#1EK दुनिया ....जो गोल है...
दुनिया गोल है... यह जुमला सब कहते हैं पर हकीकत में क्या यह सच है? ... नहीं.. लेकिन इसके बावजूद हम पृथ्वी को गोल मानकर ही व्यवहार करते हैं। इसी प्रकार हमारी नजरों में सूरज गोल है... चंद्रमा भी गोल है... और जो गोल है... वह गतिमान है... घूम रहा है...जैसे हमारा समाज भी...! क्या समाज भी गोल है? इस प्रश्न का जवाब मेरे दृषि्टकोण में हां ही है। अब आप कहेंगे... चलिए इसे सिद्ध करेें...!
तो... आपको समझाने का मैं #1EK आम आदमी यह प्रयास करता हूं। पहले दुनिया के सबसे बड़े विचार ‘वसुधैव कुटुंबकम’ पर चर्चा...। इसका सीधा अर्थ है दुनिया #1EK परिवार है। इसका सबूत है हमारा रक्त... सभी का रंग देख लीजिए... लाल रंग ही मिलेगा। यह बात और है इन्हें विज्ञान ने ग्रुपों में विभाजित कर रखा है। यही है शुद्धता की परख... जिससे हम सभी जूझते हैं क्योंकि सरलता समझ में आती है लेकिन समझदारी जीवन को बेहतर बनाने का दावा करता है। जैसे रक्त के चार वर्ग है.. वैसे ही समाज भी चार वर्गों का हिमायती है...! यह जो चार का चक्कर है... उसे वृत्त के चार हिस्से समझ सकते हैं और शुद्धता के फेर में पड़कर हम वृत्त को #1EK ना मानकर अपने-अपने हिस्से में खुश रहने का ढोंग करते हैं। यह विसंगति या विद्रूपता सच है लेकिन हम इसे स्वीकार नहीं करते।
अब दूसरे नजरिये से इसे समझें... समाज को यदि वृत्त अर्थात गोला मान लिया जाए तो उसमें #1EK केंद्र भी होना तय है और यह केंद्र बिंदु ही वृत्त की शकि्त को परिभाषित करता है। केंद्र और परिधि के बीच की दूरी त्रिज्या कहलाती है। समाज रूपी वृत्त के केंद्र से जो व्यक्ति जितना दूर होता है.... वह उतना ही अभावग्रस्त रहता है। सीधे शब्दों में कहें तो जो व्यक्ति केंद्र को देखते हुए परिधि के चक्कर लगाता है तो वही शूद्र होता है... शूद्र से यहां पर तात्पर्य किसी जाति विशेष से नहीं... अभावग्रस्त व्यक्ति से है। सामाजिक वृत्त की परिधि में सर्वाधिक संख्या गरीबों की होती है। इसी प्रकार जो व्यक्ति जितना केंद्र के नजदीक होता है... वह उतना संपन्न।
अब सामाजिक तानेबाने को समझते हैं। हर अभावग्रस्त व्यक्ति केंद्र की ओर पहुंचना चाहता है और वह इसके लिए जीतोड़ कोशिश भी करता है। कभी कोई किस्मत से.... कभी कोई इत्तफाक से और कभी साम-दाम-दंड-भेद का सहारा लेकर ऐसा करने का प्रयास करता है। जो सफल हो जाता है... उसका नाम दुनिया में हो जाता है और नहीं तो घिसटते-घिसटते मर जाता है। परिधि से केंद्र का सफर... त्रिज्या से होकर गुजरता है और... यही विकास का पैमाना है।
हर वृत्त में केंद्र मेंे सबसे कम जगह होती है... जगह कम बोले तो वीवीवीआईपी स्थान। ऐसे में यहां पर लोगों की संख्या बहुत सीमित होती है। परिधि से खिसककर जो लोग थोड़ा बहुत भी केंद्र की ओर खिसक जाते हैं.. यानी अपनी धुरी को छोड़कर वह दूसरे वलय में पहुंच जाते हैं... उनकी तरक्की हो जाती है और वे बड़े आदमी बनने की ओर अग्रसर हो जाते हैं।
समय चक्र भी कुछ ऐसा ही है। कुछ (हालात) बदले न बदले... समय जरूर बदलता रहता है पर यह बदलाव इतना छोटा होता है कि हमें पता नहीं चलता। #1EK.. ्#1EK सेकेंड होते-होते कब #1EK मिनट और कब #1EK घंटा बीत जाता है... पता नहीं चलता। इसी प्रकार #1EK दिन और #1EK सप्ताह के बात #1EK महीना पूरा हो जाता है और फिर #1EK साल... और हम अपना जन्मदिन मनाते हैं। सही मायने में हमारे जीवन का #1EK साल कम हो जाता है लेकिन हम समझते हैं कि हमने #1EK वर्ष और जी लिया। दूसरे शब्दों में जो कम हो रहा है... उससे हम अपना जुड़ाव रखते हुए उसे बढ़ा हुआ मानते हैं। यही है पॉजिटिव सोच... यही है उम्मीद जो हमें अपने जीवन में बनाए रखनी होती है। हम सभी को ईश्वर ने चाहे कितना भी जुदा बनाया हो लेकिन हम सभी को दिन में 24 घंटे ही दिए हैं... यह पूंजी हम सबके पास बराबर है। हमारे खून का रंग लाल है...इसीलिए हम सहोदर हैं... इसके बावजूद हम भिन्न हैं...क्योंकि बौद्धिक क्षमता अलग-अलग है और यही विविधता हमें एकजुट करती है। विविधता ही #1EK वृत्त का निर्माण करती है और हम इसी वृत्त के चारो ओर घूमते नजर आते हैं...। जिन व्यक्तियों का बौद्धिक स्तर एक सा रहता है तो वृत्त में अपना #1EK कोना पकड़ लेते हैं। जिस कोने में ज्यादा लोग हो जाते हैं.... उनका वर्चस्व बढ़ जाता है लेकिन वृत्त तो तभी पूरा बेहतर बनेगा... जब सभी कोने व्यवस्थित होंगे... और यह तभी संभव है जब हम #1EK रहें। कहा भी जाता है कि बूंद-बूंद से सागर बनता है और यही #1EK बूंद हम हैं। अपनी परवाह करें और साथ में दूसरों की तो सामाजिक वृत्त बेहतर बनेगा और हमारी दुनिया भी। जान लीजिए हर जीरो (Zero) की शुरुआत #1EK बिंदु से ही होती है और बिंदु से बिदु मिलकर वृत्त बोले तो जीरो (Zero) पूरा होता है...।
मेरी छोटी सी थ्योरी शायद आपके दिमाग को भा गई हो और समझ भी आ गई हो तो आपका धन्यवाद...।
Dr. Shyam Preeti
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