#1EK आदमी का #सवाल : क्या पेशाब पीना जरूरी है?
ईश्वर ने हमें मानव बनाया और हममें से तमाम ऐसे लोग हैं जो मानवता ही भूल चुके हैं। हिंदू धर्म की सबसे खास बात कि कर्म को प्रधान माना जाता है लेकिन समय ने जाति को प्रधान बना दिया। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में बहुत पहले लिखा था –नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं अर्थात संसार में ऐसा कोई नहीं है जिसको प्रभुता पाकर घमंड न हुआ हो...! यह सच हर कहीं दिखता है। बात समाज की हो या घर की... ऑफिस हो या राजनीति की या कोई भी क्षेत्र...!
जब ताकत आती है, वह किसी भी प्रकार की हो.. तो घमंड आना स्वाभाविक बन जाता है और ऐसे में कई बार ताकतवर बना वह शख्स वह काम कर डालता है, जो सामाजिक, मानवीय दृष्टिकोण से अमानवीय होता है लेकिन ऐसा हर जगह होता दिखता है। अभी सबसे ज्यादा चर्चित मामला सीधी पेशाब कांड के पीड़ित आदिवासी दशमत रावत से जुड़ा है।
कुछ समय #1EK वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें सीधी के भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला का प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला सीढ़ियों पर बैठे #1EK आदिवासी युवक पर पेशाब करता दिख रहा था। इसके बाद कांग्रेस हमलावर हो गई और डैमेज कंट्रोल करने के लिए मामा शिवराज सिंह ने कड़े कदम उठाते हुए प्रवेश शुल्क पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट सहित कई धाराओं में केस दर्ज किया गया।
इसके साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 6 जुलाई को पेशाब कांड के पीड़ित दशमत रावत से मुलाकात की थी। उसे सुदामा बताया और पैर धोए और शॉल ओढ़ाकर सांत्वना दी। कुछ लोगों ने इस व्यंग्य भी किया कि शिवराज खुद को कृष्ण के रूप में पेश कर रहे हैं...! हालांकि सोशल मीडिया में शिवराज सिंह की इस पहल की तारीफ भी खूब हुई। इस मुलाकात के दौरान उन्होंने दशमत रावत के साथ बैठकर खाना खाया और बातचीत भी की। यह वीडियो भी खूब वायरल हुआ।
अब इस घटनाक्रम का दूसरा पहलू देखें... समय चक्र ने जिस व्यक्ति के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई थी, उसे एकाएक बड़ी शख्सियत के सामने पहुंचा दिया। मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री उसके पैर धो रहा था... यह आश्चर्यजनक नहीं लगता... इसे क्या जीवनएक इत्तफाक (ZEE1EK Itifaq) नहीं कहा जा सकता...? लेकिन यह भी सच है कि राजनीति के नितिहार्थ बड़े होते हैं...! सम्मान किसी भी व्यकि्त का हो... वह महत्वपूर्ण हो। मैंने अपने व्यंग्य संग्रह बजाओ घंटा विकास आ रहा है... में कर्तव्य और जिम्मेदारी का जिक्र का है लेकिन हम अपनी सीमा भूल जाते हैं। हमारी सीमा वहीं खत्म हो जाती हैं, जहां दूसरे की शुरू होती है... लेकिन न कोई कहना चाहता है और कोई सुनना।
दशमत का पैर धोने से उसका खोया आत्मसम्मान क्या लौट आएगा... लेकिन इतना तय है कि उसके साथ घटी घटना उसे जीवनभर सताती रहेगी। ऐसा नहीं है कि पेशाब पिलाने जैसी घटना कोई पहली बार हुई हो। ऐसा कई बार होता आया है। राजस्थान में टोंक जिले के मूंडियाकला गांव में एक व्यक्ति के साथ ऐसी ही घटना हुई थी। इसी प्रकार कई साल पहले मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में भी ऐसी घटना घटी थी। उसे पूजा के लोटे में पेशाब पिलाया गया था। बाद में पीडि़त ने आत्महत्या कर ली थी। पीडि़त का नाम था विकास शर्मा.. और आरोपी का नाम था मनोज कोली... कोली दलित समुदाय का था।
यहां मेरा उद्देश्य किसी समुदाय पर सवाल लगाना नहीं है लेकिन हमें अपनी मानसिकता बदलने पर जरूर सोचना चाहिए। मेरा स्पष्ट मानना है कि स्वच्छ समाज में मनोज कोली और प्रीतेश शुक्ला जैसे लोग कलंक हैं...। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने दशमत के साथ बेहतरीन व्यवहार किया... ऐसा ही अन्य गरीबों के साथ भी राजनीतिज्ञ नहीं कर सकते? मेरा स्पष्ट मानना है कि इस दुनिया का सबसे बड़ा पाप श्रम की बर्बादी है और यह काम सबसे ज्यादा किया जा रहा है। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। इसके अलावा यदि असमानता की खाई पाटना ही लोकतंत्र का मकसद है तो इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्या पेशाब पीना जरूरी है... यह सवाल #1EK आदमी का है... इसका जवाब आप क्या देना चाहेंगे... मुझे इंतजार रहेगा!
Dr. Shyam Preeti
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