल्प पूरा होने तक रुकना नहीं होगा। जीतने के लिए फिर खेलना होगा। जब भी तुम हारोगे, पास न कोई आएगा। लोग हंसेंगे तुम पर, हर कोई मजाक बनाएगा। चलते व्यंग्य बाणों से कलेजा छंलनी हो जाएगा। रात न नींद आएगी, दिन भी खूब रुलाएगा। ऐसे अवसादों को मन से दूर भगाना होगा। जीतने के लिए फिर खेलना होगा। रात और दिन का क्रम एक-सा रहता है। कभी रात लंबी, कभी दिन लंबा होता है। सुख-दुख का भी ऐसा ही हाल रहता है। कभी सुख हावी, कभी दुख परेशान करता है। परिस्थितियां कैसी भी हों, खुद को संभालना होगा। जीतने के लिए फिर खेलना होगा। डॉ. श्याम प्रीति

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