आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस... बोले तो सबका #1EK बाप
मशीन क्या है... सरल सा जवाब है जो मानव की मेहनत बचाए... लेकिन इससे आगे वह मानव की तरह सोचने-समझने लग जाए तो... यही तकनीकी कहलाती है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बोले तो एआई। आसान भाषा में इसे समझें तो इसे मशीनों का दिमाग कहा जा सकता है...! आपके दिमाग में कुछ घुसा... यदि जवाब हां है तो आगे बढ़ें नहीं तो आपके दिमाग में भूसा भरा हुआ है... पर यह नजर नहीं आता। गुस्ताखी माफ... मेरी बात का बुरा न मानें... आने वाला समय कुछ अजब-गजब होने वाला है। शुरुआत हो चुकी है... और हर प्रारंभ का अंत भी होता है... तो सोचिए... इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अंतिम पड़ाव कैसा होगा? मुझे लग रहा है कि यह सबका #1EK बाप होगा!
आप कहेंगे इस सवाल का जवाब केवल समय दे सकता है लेकिन जनाब... वह बोलता नहीं है... केवल चलता है लेकिन वह दिखता नहीं है लेकिन... यह जो लेकिन शब्द है... उससे हर कोई परेशान है। कुछ लोग समय को जीवन कहते हैं और जीवन की तरह यह भी बीत जाता है और हमें पता नहीं चलता। अब मुद्दे की बात- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस.... से काम अपने आप होगा... बिना हमारी अनुमति के...! दूसरे शब्दों में कहें तो अभी तक मशीन हमारी गुलाम थी लेकिन अब हम उनके गुलाम बनने की ओर अग्रसर हो चुके हैं...!
हमने जब ऑटोमेटिक मशीन बनाई थी तब भी उसे ऑन/ऑफ करने के लिए हमारी जरूरत पड़ती थी लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से मशीनें पूरी तरह ऑटोमेटिक बन जाएंगी। यह कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है, जिससे मशीनों में सोचने-समझने की क्षमता विकसित की जाती है। कुछ समझे.. नहीं तो सुपर स्टार रजनीकांत की फिल्म रोबोट को देख लें... ज्यादा बेहतर ढंग से समझ जाएंगे। आपका चेहरा खिल गया... इसका मुझे पता चला गया है... यही है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस...का कमाल! इस खोज के लिए आप मुझे धन्यवाद न कहें... बल्कि इसके जन्मदाता जॉन मैकार्थी को दें। वह अमेरिकी कंप्यूटर साइंटिस्ट और शोधार्थी थे, जिन्होंने 1956 में #1EK कार्यशाला के दौरान इस संबंध में जानकारी दी थी।
याद करें.. #1EK खबर की... जब डीप ब्ल्यू चेस (शतरंज) प्रोग्राम के विश्व चैंपियन गैरी कास्पोरोव को पराजित करने की खबर सुर्खियां बनीं थी। सोवियत संघ के इस बंदे पहले गेम में कंप्यूटर को पराजित कर दिया था लेकिन बाद में मात खा गया। यह 1990 का दशक था। सबसे गंभीर बात... आईबीएम द्वारा विकसित इस प्रोग्राम के पास कोई मेमोरी नहीं थी... अर्थात वह अपनी पिछली चाल को याद नहीं रख रहा था। यह केवल कि्रया पर प्रतिक्रिया करता था... अर्थात प्रतिद्वंद्वी की चाल को समझकर अपना जवाब देता था। जब ग्रैंडमास्टर को उसने मात दी... तब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ताकत को सही मायने में पहचाना गया था...!
इसका पॉजिटिव पहलू तो दुनिया को दिख रहा था... है और भविष्य... क्या होगा... इस पर अलग-अलग मत हैं। जैसे- ऑनलाइन एक्जाम में जब हमें सही जवाब आसानी से मिल जाते हैं तो हम खुश हो जाते हैं लेकिन.... यह लेकिन फिर आ गया... गुस्सा न हों... आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से हेल्थ सेक्टर में जबरदस्त क्रांति आई है। कई अन्य क्षेत्रों में भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। ड्राइवर लैस कार... इसी प्रकार का नमूना है लेकिन विकास@विनाश होता है। इसकी कीमत चुकानी पड़ती है... इन मशीनों का ही प्रताप है कि हम दिन-प्रतिदिन आलसी बनते जा रहे हैं। शरीर की केवल उंगलियां काम कर रही हैं और आंखें... बाकी अंग पेट की तरह खाना खा रहे हैं और इसी से वे जंग खा रहे हैं...!
