गऊ The Cow फिल्म हिंदुस्तान नहीं ईरान में बनी थी
वर्ष : 1969
मुल्क : ईरान
फिल्म : गऊ (The Cow)
निर्देशक : दारीश मेहरजुईक
वर्ष 1969 में दारिउश मेहरजुई के निर्देशन में बनी गऊ The Cow फ़िल्म में इजातोल्ला इंतेजामी ने मुख्य कलाकार की भूमिका निभाई है। फिल्म गाय के साथ मानवीय प्रेम संबंध पर आधारित है। यहां पर उल्लेखनीय है कि यह फिल्म भगवान राम के पूर्वज दिलीप के साथ हुई घटना से प्रेरित कही जाती है। हिंदुस्तानी कथा के अनुसार, दिलीप को कामधेनू गाय के अपमान को दोष लगा तो उन्हें संतान नहीं हुई। बाद में शाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने नंदिनी गाय की सेवा की। कहते हैं कि वह उसके प्रेम में खो गए थे। बाद में वह शाप से मुक्त हुए और फिर उन्हें पुत्र रघु की प्राप्ति हुई थी।
ईरानी फिल्म की कहानी भी कुछ इसी प्रकार है। इसमें एक ईरानी ग्रामीण है मश्त हसन। वह अपनी गाय से बहुत प्रेम करता है। हसन शादीशुदा है लेकिन उसके कोई संतान नहीं है। उसकी एकमात्र मूल्यवान संपत्ति वही गाय है। एक समय हसन गांव से बाहर जाता है तो उसकी गर्भवती गाय खलिहान में मृत पाई जाती है। हसन लौटता है तो ग्रामीण गाय की मौत उससे छिपाते हैं। उससे कहते हैं कि गाय भाग गई है। इसके बाद हसन धीरे-धीरे नर्वस ब्रेकडाउन का शिकार हो जाता है और बोएंथ्रोपी नामक बीमारी का शिकार हो जाता है।
वह मानने लगता है कि वह गाय है। तब गाय की तरह व्यवहार करने लगता है। नाद में चारा खाता है, गले में घंटी बांधता है और अपने गले में रस्सी डालकर उसी खूंटे से खुद को बांध लेता है और वहीं बैठा रहता है। गांव वाले सोचते हैं कि वह पागल हो गया है। उसे वह इलाज के लिए रस्सियों में बांधकर शहर लेकर जाने लगते हैं लेकिन मश्त हसन एक टीले पर जाकर अड़ जाता है। लोग उसे खींचते हैं लेकिन वह अड़ा रहता है। तभी एक आदमी डंडे से उसे पीटने लगता है और चिल्लाने लगता है,पशु कहीं का…पशु कहीं का…...।
उस समय पीड़ा से न कराहकर मश्त हसन अपनी आंखें मूंद लेता है। वह सोचता है कि अहा, अब जाकर मैं अपनी गाय से एकाकार हो पाया हूँ। अब मैं अपनी गाय बन गया हूँ। वह रंभाकर दौड़ पड़ता है और एक पानी के गड्ढे में गिरकर मर जाता है। यह फिल्म ईरान के तत्कालीन हुक्मरान अयातोल्ला खोमैनी को बहुत पसंद आई थी। इसे देखने के बाद उन्होंने ईरान में गो हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया था जो आज तक लागू है।
पश्चिमी जगत में बोएंथ्रोपी बीमारी की काफी चर्चा होती है लेकिन भारतीय परिवेश से देखें तो पशु और इंसानों में प्रेम की तमाम कहानियां मिल जाएंगी लेकिन राजा दिलीप से प्रेरित कहानी हिंदुस्तान नहीं ईरान मेें बनाई गई, यह अजब इत्तफाक है। इस फिल्म को कई पुरस्कार मिल चुके हैं। इसे यूट्यूब पर देखा जा सकता है। मेरे मन में #1EK सवाल उठता है कि ऐसी कहानी पर विदेशी फिल्में बन सकती हैं लेकिन दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्म बनाने वाला हमारा मुल्क कहानी और कन्टेंट पर ध्यान क्यों नहीं देता? हमारे मुल्क में गाय की उपयोगिता पर जब बहस होती है तो हमें पिछड़ा मान लिया जाता है। इस संबंध में आपका क्या कहना है, यदि बताएं तो आभारी रहूंगा।
Dr. Shyam Preeti
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