परिस्थितियों की वजह से इंसान फट पड़ते हैं और बादल भी...!

कई बार हम शांत लोगों को भी फट पड़ते देखते हैं, यह परिस्थिति जन्य होता है। ऐसा ही आसमान के बादलों के साथ भी होता है। आसमान में वे भले हमें लुभाते बहुत हों ले‌िकन जब अवरोध आता है तो परिस्थितिजन्य हालातों में इस टकराव का नतीजा ही बादल फटना कहलाता है...! दूसरे शब्दों में- बादल फटना या क्लाउड बर्स्ट बारिश होने का एक्सट्रीम फार्म है। सरल भाषा में समझें तो जब बादल भारी मात्रा में पानी के साथ आसमान में चलते हैं और अचानक उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है तब वे फट पड़ते हैं। ऐसे में पानी इतनी रफ्तार में गिरता है कि एक सीमित जगह पर लाखों लीटर पानी धड़ाम से गिर पड़ता है। आप सही समझे...! जैसे- पानी की टंकी अचानक फट पड़े...! तो आसपास क्या हालात होंगे...! आपका ‌िदमाग हिल गया... अरे! जरा 2013 मेें 16 और 17 जून को केदारनाथ में हुई तबाही का मंजर याद करें... याद न आ रहो तो सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म ‘ केदारनाथ’ देख लें... सब साफ हो जाएगा...! दृश्य देखकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे आपके। चलिए एक पुरानी कथा सुनाता हूं। वैसे तो आप इसे जानते भी होंगे लेकिन फिर भी आपको बोर करने का रिस्क उठाता हूं...! पुराने पन्नों के हवाले से... जब भगीरथ गंगा को लाने चले थे तो उनके वेग को कौन संभालता, तब शंकर जी ने गंगा को अपने केशों में धारण किया था। अगर शिवजी ने गंगा को धारण न किया होता तो गंगा सब बहा ले जाती...! बादल फटने से ठीक ऐसे ही हालात होते हैं। तब आसमान से गिरते पानी का वेग इतना अधिक होता है ‌जैसे 100 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर बारिश...! कुछ ही ‌मिनट के भीतर दो सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है, जिसके कारण इलाके में तबाही का मंजर भयानक होता है...! लगता है बाढ़ आ गई हो...! बादल फटने से ऐसा ही होता है और तबाही मच जाती है। ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटनाएं सिर्फ पहाड़ों में ही होती हैं, बताते हैं ‌कि साल 2005 में मुंबई में भी बादल फटने की घटना हुई थी। अब वैज्ञानिकों के मुताबिक, ऐसा कुछ नहीं होता कि बादल किसी गुब्बारे की तरह फटता हो। मौसम विज्ञान के अनुसार, बादलों में जब आर्द्रता की मात्रा बढ़ जाती है, तो उनकी आसमानी चाल में कोई बाधा आ जाती है। ऐसे में बहुत तेजी से संघनन होने लगता है और एक सीमित इलाके में कई लाख लीटर पानी पृथ्वी पर गिरता है। भारत के लिहाज से समझे, तो मानसून के मौसम में नमी से भरपूर बादल, जब उत्तर की तरफ बढ़ते हैं, तो हिमालय उनके रास्ते में एक बड़े अवरोधक के रूप में होता है। इतना ही नहीं नमी से भरपूर बादल जब गर्म हवाओं के झोंकों से टकराते हैं, तब भी बादल फटने जैसी घटना हो सकती है। कहते हैं कि सर्द-गर्म हवाओं के विपरीत दिशा मेें टकराना भी बादल फटने का मुख्य कारण माना जाता है। अचानक मौसम बदलता है... और बादल फटने के एक इत्तेफाक से वहां आसपास सब कुछ बदल जाता है...!

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