रेवड़ी कल्चर पर खुराफातीलाल के विचार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने रेवड़ी कल्चर पर हमला बोला तो केजरीवाल जी ने जवाबी तोप दाग दी। मोदी जी बोले थे- मुफ्त की संस्कृति से देश आत्मनिर्भर नहीं बनेगा। ऐसे कदमों से करदाताओं पर बोझ बढ़ता जाएगा। अगर राजनीति में ही स्वार्थ होगा तो कोई भी आकर मुफ्त पेट्रोल-डीजल देने की घोषणा कर सकता है। इस बयान पर तोप दागते हुए केजरीवाल जी बोले- देश का पैसा देश की जनता के लिए है। यह पैसा नेताओं के दोस्तों के लोन माफ करने के लिए नहीं है। कहा जा रहा है कि अगर सरकारें फ्री में सुविधाएं देंगी तो कंगाल हो जाएंगी। इससे देश को नुकसान होगा। कुल मिलाकर देखा जाए तो अरविंद केजरीवाल मुफ्त की संस्कृति के पक्षधर दिखते हैं...! जब मुफ्त या फ्री के मुद्दे पर विचारक खुराफातीलाल से चर्चा की गई तो उन्होंने अपनी खोपड़ी खुजाते हुए कहना शुरू किया- देखिए साब! मुफ्त में किसी भी व्यकि्त को कुछ भी मिलता है तो वह बटोरने की सोचता है। किसी को आप अपना समय दीजिए तो वह समझेंगे कि आप फालतू हैं और निठल्ले हैं। आपके पास कोई काम तो है नहीं... बस आ गए उनके पास गपियाने...! इसी प्रकार किसी भिखारी को यदि बिना मांगें ही लोग पैसे देने लगे तो भिखारी भी समझता है कि सामने वाला मेरे आरक्षण पर दावा ठोंकने जा रहा है। फिर आगे वे बोले साधो...! मुफ्त में मिलने वाली हर चीज हमको लुभाती है। दुकान पर जाओ, कुछ भी खरीदो पर उसके साथ फ्री में मिलने वाली चीज ज्यादा प्यारी लगती है। मूल से ज्यादा सूद सबको पसंद आता है। किसी उत्पाद में लिखा होता है कि ट्रांसफैट फ्री तो उसे भी कई लोग मांगने लगते हैं... फ्री में है तो दे दो भइया...! याद करें... सरकार ने राशन मुफ्त देना शुरू किया तो कई कार वाले भी राशन लेने लगे। मुफ्त का माल कौन छोड़ता है। जो जोड़ना चाहता है तो वह मुफ्त के माल पर सबसे पहले हाथ साफ करता है। नेताजी दूसरों से सब्सिडी न लेने का आह्वान करते हैं पर खुद... मुफ्त में मिलने वाली सारी रेवडि़यां हजम कर जाते हैं। यह हंसने की बात नहीं है, गंभीर सोचने वाली है। हर ट्रेजडी आगे चलकर कॉमेडी बन जाती है। इसी प्रकार कॉमेडी ट्रेजडी भी बन सकती है। मुफ्त की संस्कृति का एक और उदाहरण एक मोबाइल कंपनी का डाटा प्रकरण से और बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। नई कंपनी बाजार में आती है... मुफ्त डाटा रेवड़ी की तरह बांटती है... लोग जाल में फंस जाते हैं और बाकी कंपनियां धीरे धीरे काम समेटने लगती है और इसके बाद डाटा की कीमत वह कंपनी बढ़ाने लगती है और दाम फिर बढ़ते हैं लेकिन अब तो ग्राहक फंस चुके हैं... ज्यादातर उसे ही चला रहे हैं... घर वालों के सारे नंबर उसी कंपनी में पोर्ट करा रखे थे। एक-दूसरेको जुग-जुग जीयो का आशीर्वाद सब दे रहे हैं। वैसे भी मुफ्त में मिलने वाला चाहे पानी हो या हवा... जब खरीदनी पड़ती है तो बड़े-बड़ों की आह निकल जाती है। Dr. Shyam Preeti

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