कई फिल्मों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का नकारात्मक पहलू दिखाया जा चुका है और फिल्में हमारी सोच को दर्शाती हैं.... जैसे जेम्स बॉन्ड की फिल्मों में कई तकनीक पहले दिखाई गई और वो चीजें बाद में हमने बना ली। यही सच है... पहले हम सोचते हैं और बाद में वही सोच फलीभूत भी हो सकती है...! आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से कम समय में बेहतरीन परिणाम हमें बहुत लुभा रहे हैं। नतीजा... जो काम जटिल तथा दुष्कर लगते हैं, वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से चुटकियों में निपटाया जा सकता है।
हैनसन रोबोटिक्स के संस्थापक डेविड हैनसन ने 2016 में सोफिया नामक #1EK रोबोट को बनाया था। सऊदी अरब ने 25 अक्टूबर 2017 में इसे अपनी पूर्ण नागरिकता दे दी। यह दुनिया की पहली रोबोट है, जिसे किसी देश की नागरिकता मिली है। जब कभी सोफिया गलत होगी तो सऊदी अरब के कानून के अनुसार उस पर भी मुकदमा चलाया जा सकता है। वर्ष 2017 में मुंबई में जब एशिया का सबसे बड़ा टेक फेस्ट-2017 आयोजित किया गया था तब इसके टेलीफेस्ट में रोबोट सोफिया ने भी हिस्सा लिया था। भारतीय वेशभूषा में सफेद और संतरी रंग की साड़ी पहने सोफिया ने 'नमस्ते इंडिया, मैं सोफिया' कहकर लोगों का न सिर्फ अभिवादन किया था बल्कि उसने सभी सवालों के जवाब भी दिए थे। हिंदी में जब सोफिया न बातचीत की तो सभी आश्चर्यचकित रह गए थे।
अब नवीनतम जानकारी... आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई पर काम करने वाली कंपनी ओपेनएआई ने #1EK नया चैटबॉट बनाया है। चैटबॉट यानी मशीन से चैट करना, लेकिन इसमें आपको इंसान से बात करने जैसी फीलिंग आएगी। इसका नाम है चैटजीपीटी यानी जेनेरेटिव प्रेट्रेन्ड ट्रांसफॉर्मर। यह एक कन्वर्सेशनल एआई है। यह #1EK ऐसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है, जिसके साथ आप इंसानों की तरह बातचीत कर सकते हैं अर्थात आप उससे कुछ भी पूछोगे तो वो आपको इंसानों की तरह डिटेल में लिखकर उस सवाल का जवाब क्रिस्प तरीके से देगा। यह काफी एक्यूरेट होगा। इसे 30 नवंबर 2022 को लॉन्च किया गया था।
ओपन एआई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर रिसर्च करने वाली कंपनी है। इसकी शुरुआत साल 2015 में एलन मस्क और सैम अल्टमैन ने मिलकर की थी। हालांकि, साल 2018 में एलन मस्क ने इस कंपनी को छोड़ दिया था। ओपनएआई में माइक्रोसॉफ्ट सहित कई दिग्गज टेक कंपनियों का निवेश है। चूंकि यह लगभग सटीक उत्तर देता है। इसी वजह से महज कुछ ही दिनों में चैटजीपीटी पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया। महज दो महीने के भीतर ही इसने 100 मिलियन यानी 10 करोड़ यूजर्स का आंकड़ा पार कर लिया।
इसी सफलता देखकर गूगल ने इसी तर्ज पर चैटबॉट बार्ड बनाया है लेकिन #1EK प्रमोशनल वीडियो के सवाल का गलत जवाब देने से गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फाबैट के शेयर्स में भारी गिरावट आई। नतीजा.... मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बार्ड की लॉन्चिंग के बाद करीब 100 अरब डॉलर यानी 8250 अरब रुपए का नुकसान हुआ है। दरअसल, लॉन्चिग के प्रमोशनल वीडियो में बार्ड से #1EK सवाल पूछा गया था, जिसमें था कि नौ साल के बच्चे को जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की नई डिस्कवरी के बारे में क्या बताया जाना चाहिए? एआई बार्ड ने इसका जवाब दिया कि जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का यूज मिल्की वे के बाहर के ग्रहों की फोटो लेने के लिए किया जाता है। हालांकि बार्ड का यह जवाब गलत है। #1EK इत्तफाक का यह नतीजा इतना नुकसानदायक रहा। यह तो शुरुआत है... आगे-आगे देखिए... होता है क्या? अभी तो सर्च इंजन के खत्म होने की चर्चा चल रही है... #1EK ब्रांड जो कभी लोकप्रियता बन जाता है लेकिन समय की आंधी के चलते वह अचानक बाजार से गायब हो जाता है।
Dr. Shyam Preeti
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