जानवर और इंसान में बस #1EK पर्दे का अंतर था... है...

अंग्रेजी में कभी #1EK लाइन पढ़ी थी- Man is a social animal... दूसरे शब्दों में कहें तो हर इंसान जानवर होता है क्योंकि उसमें जान बोले तो जीवात्मा होती है। मैंने काफी पढ़ने की कोशिश की कि दोनों में कुछ खास अंतर देखने को मिले लेकिन मेरे तुच्छ दिमाग में यह अंतर नहीं घुसा...! ज्यादातर लोगों ने यही लिखा था कि आहार, निंद्रा, भय, मैथुन आदि में दोनों समान हैं लेकिन मेरा मानना है कि जानवर और इंसान में बस #1EK पर्दे का अंतर... है... और अब यह था... हो गया है!
है... से था... तक का यह सफर तो वैसे पहले भी होगा लेकिन सोशल मीडिया के दौर में यह है... से था... तक न सिर्फ पहुंच चुका है बल्कि लोग इसे आनंद के रूप में देख रहे हैं। कई तो जानवरों जैसे बन भी चुके हैं...! वैसे ज्यादातर लोगों का मानना है कि मनुष्य में विवेक व चिंतन की क्षमता होती है लेकिन जानवरों में नहीं... लेकिन कई इससे इत्तफाक नहीं रखते। मेरा स्पष्ट मानना है कि मनुष्य की यही सोच... अंतर... उन्हें मनुष्य बनाती है लेकिन जानवर भी बुद्धिमान होते हैं और गाहे-बगाहे ऐसे तमाम फुटेज हमको देखने अब मिल जाते हैं। पहले ऐसी कहानियां हम पढ़ा करते थे लेकिन अब सोशल मीडिया का जमाना है... बोले तो आभासी दुनिया...! इस दुनिया का सबसे बड़ा फायदा शायद यही है कि आप सबके साथ हो लेकिन अकेले हो... लोग अपनी क्षुधा शांत करने के लिए जानवर बन सकते हैं और जानवरों को इंसान बनने के लिए भी मजबूर कर सकते हैं... इस तथ्य को कृपया व्यंग्य के तौर पर पढ़े तो ज्यादा बेहतर रहेगा क्योंकि यही सच है लेकिन इसे स्वीकार करने के लिए आपको कलेजा बड़ा करना पड़ेगा। माना जाता है कि पशु केवल भोग योनि से संबंधित है और मनुष्य कर्म और भोग योनि दोनों से जुड़ा है लेकिन सोशल मीडिया के दौर ने मनुष्य को जानवर से बदतर साबित किया है। पशु को भोग योनि से संबंधित करने वाले विद्वानों ने ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी। पशुओं का हर कर्म निशि्चत होता है... समय और मौसम के अनुरूप होता है...। इसी प्रकार पारंपरिक हिंदू पितृ ऋण की चर्चा करते हैं। उनका मानना है कि हरेक जीवित व्यक्ति अपने पूर्वजों यानी पितरों के प्रति प्रजनन करने के लिए बाध्यकारी है। पितृ ऋण बच्चों को जन्म देकर मृतकों को भू-लोक में पुनर्जन्म लेने के लिए सक्षम बनाकर चुकाया जाता है।
इसके विपरीत मनुष्य अक्सर जानवरों से अपनी तुलना करना बहुत पसंद भी करता है। यह तस्वीर का एक पहलू है... दूसरा पहलू भी है... वह पशुओं के नामों का उदाहरण देकर आलोचना भी करता है। दूसरे शब्दों में गालियां...! #1EK बार कहीं पढ़ा था... हिंदी की क्लास में विद्यार्थी से सवाल किया गया कि गाली किसे कहते हैं... तो जवाब आया कि अत्याधिक क्रोध आने पर शारीरिक रूप से हिंसा न कर जब हम मौखिक रूप से हिंसा करते हैं... तो चुने हुए शब्द गालियां कहलाती हैं। दरअसल, क्रोध को पारा तभी कहा गया है कि वह नीचे से ऊपर चढ़ता है तो दिमाग तक पहुंचते ही वह विस्फोटक रूप धारण कर लेता है। तभी कहा गया है कि ठंडा पानी पीने से क्रोध शांत होता है...! यहां पर हम जानवर और इंसान के बीच संबंधों पर चर्चा कर रहे थे तो जानवरों का राजा शेर होता