कॉरपोरेट जगत में भी #1EK स्वामीनाथन की है जरूरत
कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन... बोले तो भारत की हरित क्रांति के जनक; इस दुनिया से रुखस्त भले हो गए हों लेकिन उनके किए गए काम से चमक रहा उनका नाम सदैव के लिए अमर हो चुका है।
भारत की जनसंख्या आज विश्व में सर्वाधिक मानी जा रही है लेकिन देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर है, तो इसका श्रेय डॉ. स्वामीनाथन, अमेरिका के महान कृषि वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग और उनके साथी कृषि वैज्ञानिकों को दिया जाता है। डॉ. स्वामीनाथन और बोरलॉग के नेतृत्व में हुए अनुसंधानों के चलते बीमारियों से लड़ सकने वाली गेहूं तथा बाजरा के नए उन्नतशील किस्म के बीज विकसित किए गए थे। गौरतलब है कि दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र, पूसा में यह अनुसंधान किया गया था।
यहां पर उल्लेखनीय है कि ये वैज्ञानिक अपने गहन शोध के दौरान इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि यदि पौधे की लंबाई कम कर दी जाए, तो इससे बची हुई ऊर्जा उसके बीजों में लग सकेगी। इससे कुल फसल की पैदावार बढ़ेगी। इनकी सोच रंग लाई और एक हेक्टेयर में दोगुना गेहूं की पैदावार संभव हो गई। पहले जहां करीब 20 क्विंटल गेहूं की फसल किसान ले पाता था, अब यह पैदावार करीब 40 कि्वंटल तक पहुंच गई। यह हरित क्रांति का श्रीगणेश था।
यह भी इत्तफाक रहा कि उनका 28 सितंबर को निधन हुआ और इसी दिन भगवान श्री गणेश को लोग विदाई दे रहे थे। सनातन धर्म में किसी भी काम का श्रीगणेश बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और 'हरित क्रांति' कार्यक्रम के तहत ज्यादा उपज देने वाले गेहूं और चावल के बीजों को डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने शकि्तशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इस हरित क्रांति ने भारत को दुनिया में खाद्यान्न की सर्वाधिक कमी वाले देश के कलंक से उबारकर 25 वर्ष से कम समय में आत्मनिर्भर बना दिया।
एम. एस. स्वामीनाथन को 'विज्ञान एवं अभियांत्रिकी' के क्षेत्र में भारत सरकार ने वर्ष 1967 में 'पद्म श्री', 1972 में 'पद्म भूषण' और 1989 में 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया था। इस महान कृषि वैज्ञानिक का निधन 98 वर्ष की अवस्था में चेन्नई सि्थत अपने आवास में निधन हो गया।
यहां पर उनकी सोच की चर्चा #1EK बार फिर करना चाहूंगा... उन्होंने पौधों की लंबाई कम कर बची ऊर्जा के प्रयोग का मंत्र दिया था लेकिन आज कॉरपोरेट जगत में इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। काम की अधिकता के चलते कर्मचारी और अधिकारी तनावग्रस्त हो रहे हैं। कई अधिकारी जो काबिल नहीं हैं, वे समझते हैं कि यदि और कहीं गए तो उनका वेतन कम हो जाएगा, नतीजतन वे चौबीसों घंटे जूझते दिखते हैं। काम भले करें या न करें, लेकिन दिखावा करने के लिए मीटिंग आदि का बहाना करते हैं। इसके बाद कर्मचारियों को कोल्हू का बैल बनाने का उपक्रम किया जा रहा है। काम के घंटे तय हैं... लेकिन कॉरपोरेट जगत में आने का समय तय है... जाने का नहीं। और ओवरटाइम की बात न करें तो बेहतर है। मेरा मानना है कि श्रम पानी की तरह ही कीमती है लेकिन उसका दुरुपयोग किया जा रहा है, नतीजा.... परिणाम खराब हो रहा है। आज कॉरपोरेट जगत की बेहतरी के लिए भी #1EK स्वामीनाथन की जरूरत है।
Dr. Shyam Preeti
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