अवाम... समय और #1EK खुराफातीलाल

अवाम... बोले तो आम लोग अर्थात जनता। शायद ही कोई होगा जो इस शब्दों से परिचित न हो। लेकिन मैं तो खुराफातीलाल हूं बोले तो #1EK व्यंग्यकार सो इस बारे में मंथन कर रहा था। अचानक दिमाग में अवाम को अलग-अलग करने का मन हुआ। अ+वाम... ठीक समझे यही गणित मैंने भी लगाई और फिर अर्थ खोजने शुरू किए। ‘अ’ को उपसर्ग माना तो इसके अर्थों की परत उधेड़ी...! जानकारी मिली- हिंदी में कुल जमा 22 उपसर्ग हैं। देवी और सज्जनों! मैं बुदि्धजीवी नहीं #1EK आम आदमी हूं। इसलिए कुछ यदि किन्हीं वजह से आपका पारा चढ़े तो कृपया ठंडा पानी पी लें क्योंकि क्रोध स्वयं को ज्यादा हानि पहुंचाता है। खैर, बात हो रही थी शब्दों और उपसर्ग की...। किसी शब्द की तरह उपसर्ग का अपना कोई अर्थ नहीं होता, लेकिन प्रत्येक उपसर्ग #1EK विशेष अर्थ के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जैसे- 'अ' उपसर्ग का प्रयोग हम 'नहीं' के अर्थ में करते हैं, लेकिन यह भी ध्यान रखिएगा कि किसी वाक्य में 'नहीं' की जगह हम 'अ' का प्रयोग नहीं कर सकते। चलिए हम पहले उपसर्ग का मतलब समझते हैं। परिभाषा के अनुसार, उपसर्ग वे शब्दांश होते हैं, जो किसी शब्द के पूर्व में जुड़कर उसके अर्थ को प्रभावित कर देते हैं। उपसर्ग शब्द ही ‘उप’ उपसर्ग एवं ‘सर्ग’ शब्द के संयोग से बना है। दूसरे शब्दों में समझा जाए- उपसर्ग, किसी शब्द के अर्थ को बदल कर, नया शब्द बनाकर या मूल शब्द के अर्थ में विशेषता पैदा करके उसके अर्थ को प्रभावित करते हैं। उपसर्ग का अपना कोई स्वतंत्र अर्थ नहीं होता है। इससे ज्यादा मैं उपसर्ग का पोस््टमार्टम नहीं कर सकता... क्योंकि मेरी बुद्धि की धार कुंद पड़ने लगती है। इसलिए आगे के शोध के लिए मैंने रास्ता बदला। अब ‘अ’ को छोड़कर ‘वाम’ को पकड़ने की कोशिश करता हूं। ‘वाम’ अर्थात बायां... यानी दक्षिण या दाहिने का उल्टा... दूसरे अर्थों में असंतुष्ट..। कुछ लोग ‘वाम’ को कमजोर भी मानते हैं। अब इन कड़ियों को जोड़े तो... अवाम... बोले आम लोग...! अरे ठहरे जनाब...! मुझे फिर से वापस लौटने का मन हो रहा था। आप भी साथ चले तो...! चलना ही पड़ेगा आपको... क्योंकि मेरे (कलम) साथ चल रहे हैं। गुस्ताखी माफ! ‘आम’ तो वैसे फलों का राजा कहलाता है लेकिन सभी उसे चूसकर कूड़े के ढेर में फेंक देते हैं। यही सच है और सच कड़वा होता है जनाब। आम आदमी ‘आम’ की तरह ही होता है...वह बौराता भी है। हालांकि सभी मानते हैं कि आम आदमी की कीमत नहीं होती और जब आम बौराता तो उसकी भी कीमत नहीं होती... मौसम की मार से वह झड़ जाता है और फल जब तक पकता नहीं तब तक उसकी कीमत नहीं बढ़ती। शायद इसी वजह से आम आदमी को ‘अवाम’ कहना उपयुक्त लगता है। अब मेरे छोटे से दिमाग से निकले उपसंहार पर गौर फरमाएं...! एक जगह पर पढ़ा था कि हमारे पास जैसे-जैसे धन बढ़ता है तो शून्यता बढ़ती जाती है। क्योंकि हर जीरो के साथ समृदि्ध का ग्राफ बढ़ जाता है और इसीलिए हमारे यहां शगुन की परंपरा में #1EK विकसित हुआ। दूसरे अर्थों में हम अकेले रहे तो #1EK, साथ मिल जाएं तो भी #1EK होते हैं लेकिन आज जब हर चीज की कीमत गिर रही है तो #1EK की कीमत भी कुछ नहीं है पर प्रतीकात्मकरूप से यह बहुत कीमती है...! गंभीरता पूर्वक विचार करें तो #1EK आम आदमी या कॉमन मैन की कद्र कोई नहीं करता लेकिन यह भी सच है कि वही आम आदमी या कॉमन मैन के बलबूते हर सेलिब्रिटी या कोई ब्रांड सफलता की सीढ़ियां चढ़ता है। इसी प्रकार हर शगुन में #1EK का क्या महत्व है, यह सभी जानते हैं परंतु आज के दौर में #1EK रुपए की या #1EK कॉमन मैन की वैल्यू क्या है, यह कहीं पर भी देखा जा सकता है।
