#1EK आधा भरा गिलास... आधा खाली गिलास

जब कभी भी हमारी सोच के संबंध में बात आती है तो सबसे पहले सामने वाला शख्स #1EK उदाहरण जरूर दे मारता है- आधा गिलास भरा और आधा खाली गिलास का...! मेरे साथ तो यह कई मर्तबा हुआ है और आपके साथ भी ऐसा हुआ होगा... मेरा यह स्पष्ट मानना है...! सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि यह घिसा-पिटा उदाहरण देने वाले तमाम लोगों को गिलास हमेशा आधा भरा हुअा दिखाई देता है... यह बताकर वह खुद को श्रेष्ठ... सर्वश्रेष्ठ बताने की कोशिश करते हैं लेकिन जब कठिनाई खुद पर आती है तो गिलास की जगह वह लोटा पकड़े नजर आते हैं...!
दरअसल, इस उदाहरण का सकारात्मक पहलू है लेकिन मेरी बातों को नकारात्मक न लें... वैसे भी गणित में माइनस और माइनस मिलकर प्लस बन जाते हैं। यह पढ़कर यदि आपका चेहरा खिल गया हो, तो निश्चित तौर पर आपकी सोच भरा गिलास... यानी सकारात्मक है और अभी तक आपके मुख पर तनाव की लकीरें हैं तो आपका गिलास आधा खाली है... अर्थात आप नकारात्मक ऊर्जा से भरे हुए हैं... लेकिन यह भी सच है कि आप में जो ऊर्जा है... उसे सकारात्मक बनाने में आपको खुद के भीतर जज्बे की आग जलानी पड़ेगी और नतीजा... आह... से वाह... तक के सफर पर आप चल पड़ेंगे। आधा गिलास भरा... आधा गिलास खाली... हमारे नजरिये का पैमाना मान लिया गया है... उदाहरण घिस गया है लेकिन आज भी हिट है... काहे...? साफ है किसी को कुछ नया मिला नहीं या फिर हमने नया सोचने की कोशिश ही नहीं की। जैसे कोई भी जीत जाता है तो जीत का निशाना उंगलियों से ‘वी’ का निशाना दिखाता हुआ मुस्कुराता हुआ फोटो खिंचवाता है। कहते हैं विस्टन चर्चिल ने ऐसा अपने नाम के ‘वी’ को असरदार बनाते हुए लोगों को प्रभावित करने के लिए जो कोशिश की... वह आज भी सुपर-डुपर हिट है और शायद आगे भी जारी रहेगी।
जहां तक नजरिये की बात है तो यह सकारात्मक और नकारात्मक कहा जाता है लेकिन इन दोनों के बीच में भी कुछ स्थान रहता होगा... उसका क्या..? बीच वाला वैसे भी अनाथ रहता है, सो इसकी परवाह कौन करे। अब नकारात्मक और सकारात्मक रुख की बात करें तो... किसी के लिए जो नकारात्क है... वह दूसरे के लिए सकारात्मक हो सकता है और जो किसी के लिए सकारात्मक है.. वह दूसरे के लिए नकारात्मक भी हो सकता है...! ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं... राजनीति में ऐसा लॉजिक आम है। गुस्ताखी माफ.. हम बात कर रहे थे आधा गिलास भरा... और आधा गिलास खाली की...; आम सोच है कि परिस्थिति के अनुसार हमारी सोच बताती है कि हम कैसे हैं लेकिन काल के अनुसार परिस्थिति का स्वरूप भी बदल जाता है जनाब।   जैसे... तमाम लोग कहते हैं किस्मत कुछ नहीं होती... सब कुछ मेहनत होती है लेकिन तब मजदूर क्यों... गरीब रहता है... सवाल उठाने पर कथित रूप से श्रेष्ठतम व्यकि्त नया तर्क गढ़ते हैं कि वह अपनी सोच नहीं बदलता... अपना उत्थान करने के लिए सोच बदलने की जरूरत पड़ती है लेकिन जब हालात आपको फिल्म ‘शराबी’ का गाना... मंजिलें अपनी जगह है... रास्ते है अपनी जगह... जब कदम ही साथ न दे... तो मुसाफिर क्या करे...