#1EK जुमला... Boss is always right...

हर ऑफिस में #1EK जुमला आम है... Boss is always right...और यदि बॉस गलत हो तो... कहा जाता है- पहला नियम याद रहो... अर्थात Boss is always right...! यह #1EK ‘मीठा सच’ है...! ‘मीठा सच’ क्यों मैं कह रहा हूं... क्योंकि संस्कृत में कहा गया है- सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् , प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: हमें सत्य बोलना चाहिए और प्रिय बोलना चाहिए। कभी भी अप्रिय लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिए लेकिन प्रिय लगने वाला असत्य भी नहीं बोलना चाहिए।
कहा जाता है कि सत्ता को सत्य पसंद नहीं होता और सत्ता का ही दूसरा नाम बॉस है...। क्या मैं सही हूं? शायद हां या नहीं... लेकिन दुनिया गोल है... यह हम सभी मानते हैं लेकिन सच यही है कि दुनिया पूरी तरह गोल नहीं है... गोल की तरह है। ठीक यही स्थिति हमारी समझ की भी है। अक्सर गणित के दो अक्षरों 9 और 6 का उदाहरण हमारे सामने आ जाता है कि यह देखने का नजरिया है। हो सकता है कि आप सही हो और सामने वाला भी। जो आपको 9 दिख रहा है... वह सामने वाले की नजर से देखेंगे तो 6 नजर आएगा। इसी प्रकार कहते हैं कि कुएं के भीतर रहने वाला मेंढक उसे अपनी दुनिया समझता है लेकिन संसार तो बहुत बड़ा है...तो जब मेंढक कुएं से बाहर आता है तो क्या होगा... यह उसके लिए #1EK मौका होता है... उसे प्लेटफार्म मिलता है अपनी क्षमता दिखाने का... लेकिन यदि उसे वापस कुएं में फेंक दिया जाए तो वह वहीं मर जाएगा। ऐसे तमाम काबिल लोग पहले भी हुए हैं और इस समय भी दुनिया में मौजूद हैं, जिन्हें किन्हीं वजहों से मौका नहीं मिल सका और वे अंत समय तक पीछे ही रहे। लिस्ट लंबी है... और कई ऐसे भी चालाक हुए हैं जो ऐनकेन प्रकारण अपने नंबर बढ़ाकर सफलता हासिल कर लेते हैं।
मतलब साफ है कि काल, परिस्थिति का हर व्यक्तिव पर पड़ता है। हमारे आचरण, व्यवहार, शिक्षा, योग्यता, शालीनता, पहनावा, उदारता, त्याग, क्षमा, बौद्धिकता आदि तत्वों का विकास अर्थात उत्थान या पतन हालात पर निर्भर करता है। गलत आचरण वाला व्यक्ति जब आर्थिक रूप से समृद्ध हो जाता है तो वह समाजसेवा के कार्य कर खुद को समाजसेवी के तौर पर प्रस्तुत कर अपनी छवि बदलने का प्रयास करता है... इसे कृपया #1EK उदाहरण ही समझें। जहां तक ज्ञान की बात है तो यह हर #1EK कण में है... बचपन से सत्य बोलो और धर्म का पालन करो.. सिखाया गया पर हम कितने सत्यवादी बन पाए? दरअसल, असल ज्ञान हमें जब मिलता है तो हम हरेक चीज से सीखने लगते हैं। हिंदी में एक वाक्य है- मन में उतरना और मन से उतरना... महज #1EK शब्द (में और से) का प्रयोग अर्थ बदल देता है। यही व्यवहार है। कबीर दास जी ने भले कहा हो- निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। अर्थात: जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक पास ही रखना चाहिए क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ कर देता है। लेकिन यह पढ़ने में जितना अच्छा लग रहा हो... उतना ही प्रयोग में कठिन है। जैसे कभी मैंने लिखा था- कोई कहानी हो या खबर हमेशा अधूरी रहती है... यही हमारी सि्थति है।
सच यही है कि सौ प्रतिशत कोई भी श्योर नहीं होता कि वह सफल होगा या असफल लेकिन मौका हम उसे ही देते हैं, जिस पर हम विश्वास करते हैं। बॉस और अधीनस्थों के बीच भी यही रिश्ता रहता है। संबंध जो मजबूत बना लेता है... कारण कोई भी हो... तरक्की पा जाता है और नहीं तो नौकरी चलती रहती है। हालांकि सभी यह बात मानते हैं कि हम कितने भी समृद्ध हो या कमजोर मदद तो चाहिए ही चाहिए... क्योंकि यह जीवन एक-दूसरे की मदद से ही चलता है। #1EK दार्शनिक हैं नोआम चाम्सकी... उन्होंने लिखा था- हमें नायकों की खोज में नहीं रहना चाहिए। हमें अच्छे विचारों की खोज में रहना चाहिए। विचार भी विश्वास की तरह है। जैसे विश्वास हमेशा अंधा होता है... फिर भी लोग एक-दूसरे पर करते हैं क्योंकि हमारा जीवन विश्वास के बिना अधूरा है और विश्वास उम्मीद के बिना। कवि पाश लिखते हैं- सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना...।
आप सही तो आपकी गवाही खुद ब खुद वक्त देता है लेकिन... तब तक कई बार बहुत देर हो चुकी होती है इसलिए अपने स्थिति के साथ दूसरों के बारे में भी सोचे जरूर। कृष्ण-राधा सीरियल में एक बार श्रीकृष्ण के मुख स सुना था- कोई भी व्यक्ति आपके पास तीन कारणों से आता है! भाव से, अभाव से या प्रभाव से। यदि भाव से आया है तो उसे प्रेम दो, अभाव से आया है तो मदद दो, और यदि प्रभाव से आया है, तो प्रसन्न हो जाओ कि परमात्मा ने आपको इतनी क्षमता दी है। Dr Shyam Preeti

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