धर्म और मजहब का सबसे बड़ा फर्क
पहलगाम में आतंकियों की करतूत ने उनके जहरीले विचारों के खौफ को रेखांकित करने के साथ धर्म और मजहब के बीच सबसे बड़े फर्क को भी साफ किया है। बात शब्दों में उलझने की नहीं समझने की है। धर्म जहां मनुष्य को जीवन जीने के नियमों और सिद्धांतों से जोड़ता है वहीं मजहब किसी विशेष पूजा पद्धति के तहत खास नियमों के पालन करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
जैसे- ईश्वर एक है... की अवधारणा मानने वाले तीनों अब्राहमिक मजहबों यहूदी, ईसाई और इस्लाम की सोच लगभग समान है। बावजूद इसके इनमें संघर्ष भी जारी है। भूमध्य सागर और मृत सागर के बीच स्थित यरूशलम बोले तो जेरूशलम को दुनिया में शांति का शहर कहा जाता है। यह तीनों मजहबों की साझा विरासत है लेकिन सैकड़ों वर्षों से इन तीनों के बीच संघर्ष चला आ रहा है...!
इसके विपरीत हिंदू यानी सनातन धर्म में सब स्वीकार्य की परंपरा रही है। इसमें पत्थरों तक को ईश्वर का दर्जा देना आम है तो उसे स्वर्णाभूषणों से लादना भी सामान्य बात है। सामान्य पत्थर को हम देवता यानी ईश्वर बना देते हैं...! यही है सरलता।
कहते हैं, सरलता सबसे ज्यादा कठिन है और तभी तमाम लोग इसका मजाक भी बनाते हैं लेकिन कभी इस संबंध में गंभीरता से सोचा नहीं जाता कि सामान्य से पत्थर को भगवान क्यों कह दिया जाता है... ऐसा क्यों? सालों के अध्ययन के बाद पर जटिल न बनते हुए सरलता से विचार किया तो पाया कि ये पत्थर शून्य... के प्रतीक हैं... और हम एक... के...! सनातन में महाकाल के लिए कहा जाता है- वही शून्य है, वही इकाई, जिसके भीतर बसा शिवाय...! यानी ईश्वर को एक और शून्य कहा जा सकता है। जब ईश्वर शून्य है... तो वह प्रार्थना करने से हमारे साथ जुड़ता है तभी हम शक्तिशाली बोले तो 10 बन जाते हैं...! ईश्वर का जितना ज्यादा जुड़ाव हमसे बढ़ता जाता है... हमारे एक... के साथ उतने शून्य बढ़ते जाते हैं और हम शकि्तशाली से और भी बलशाली बन जाते हैं...!
स्पष्ट है कि अस्तित्व में जो कुछ भी मौजूद है, वह ऊर्जा कही जाती है और शक्तिशाली होना उसी का प्रतीक है। इसके विपरीत ज्यादातर पंथों का कहना है कि ईश्वर एक है... और उसे अनेक नामों से जाना भी जाता है... बावजूद इस तथ्य को कोई स्वीकार करना नहीं चाहता... यह सच संसार के परिदृश्य में दिखता है...! कर्मफल का सिद्धांत, ईश्वर के गणित से जुड़ा माना जाता है... यही है शून्य से एक तक की यात्रा।
यह महत्वपूर्ण है लेकिन दो से नौ तक की दौड़ भेड़चाल कहलाती है... इसी का दूसरा खतरनाक रूप है भेड़िया धसान... भेड़िया अकेले नहीं संगठित होकर हमला बोलते हैं, जैसे- आतंकी...! किसे मारना है, क्यों मारना है, तय नहीं...! वे इसे धर्मयुद्ध की संज्ञा देते हैं पर यह महज सफेद झूठ है।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, इन आतंकियों ने धर्म पूछकर लोगों के प्राण हर लिए लेकिन वे भूल गए कि काबा में जाने वाले भी एक पत्थर को चूमते दिखते हैं। वह जो वस्त्र पहनते हैं, उसे अबराम कहा जाता है... उस नाम में राम है पर विवाद क्यों? दरअसल, इस दुनिया की संस्कृतियों में समानता देखना संयोग कहा जाए तो विवाद नहीं होता... लेकिन यदि झगड़ा करना या कराना हो तो नजरिया थोपा जाता है पर दुनिया गोल है...शून्य सरीखी है। इस शून्य का अपना कोई अस्तित्व नहीं दिखता पर यह सर्वाधिक ताकतवर बन जाता है। प्रश्न उठेगा... कब... जो उत्तर जान लें... जब ईश्वर का आशीर्वाद उसके साथ जुड़ जाता है। नहीं समझे... इसी को अनंत कहा जाता है। अपनी आंखें बंद करें तो अनंत का सिंबल आपकी आंखों में तैरने लगेगा...!
सनातन में कहा गया है कि हमारे पास जीवन जीने के केवल दो ही तरीके हैं। पहला, सब कुछ स्वीकार्य है... यानी सब चमत्कार है और दूसरा, यदि स्वीकार्य नहीं है तो ठान लेना... यानी कुछ भी चमत्कार नहीं है...! हम जानते हैं कि श्रीकृष्ण चाहतेे तो महाभारत का युद्ध होता ही नहीं, वह सारे महारथियों का अपने सुदर्शन से सफाया कर सकते थे... इतना ही नहीं बर्बरिक जिन्हें आज खाटू श्याम... और हारे के सहारे... बाबा श्याम... के नाम से दुनिया जानती है, वह भी इतने समर्थ थे कि वह अपने बाण से पूरे युद्ध का नक्शा बदल सकते थे पर हुआ क्या...? सारे महारथियों को नियति ने उनके प्रारब्ध तक पहुंचाया। भगवान कृष्ण ने भी श्रीमद्भगवत गीता में दैवी सत्ता का वर्णन करते हुए निर्भयता को सर्वप्रमुख स्थान दिया है क्योंकि निर्भयता ही वह परमशक्ति है जो मनुष्य को आत्मबल प्रदान करती है...! आतंकियों से डरने की जरूरत नहीं है, खुद को निर्भय बनाएं। याद रखें कि हम सहोदर हैं और तभी दुनिया का सबसे बड़े विचार वसुधैव कुटुंबकम बोले तो सारा संसार एक परिवार...! को मानते हैं। इस लोकाचार से यदि बच्चों को परिचित कराया जाए तो संसार में मानवता के भविष्य पर चिंतन करना सार्थक सिद्ध हो सकता है। समाज की एकता के लिए यह जरूरी अवयव है। इसके विपरीत ईश्वर को महज एक कहने का दंभ भरने वाले मजहबों में यदि मानवता को तरजीह न दी तो निश्चित है कि कट्टरता की वजह से सब लड़ते-लड़ते खत्म हो जाएंगे...!
डॉ., श्याम प्रीति
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