है... और जब भी बहादुर की चर्चा होती है तो हर इंसान स्वयं को शेर ही बताता है या दूसरे को भी शेर की उपाधि देता है। काम करने वाला गधा या बैल कहलाता है और ज्यादा बातूनी को कुत्ते की उपाधि से संबोधित कर भौंकने वाला कह दिया जाता है। ज्यादा नाराजगी हो तो भी सामने वाले कुत्ता कहकर लोग अपना गुस्सा निकाल देते हैं। ज्यादा सीधा व्यकि्त गाय और अधिक शांत व्यक्ति को उल्लू भी कहने से लोग गुरेज नहीं करते। उछल-कूद कर चलने वाले लोग हिरन कह देते हैं... यदि वह लड़की हो तो हिरनी कहा जाता है। इसी प्रकार बुद्धि से पैदल व्यकि्त को बैल की उपाधि से नवाजा जाता है और यदि सम्मान देते हुए उसे चिढ़ाना हो तो नंदी या बैशाख नंदन बोले तो गधा कहा जाता है...! ज्यादा तेज चाल वाले घोड़े कहलाते हैं और काम में धीमे... खच्चर...! जब प्रेमी गुटर-गूं करते दिखते हैं तो कबूतरों की जोड़ी और बिल्ली को तो ज्यादातर मौसी क्यों संबोधित करते हैं, यह बड़ा रहस्यमय है। हालांकि कहानी कहती है कि बिल्ली ने शेर को पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाया था... इसी चालाकी की वजह से वह अपनी जान बचा सकी थी और तभी से मौसी की उपाधि धारण की थी...! हालांकि समाज में तमाम तरह के जानवर हैं... और ऐसी में मानवों से उनकी तुलना स्वाभाविक भी है लेकिन यह भी सच है कि शेर या दूसरे जानवर अपनी भूख मिटाने के लिए शिकार करते हैं... वे भविष्य के लिए नहीं सोचते... लेकिन इंसान अपने तो अपने लिए... अपनी संतानों... उनकी संतानों के लिए भी सोचता मिल जाता है। गजब नहीं है यह तथ्य...? कहा जाता है कि पूत कपूत तो क्यों धन संचे, पूत सपूत तो क्यों धन संचे... लेकिन यही दुनिया है जनाब। यहां बलात्कार आदमी करता है और बदनाम जानवर को किया जाता है... जानवर कहीं के...! मनुष्य का दंभ भरने वाले ऐसी तमाम तरह की गंदगी फैलाते हैं.... और फैला रहे हैं... सोशल मीडिया तो इसमें सबसे बड़ा हथियार बनकर उभरा है... लेकिन किसी को क्या फर्क पड़ता है? जानवर को यदि हम पालते हैं तो कभी गुस्से में मार भी देते हैं लेकिन वह शायद ही विद्रोह करे... मार खाकर भी वह वफादार ही रहता है लेकिन इंसान ऐसा प्राणि है, जिसे चाहे जितना भी प्यार दो... कोई गारंटी नहीं है कि वह आपको भी प्यार देगा.. वह आपको कभी भी धोखा दे सकता है। जानवर को जो मिल जाता है, उसी में संतुष्ट हो जाता है और मानव अपने मन के लिए मनमानी करता रहता है।
कहा जाता है कि मनुष्य में विवेक व चिंतन की क्षमता होती है पर यह पशुओं में नहीं मिलती लेकिन मुझे लगता है कि यह सिर्फ किताबी बातें हैं। आंखें बंदकर जरा विचार करें तो पता चल जाएगा कि मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाएं तमाम होती हैं.. हमें दिखाई देती हैं.. दिखाई जाती है लेकिन जानवरों को जब गुस्सा आता है तभी वो आक्रामक होते हैं। यह गुण मनुष्यों में भी होता है... जब खुद के जान पर बन आती है तो वह भी आक्रामक हो सकता है और यह जायज भी है लेकिन यदि वह बिना वजह आक्रामक होकर मनुष्यता छोड़ने पर आमदा हो तो सही मायने में उसे जानवर की उपाधि से नवाजकर पशु बिरादरी की बेइज्जती न करें... यह मेरा विनम्र अनुरोध है! Dr.Shyam Preeti

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