अल्लाह के कम से कम हैं 99 नाम...!

गूगल से #1EK प्रश्न पूछो- इस्लाम का अर्थ क्या होता है? उत्तर मिलेगा- इस्लाम शब्द का अर्थ है: 'अल्लाह को समर्पण'; इस प्रकार मुसलमान वह है, जिसने अपने आपको अल्लाह को समर्पित कर दिया यानी कि इस्लाम धर्म के नियमों पर चलने लगा। इस्लाम धर्म का आधारभूत सिद्धांत अल्लाह को सर्वशक्तिमान, एकमात्र ईश्वर और जगत का पालक और हजरत मुहम्मद को उनका संदेशवाहक या पैगम्बर मानना है।
इसी प्रकार इस्लाम में अल्लाह के कितने नाम है... प्रश्न का जवाब मिला... हदीस के अनुसार, इस्लाम में ईश्वर (अल्लाह) के कम से कम 99 नाम हैं, जिन्हें' अस्माउ अल्लाहि अल-हुसना बोले तो ‘अल्लाह के सुंदर नाम’ के रूप में जाना जाता है। इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद साहब ने हदीस में कई नामों से अल्लाह को बुलाया है। मुस्लिमों का मानना है कि इस्लाम के अनुसार अल्लाह ही #1EK मात्र ईश्वर है लेकिन जब स्वयं इस्लाम के पैगंबर हजरत मुहम्मद उसके कम से कम 99 नाम का जिक्र करते हैं तो कट्टरता काहे की...? जैसे ही हम मानते हैं कि ईश्वर #1EK है... तो यह सिद्धांत एकेश्वरवाद कहलाता है। ईसाई और यहूदी धर्म में भी यही माना जाता है। अब सनातन की बात करें तो... यह प्राचीनतम है और हमने ब्रह्म को #1EK ही माना है। यह बात और है कि सनातनी इसे साकार और निराकार दोनों रूपों में स्वीकार करते हैं। बस यही अंतर इसे अन्य पंथों इस्लाम, ईसाई आदि से इसे अलग करता है। तुलसीदास जी रामचरित मानस में राम जी की आराधना करते हैं। उनके देवत्व का बखान करते हैं लेकिन उन्हें ब्रह्म का साकार रूप कहते हैं। इसके साथ ही तुलसीदास जी ब्रह्म के निराकार का भी वर्णन करते हैं। वह लिखते हैं- बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥ आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥ इसका भावार्थ है ः वह (ब्रह्म) बिना ही पैर के चलता है, बिना ही कान के सुनता है, बिना ही हाथ के नाना प्रकार के काम करता है, बिना मुँह (जिह्वा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के बहुत योग्य वक्ता है...! क्या यह कथन सत्य नहीं लगता? ईश्वर किसी के साथ कब, क्या कर दे, इसका किसी को पता होता है? नहीं... इसी प्रकार तुलसीदास जी लिखते हैं- "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। हानि, लाभ, जीवन, मरण,यश, अपयश विधि हाथ।" इस पद में तुलसीदास जी कितनी सरल भाषा में लिखते हैं कि हानि-लाभ, जीवन-मरण और कीर्ति-अपकीर्ति, सुख-दुख आदि विधाता अर्थात ईश्वर के हाथों में है। इसे ईश्वर का लेख समझकर बिसरा दो। यही सरलता ही सनातन की खूबी है। इसके बावजूद अन्य धर्मों या पंथों को मानने वाले सनातन की कथित कमियों को इंगित करते हुए उसकी आलोचना करने से नहीं चूकते। दूसरी ओर सनातन किसी की आलोचना नहीं करता। वह वसुधैव कुटुंबकम का उद्घोष करता है और मानवता को सबसे आगे रखते हुए सभी की सोच को सम्मान देता है। आप मूर्तिपूजा करें या न करें, सनातन आप पर जोर नहीं देता... लेकिन अन्य धर्मो या पंथों में ऐसा नहीं है। यह बात उन्हें मानने वाले भी स्वयं मानते हैं। मैं तो बहुत साधारण इंसान हूं और #1EK की अवधारणा खोजने के बाद इसको समझने का प्रयास कर रहा हूं। इसे जितना समझने की कोशिश करता हूं, यह विषय उतना ही बढ़ा होता दिखता है जैसे आकाशगंगा...! Dr. Shyam Preeti #1EK पुराना लेख... लिंक है... https://zee1ek-itifaq.blogspot.com/2022/12/1ek_22.html

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