ईशनिंदा.... बात नजरिया बदलने की है...!
#1EK सवाल.. यदि हम आसमान में थूके तो क्या होगा... इसका जवाब है... वह हमारे ही मुंह पर गिरेगा...! इस सच से कोई इनकार नहीं करेगा लेकिन इसके बावजूद ईशनिंदा का मुद्दा हाल के दिनों में गर्म चल रहा है। भाषा कोई भी हो... उसमेें जो भी अक्षर होते हैं, उन्हीं से धर्मग्रंथ लिखे गए हैं और अभद्रता भरे वाक्य भी... केवल शब्दों के सही और गलत इस्तेमाल का फर्क है... बस नजरिये का अंतर है और सारा परिदृश्य बदल जाता है। किसी अखबार... पत्रिका आदि में कई बार इसी प्रकार मानवीय गलती की वजह से वाक्यों में अर्थ का अनर्थ हो जाता है और इसके बाद इस तरह के काम करने वाले कई बार कोपभाजन बनना पड़ता है। मेरा मानना है कि हम सबके भीतर एक आवाज है, जिसे हम दिल की आवाज कहते हैं। उसे सुनना जरूरी है। इसे ना सुनने के कारण ही हमारा और समाज का पतन हो रहा है।
गलत और सही में सही कौन और गलत कौन... इसका फैसला भी कई बार समय करता है। पुराने समय की बात है... एक नाम... गैलीलियो गैलिली.. जन्म इटली में हुआ... ज्ञान की प्राप्ति हुई तो बांटना चाहा- दुनिया को बताया कि ब्रह्मांड में पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं लेकिन चर्च की मान्यता थी कि ब्रह्मांड के केंद्र में पृथ्वी है। सूर्य-चंद्रमा सहित सभी आकाशीय पिंड उसकी परिक्रमा करते हैं। सवाल साख का था... तो गैलीलियो को चर्च ने लाचार कर दिया। सही होने के बावजूद माफी मांगने को कहा गया... उन्होंने माफी भी मांगी और इसके बावजूद कैद में ही उनका जीवन खत्म हो गया। यह ईशनिंदा का मामला भले न था लेकिन... उससे जुड़ा जरूर कह सकते हैं।
अब हाल की बात करते हैं...! एक ही बात तो किसी ने दोहराया... लोगों का नजरिया बदला और उसे गुनाहगार ठहरा दिया गया... ईशनिंदा के तहत अपमान के नाम पर उसकी मौत का परवाना फाड़ा जाने लगा...! उसकी मौत तो नहीं आई लेकिन दूसरे व्यक्ति का गला काट दिया गया। ऐसा काम करने वाले को खुद पर घिन नहीं आई बल्कि वह इसे अपना पराक्रम बताता नजर आया...! हर किताब में हमने पढ़ा है कि ऊपर वाला... करुणा, दया, प्रेम बांटता है लेकिन उसके चाहने वाले इतने निर्मम कैसे हो सकते हैं, यह समझ से परे हैं। मेरी कमीज ज्यादा सफेद है... विज्ञापन में तो अच्छा लगता है आज की यही हकीकत है। ऑफिस में बॉस अपनी हेकड़ी पर चलता है कि वही सही है और कर्मचारी सही होने के बावजूद ... कई बार अपनी ही गलती के लिए सॉरी बोलने के लिए मजबूर होता है।
.... अरे रुकिये साब! बात हो रही थी ईशनिंदा की और हम कहां पहुंच गए...! ईशनिंदा और बॉस निंदा में ज्यादा फर्क नहीं है...! बॉस निंदा जैसे चमचों को बर्दाश्त नहीं होती, वैसे ईशनिंदा कट्टर अनुयायियों को...! हिंदू धर्म में एक प्रसंग है कि वैकुण्ठ लोक पहुंचकर भृगु मुनि ने भगवान श्रीविष्णु के वक्ष पर एक तेज लात मारी। तो वह जाग गए और बोले आपको चोट तो नहीं लगी...! प्रभु श्रीविष्णु इस वार को भी हंसकर सह गए...! यहां तो लोग कुछ कहने पर मरने-मारने पर उतारू हो जा रहे हैं। जैसे लगता है कि मालिक ने उन्हें नहीं रचा, उन्होंने मालिक को रचा हो...! ऊपर वाला मालिक... को आप याद करो, पूजा करो... या कुछ विनय या आलोचना करो... वह जवाब नहीं देता.... बल्कि हर जवाब समय देता है...! समय बोले तो... जो कभी रुकता नहीं है, हर समय चलता रहता है... एक समान भाव से...! अच्छा समय हो तो पता नहीं चलता और बुरा समय काटने को दौड़ता है। यह समय कौन सा है...! आप तय करें... वैसे ही सब कुछ हमारे नजरिये पर निर्भर करता है। नजरिया बदलने की जरूर होती है और सही गलत और गलत सही लगने लगता है...! यकीन न आए तो किसी मुद्दे पर अपनी राय बनाकर देखिए...! आपको मेरी बात पर यकीन आ जाएगा...!Dr. Shyam Preeti
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