वंदे भारत एक्सप्रेस के जनक.... पहचाने हैं कौन...

वंदे भारत एक्सप्रेस का नाम पहले ट्रेन-18 था, जानते हैं क्यों? दरअसल, इसका डिजाइन तैयार होने के बाद इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) चेन्नई के करीब 500 कर्मचारियों ने मिलकर 18 महीने में इस ट्रेन का प्रोटोटाइप रैक अक्टूबर 2018 में तैयार किया था। इसी वजह से ही इस सेट का नाम ट्रेन 18 रखा गया था।
अब इसके निर्माण की कहानी... रेलवे के एक अधिकारी नाम है.. सुधांशु मणि और वर्ष था 2016... उनके रिटायरमेंट का समय नजदीक आ गया था। उन्हें दो साल बाद काम से छुट्टी मिलनी थी लेकिन उन्होंने काम को तरजीह देते हुए अंतिम पोस्टिंग मांगी थी आईसीएफ चेन्नई। यहां रेल के डिब्बे बनाने वाला कारखाना है। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने पूछा- क्या इरादा है। जवाब मिला- खुद की सेमी हाई स्पीड ट्रेन बनाने का...!
सोचने-समझने के बाद अनुमति मिल गई और सुधांशु मणि ने अपने लक्ष्य के अनुरूप काम शुरू करने के लिए टीम खड़ी की और फिर शुरू हुआ काम, जो इतिहास रचने जा रहा था। यह सच था... उन्होंने अपने रिटायरमेंट से दो महीने पहले 16 कोच की ‘ट्रेन-18’ देश को समर्पित कर दिया। ट्रेन में कोच 16 थे और इसका नाम ट्रेन-18 रखा गया.. वजह पूछने पर उन्होंने बताया था कि इसे बनाने में 18 महीने का वक्त लगा, इसलिए इसका नाम ट्रेन-18 रखा गया। इस ट्रेेन की खासियत के बारे मेेें उन्होंने बताया था कि इस ट्रेन के सारे उपकरण बोगियों के फ्लोर के नीचे लगे हुए हैं। ट्रेन के इंजन के पार्ट्स हों या एसी के उपकरण। उन्होंने बताया था कि वंदे भारत एक्सप्रेस का डिजाइन तैयार करते समय सबसे बड़ी चुनाैती यह थी कि तेज एक्सलेशन के लिए जो इंजन बोगियों के नीचे लगाया जाना था, उसके लिए स्थान को डिजाइन करना था । डिजाइन तैयार हुआ तो फैक्ट्री के 500 कर्मचारियों ने मिलकर 18 महीने में इसका प्रोटोटाइप रैक अक्टूबर 2018 में तैयार कर दिया। ट्रेन लगातार चर्चा में हैं लेकिन वंदे भारत एक्सप्रेस के जनक के फॉलोवरों की संख्या जानते हैं कितनी है... साढ़े पांच हजार भी नहीं... यही सच है सोशल मीडिया का... यहां पर लोकप्रियता खरीदी जाती है और... पोस्ट बूस्ट करने के लिए रुपये खर्च करने पड़ते हैं। मेरी ओर से उनकी मेहनत को नमन। Dr. Shyam Preeti @DrShyamPreeti

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