पाकिस्तान जब अपने आकाओं का ना हुआ तो... हमारा क्या होगा
भारत में हर पढ़ा-लिखा व्यकि्त मोहम्मद अली जिन्ना के नाम से परिचित जरूर होगा... पाकिस्तान के पितामह के रूप में वह उन्हें जानता भी होगा लेकिन ज्यादातर को शायद ही यह बात पता होगी कि मोहम्मद अली जिन्ना भी मूल रूप से ‘हिंदू’ ही थे। उनके अंतः की कहानी... रोंगटे खड़े करने वाली है। मरने के बाद उनकी दुर्गति पाकिस्तान की सोच को साफ करने के लिए काफी है। इसी प्रकार दूसरा नाम... रहमत अली का है, जिस व्यक्ति ने ‘पाकिस्तान’ शब्द को गढ़ा था... को भी इस पाक मुल्क ने दुत्कार दिया था। सबसे बड़ा इत्तफाक यह भी है कि पाकिस्तान कहां से कहां तक रहेगा... की रूपरेखा पर मुहर लगाने वाले अहमदी थे और आज पाक में ये गैरमुस्लिम करार दिए जा चुके हैं। इस प्रकार साफ है कि पाकिस्तान जब अपने आकाओं का ना हुआ तो भारत के साथ वह कैसे अपने संबंध सुधार सकता है?
चलिए इतिहास के पन्ने पलटते हैं तो जानकारी हासिल होती है सन् 1933 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब, सिंध, कश्मीर तथा बलोचिस्तान के लोगों के लिए ‘पाक्स्तान’ शब्द का सृजन किया था, जो बाद में ‘पाकिस्तान’ बना। सबसे पहले 1932 में लंदन में इस शब्द की चर्चा हुई और इसके बाद 28 जनवरी 1933 को इसका पैम्फलेट चार पन्नों की बुकलेट की शक्ल में बदल गया। रहमत अली ने बतौर संपादक इसका नामकरण ‘पाकिस्तान डिक्लेरेशन’ दिया और पहले पेज की हेडिंग में लिखा- ‘Now or Never’ Are we to live or Perish for Ever? अर्थात अभी या कभी नहीं, क्या हमें जीना है या हमेशा के लिए खत्म हो जाना है? बुकलेट में उन्होंने कहा था- भारत को संयुक्त रखने की बात फूहड़ है। हमारी संस्कृति, इतिहास, मजहब, रहन-सहन, परंपरा, शादी-विवाह सब कुछ भारत के बहुसंख्यक लोगों से अलग है। इनमें बड़ा फर्क है। बुकलेट में पाकिस्तान शब्द की व्याख्या भी की गई थी। जैसे ः- पी से पंजाब और ए से अफगानिस्तान, के बोले तो कश्मीर व एस से सिंध व टीएएन से बलूचिस्तान।
इससे साफ हो जाता है कि पाकिस्तान के मूल मंे ही जेहादी मानसिकता डाल दी गई और अब यह स्वतंत्रता के 75 साल बाद बुढ़ापे में पहुंचकर नासूर बन चुकी है। रहमत अली की मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ मोहम्मद अली जिन्ना ने भी तारीफ की। 1934 में रहमत अली और जिन्ना की मुलाकात हुई। रहमत का रुतबा बढ़ा तो जोश में आकर उन्होंने ‘पाकिस्तान ः दी फादरलैंड ऑफ पाक नेशन’ पुस्तक प्रकाशित की। इसमें उन्होंने खुद को पाकिस्तान लिबरेशन मूवमेंट का फाउंडर और प्रेसिडेंट बताया।
इसके बाद मार्च 1940 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने लाहौर अधिवेशन मेंं ‘पाकिस्तान’ के नाम पर मुहर लगा दी और इसके बाद साफ हो गया कि अलग बनने वाले मुल्क का नाम यही होगा। अंततः 15 अगस्त 1947 की रात को जब भारत स्वतंत्र हुआ तो ‘पाकिस्तान’ के नाम से दुनिया भी परिचित हो गई लेकिन ‘पाक्स्तान’ का नामकरण करने वाले रहमत अली को पाकिस्तान से कोई रहमत नहीं मिली। जिस व्यक्ति ने पाकिस्तान का विचार गढ़ा... वही वहां पर नफरत का तलबगार बना। पाकिस्तान बनने के बाद रहमत अली 1948 में इंग्लैंड से लौटे और देश में रहने की योजना बना रहे थे, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली ने उनका सामान जब्त कर लिया गया और उन्हें निष्कासित करने का आदेश दे दिया। इसके बाद अक्टूबर 1948 में उन्हें पाकिस्तान से खाली हाथ लौटना पड़ा। अंततः तीन फरवरी 1951 को कैंब्रिज में वह दुनिया से रुख्सत हो गए।
अब बात करते हैं... पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना की। उनका जन्म लाहौर में 25 दिसम्बर 1876 हुआ और वह पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल बने। पाकिस्तान में उन्हें बाबा-ए-क़ौम यानी राष्ट्र पिता कहा जाता है। इस्लाम के नाम पर बने पाकिस्तान के पितामह जिन्ना एक हिंदू परिवार में पैदा हुए थे। उनकी जड़ें गुजरात से जुड़ी थीं और वो लोहना जाति से ताल्लुक रखते थे।
