राजू भाई #1EK किरदार, जो कालजयी रहेगा

अई गजब! यही दैनिक समाचारपत्र अमर उजाला में प्रकाशित होने वाले #1EK कालम का नाम था, जिसमें राजू भाई व्यंग्य के बाण छोड़ते थे। अमर उजाला की नई स्टाइलशीट बदली थी और यह कालम, सच में पाठकों को बहुत लुभाता था। खालिस कनपुरिया जुबान में उनका अपना ही रौला था। नाम से वह बड़े सीधे-साधे लगते थे लेकिन अपने काम से उन्होंने बड़ा भौकाल बना लिया था। सच कहूं तो राजू भाई #1EK किरदार बन गए थे, जो कालजयी रहेगा। तारीख 21 सितंबर वर्ष 2022 को उनका निधन हो गया और हंसाने वाले राजू भाई की याद में शोक संवेदनाओं की बाढ़ सी आ गई। सोशल मीडिया में उनके चाहने वालों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए याद किया लेकिन वह क्या भूल जाने वाली शख्सियत हैं। मेरी नजरों से देखें तो कनपुरिया स्टाइल को उन्होंने रजत पटल पर चर्चा में ला दिया था। कोरोना की महामारी के बीच उन्होंने लिखा था- गरमी मा भी नाही मरा.. ठंडा पाउडर लगाय के घूमि रहा कोरोना। इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह असल जिंदगी में सच में बहुत जिंदादिल इंसान थे।
उनका सबसे फेवरेट चरित्र गजोधर रहा। इत्तफाक की बात यह है कि गजोधर भैया काल्पनिक किरदार नहीं वास्तविक हैं। दरअसल, राजू भाई का ननिहाल बेहटा सशान में था। वहां पर #1EK बुजुर्ग रहा करते थे, उन्हीं का नाम गजोधर था। बताते हैं कि वह थोड़ा रुक-रुक कर बोलते थे। वह तो चर्चा में नहीं आए लेकिन राजू ने उनके किरदार को ऐसे जिया कि वह सेलिब्रेटी बन गए। यह बात तो सब जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के सबसे भौकाली शहर कानपुर में राजू भाई का जन्म #1EK कवि परिवार में हुआ था लेकिन कलाकारों की मिमिक्री करने पर उन्होंने डांट भी खूब खाई। उनके पिता रमेश चंद्र श्रीवास्तव एक एक जाने-माने कवि थे और बलई काका के नाम से मशहूर थे। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में नजर आते हैं... सो राजू भाई अपनी मेहनत से कॉमेडी में कालजयी बन गए।
बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नकल करके राजू भाई में मिमिक्री सीखी और साथ ही अपने पिता की कविताओं को भी वे सुनाया करते थे। आपको बता दूं कि राजू भाई का असली नाम सत्यप्रकाश श्रीवास्तव था लेकिन वह राजू श्रीवास्तव के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनसे जुड़ा #1EK इत्तफाक का किस्सा उन्होंने ही सुनाया था। एक बार वह जयपुर में परफॉर्म करने गए थे। वहां पर बैकस्टेज उन्होंने अपना फेवरेट जैकेट उतारा लेकिन बाद में वह गायब हो गया। इसके दो साल बाद जब राजू भाई दोबारा जयपुर पहुंचे तो एक व्यक्ति ने हाथ लगाते हुए पूछा कि मुझे पहचाना क्या? इस पर उन्होंने कहा नहीं। तब उस व्यक्ति ने बताया कि आपका जो जैकेट गायब हो गया था, यह वही है जो मैंने पहन रखा है। यह मेरे लिए अनमोल है, इसलिए मैं इसे अपने साथ ले गया था...! Dr. Shyam Preeti

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