का सुना रहे हो तो? प्रश्न बड़ा मौजूं है लेकिन यही जिंदगी है...! जरा नजरें घुमाएं... राजनीति के धुरंधर महारथियों के कई पुत्र हैं.... उनके नाम लेने की जरूरत नहीं... क्योंकि उन्हें व्यर्थ में प्रचार मिल जाएगा... मैं तो उन्हें ‘बकलोल’ कहता हूं... को भरा हुआ गिलास मिला था... उन्होंने पहले इस गिलास को आधा खाली किया और अब वह दुनिया को आधा भरा हुआ गिलास दिखाकर ज्ञान बांट रहे हैं कि मुझे जिताओ... और अपना गिलास भरो...! इसके अलावा #1EK लोकप्रिय कवि के प्रिय एड्स वायरस आदि तमाम ऐसे बंदे हैं... जो आम आदमी को ब्रांड बनाने का दावा कर रहे हैं...! अब मेरी बात... मैं तो स्वयं को केवल #1EK आम भारतीय मानता हूं... जिसने शून्य से शुरुआत की थी और अब लेखक बनकर अपना गुजारा कर रहा हूं। मुझे भरा गिलास ... प्रारब्ध न भरकर नहीं दिया लेकिन शिकायत किसी से नहीं है। जहां तक मेरे नजरिये और सोच की बात की जाए तो मैंने हमेशा लीक तोड़ने की कोशिश की... सफलता मिले या नहीं.... मैं प्रयास करना नहीं छोड़ता। #1EK उदाहरण... 11 साल मुझे पीएचडी करने में लग गए... लेकिन कहानी लंबी है। वह फिर कभी... लेकिन जहां तक मेरे नजरिये का प्रश्न है... मैं आधे भरे गिलास से आगे की सोचता हूं। एक बार मेरे हाथ में पानी की बोतल थी... मैं भी आधा गिलास खाली और आधा गिलास भरे की कहानी पढ़कर बोर हो चुका था... सो पानी की बोतल निहारने लगा... प्यास लगी थी तो आधी बोतल का पानी गटक गया। फिर भी बोतल आधी भरी थी और... सही फरमाया... आधी खाली..., चूंकि मैं उस समय अवसाद में था... सो मुझे वह कभी खाली दिखती तो मेरा मजबूत मन फरमाता कि वह आधी भरी है। मैंने सोचा... इस आधी बोतल को क्या मैं बिना ढक्कन खोले अपने नजरिये से इसे भर नहीं सकता? प्रश्न गंभीर था... बोतल को बिना खोले पानी से भरा खुद को दिखाना... मैं हाथ में बोतल लेकर इधर-उधर शराबी की तरह घूमने लगा... अचानक थक तक बैठ गया और फिर मन हुआ कि लेट लिया जाए... सपने में कई प्रश्न के सवाल हमें आसानी से मिल जाते हैं...। यह टोटका सच में काम कर गया। लेटकर आंखें बंद करने की देर थी... दिमाग में #1EK विचार कौंधा... शरीर को औंधे मुंह से पलटा तो हाथों की बोतल शरीर के ऊपर आ गई और पानी से वह मुझे भरी दिखने लगी... मेरे मुंह से निकला... वाह... क्या बात है... खाली स्थान मेरी सोच के ऊपर चला गया था और बोतल का ढक्कन भी नहीं खोलकर पानी भरा गया था। बोतल का खालीपन ऊपर वाले को तो नजर आ रहा था लेकिन मुझे तो भरा हिस्सा ही दिख रहा था...। मुझे लगा कि लोग भले मुझे नकारात्मक समझे... मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता... मैं सकारात्मक हूं... मेरी बोतल भरी है... भले वह सामने वाले को खाली दिखाई दे रही होगी... ! Dr. Shyam Preeti

Comments

Popular posts from this blog

#1EK फिल्म 'द केरल स्टोरी' ....

चर्चा का बाजार गर्म हो गया.... हिंदी का महज #1EK शब्द ‘भारत’ लिखा तो...

चंद्रयान #1EK से अब चंद्रयान-3 तक का रोमांचक सफर