जिन्नाह, मिठीबाई और जिन्नाहभाई पुँजा की सात संतानों में सबसे बड़े थे। पिता जिन्नाहभाई एक संपन्न गुजराती व्यापारी थे, लेकिन जिन्ना के जन्म के पूर्व वे काठियावाड़ छोड़ सिंध में जाकर बस गये। जिन्ना की मातृभाषा गुजराती थी। काठियावाड़ से मुस्लिम बहुल सिंध में बसने के बाद जिन्ना और उनके भाई-बहनों का मुस्लिम नामकरण हुआ। बाद में जब उनकी मृत्यु हुई तो दफनाने के लिए शिया-सु्न्नी के नाम पर विवाद भी हुआ। ऐसे हालात में उनकी अंत्येष्टि में शिया और सुन्नी दोनों तौर-तरीकों को अपनाया गया था।
हालांकि जिन्ना के बारे में कहा जाता है कि धर्म का दखल उनके जीवन में ने के बराबर था। गजब इत्तफाक है- जिन्ना ने कभी कुरान नहीं पढ़ा। वो शराब और सिगार पीते थे। सूअर का मांस खाते थे। रहन-सहन में मुस्लिम नहीं थे लेकिन थे मुसलमानों के नेता। दरअसल, अविभाजित भारत में थे शिया और सुन्नी जैसा कोई मुद्दा नहीं था। तब हिन्दू बनाम मुस्लिम की बात थी इसलिए लोग जिन्ना के पीछे एक हो गए थे। एक मजेदार बात और... 14 अगस्त 1947 को जब पाकिस्तान बना तब रमजान का महीना चल रहा था। जिन्ना बोले- ग्रैंड लंच होना चाहिए तब लोगों ने उन्हें बताया कि ये रमजान का महीना है कैसे लंच का आयोजन करेंगे?
इससे पूर्व 1930 के आसपास जिन्ना को तपेदिक (टीबी) हो गया पर यह बात उनकी बहन और कुछ करीबी लोग ही जानते थे। इसी के साये में पकिस्तान का जन्म हुआ। माना जाता है कि जिन्ना को यदि मौत का पूर्वाभास हो जाता तो शायद भारत बंटवारा नहीं होता। लेकिन शायद... से इतिहास नहीं बदलता। दिनभर में करीब 50 सिगरेट पीने वाले जिन्ना टीबी से पीड़ित होने के बावजूद डॉक्टरों की सलाह से दूर भागते रहे। जब डॉक्टरों की शरण में आए तब तक देर हो चुकी थी। यहां पर जो हालात जिन्ना के साथ पेश आए, उनसे साजिश की बू आती है...! डॉक्टरों ने उन्हें क्वेटा जाने की सलाह दी। फिर उन्हें क्वेटा से जियारत भेज दिया गया। जिन्ना सिल्क का कुर्ता-पायजामा पहनकर सोते थे, रात में वह ठिठुरकर और बीमार पड़ गए। उन्हें फिर क्वेटा लाया गया और कुछ दिन बाद कराची। जहां उनकी पैदाइश हुई थी...वहीं पर उनकी मौत उनका इंतजार कर रही थी। तारीख थी 11 सितंबर 1948...शाम के 4ः15 बजे का समय था। मौरीपुर एयरपोर्ट पर विशेष विमान उतरा.. उसमें जिन्ना थे पर वहां भीड़ नहीं थी। यही समय का चक्र था। स्ट्रैचर पर जिन्ना लौटे और फिर एंबुलेंस पर उन्हें लिटा दिया गया। गाड़ी चली... लेकिन यह क्या रास्ते में पेट्रोल खत्म हो गया...! मात्र 30 मिनट की दूरी के बीच में सफर ठहर गया। बीच सड़क पर जिन्ना के मुंह पर मक्खियां भिनभिना रही थी... भयंकर गर्मी में जिन्ना की हालत बिगड़ने लगी और... फिर जिन्ना इस दुनिया से रुखस्त हो गए। सबसे बड़ी इत्तफाक की बात... जहां पर एंबुलेंेस खड़ी हुई थी... वहीं आसपास सैकड़ों तंबू तने थे... दो शरणार्थियों के ठिकाने थे लेकिन उन्हें भी नहीं पता था कि वहां खड़ी एंबुलेंस में लेटा शख्स उन्हें इस हालात में पहुंचाने का जिम्मेदार है... लेकिन वह तो खुद ही बेबस होकर इस नापाक धरती से अलविदा कह गया था।
एक और बात, उनकी बहन फातिमा ने ‘माय ब्रदर’ किताब लिखी पर वह भी बड़ी मुश्किल से प्रकाशित हुई, तमाम संशोधन के बाद। वह लिखती है कि जिन्ना के सबसे करीबियों ने ही उन्हें धोखा दिया...। 1951 मेंे जिन्ना की तीसरी बरसी पर जब उन्हें रेडियो संदेश में बोलने की अनुमति मिली तभी प्रसारण काट दिया गया। उन्हें ताउम्र शक रहा कि एंबुलेंस का पेट्रोल यूं ही खत्म नहीं हुआ था। सारा शक प्रधानमंत्री लियाकत अली पर किया जाता है। बाद में उनकी भी रहस्यमय हालात में मौत हुई। यह क्रम बाद के कई पाकिस्तानी हुक्मरानों के साथ भी चला।
Dr. Shyam Preeti
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