लेकिन... यह शब्द बहुत महत्वपूर्ण है... इसके भाई-बंधु किंतु, परंतु आदि भी जहां पर आ जाते हैं तो वाक्यों का अर्थ बदलने में ज्यादा समय नहीं लगता। दुनियादारी पर गौर करें तो हर सेलिब्रिटीज या बड़े आदमी के निगाह में आम आदमी की कीमत ‘शून्य’ होती है लेकिन बात केवल नजरिया बदलने की होती है। अब ‘अवाम’ की फिर से बात... ‘अ’ नकारात्मक और ‘वाम’ जो बाए हैं... तो जनता का नतीजा क्या... साफ है उसे कौन भाव देगा? किसी अंक के साथ कितने भी शून्य बाएं ओर लगा लो... लेकिन उसका मूल्य नहीं बढ़ता लेकिन यदि उसी संख्या के दाएं ओर शून्य लगना शुरू होता है तो उस संख्या की किस्मत खुल जाती है...!
कुछ ऐसा ही सेलिब्रिटीज या ब्रांड के साथ भी होता है... जनता जिसे पसंद करने लगती है... उसे सिरमौर बन जाता है लेकिन जनता को वह जैसे ही भूलना शुरू करता है.. उसकी मिट्टी पलीत होने में भी देर नहीं लगती। उदाहरण की बात करें तो दिमाग पर जोर देने की देर है...! सब समय का चक्र है...। कहते भी हैं आदमी बलवान नहीं समय होता है। जब समय का पहिया घूमता है, तो राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है। जीवन में जब खराब समय आता है, तो व्यक्ति हताश हो जाता है और निराशा के गर्त में चला जाता है, लेकिन जब समय अनुकूल होता है, तब सारी समस्याएं हवा के झोंके के समान उड़ जाती हैं और कई बार लोग अपना बुरा समय भूल जाते हैं...!
कहने का अर्थ यह है कि समय पलक झपकते ही किसी का भी जीवन बदलने की सामर्थ्य रखता है। भारतीय अध्यात्म शास्त्र की मान्यता है कि जीवन में हर परिवर्तन का समय प्रारब्ध के अनुसार पहले से तय होता है। जब अच्छा समय आए, तो घमंड ना करें और जब बुरा समय आए, तो हताश ना हों क्योंकि समय कभी #1EKसा नहीं रहता। आम से खास बनने में केवल समय सहायक है और खास को भी आम समय ही बनाता है। भ्रम और ब्रह्म में ज्यादा अंतर नहीं है... लेकिन अंतिम सत्य मृत्यु है। मेरे शब्दों में... जीवन का अंतिम सत्य... चार ड्राइवर #1EK सवारी.... उसके पीछे रिश्तेदारी...! यह सवारी कभी न कभी हम सभी बनेंगे इसलिए हर दिन को अंतिम मानकर जीएं।
हम आम आदमी हैं (इसका किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है)। वैसे गीता में कर्म को प्रधान माना इसलिए कर्म करते रहे। कभी मेरी कलम से कभी निकला था- हार को ‘हार’ की तरह लेना होगा... जीतने के लिए फिर खेलना होगा। दूसरी बात... ईश्वर ने हम सबको #1EK दिन में समय की दौलत बराबर बांटी है तो फिर काहे की टेंशन। समय के लिए हम सभी बराबर हैं.... और भारतीय अध्यात्मक में वसुधैव कुटुंबकम शायद इसी वजह से कहा जाता है। मैं #1EKḤ हूं और आप भी... और #1EK हमेशा खुद को खास मानता है.. मेरी निगाह में आप भी खास हैं।
अपने भीतर कुछ ढूंढे तो.. इस बारे में आपका क्या ख्याल है? यदि बताएंगे तो मैं आभारी रहूंगा। Dr. Shyam Preeti

Comments

Popular posts from this blog

#1EK फिल्म 'द केरल स्टोरी' ....

चर्चा का बाजार गर्म हो गया.... हिंदी का महज #1EK शब्द ‘भारत’ लिखा तो...

चंद्रयान #1EK से अब चंद्रयान-3 तक का रोमांचक सफर