भारत जोड़ो यात्रा.... #1EK अच्छा विचार पर कांग्रेस को देख रहे हो ‘पप्पू’...

तारीख 7 सितंबर... राज्यों की संख्या... 12 और दो केंद्र शासित राज्य, शामिल होने वाले लोग ः ‘भारत यात्री’- जो शुरू से अंत तक यात्रा से जुड़े रहेंगे... ‘अतिथि यात्री’- अन्य राज्यों आकर जुड़ेंगे और ‘प्रदेश यात्री’- जहां से यात्रा गुजरेगी, उस राज्य से जुड़ेंगे। यात्रा का रूट... कन्याकुमारी... कोच्चि... बेल्लारी... नादेड़... इंदौर, कोटा.. अलवर... बुलंदशहर... दिल्ली... अंबाला... पठानकोट.. फिर कश्मीर। बीच में कई अन्य राज्य भी शामिल। मुख्य नेतृत्वकर्ता ... राहुल गांधी...।
यह संक्षिप्त बायोडाटा है कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का...! आजादी के 75 साल पूरे होने पर कांग्रेसी 7 सितंबर से भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने जा रहे हैं। कन्याकुमारी से शुरू होकर कश्मीर तक जाने वाली यह यात्रा 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरेगी। पहले इसका शुभारंभ महात्मा गांधी जयंती यानी दो अक्तूबर को करने का निर्णय किया गया था लेकिन बाद में इसके लिए 7 सितंबर का दिन तय किया गया। यह पदयात्रा करीब 3500 किलोमीटर लंबी होगी। लेकिन गुस्ताखी माफ, इसमें राहुल गांधी कितने किलोमीटर तक पैदल चलेंगे... यह गौर करने वाली बात होगी...! संभवतः वह ‘अतिथि यात्री’ के तौर पर यात्रा में हिस्सा लेंगे! कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा.... #1EK अच्छा विचार पर इसमें शामिल होने के लिए कौन-कौन तैयार होगा, यह देखने वाली बात होगा।
बताया जा रहा है कि पूरी यात्रा में शामिल होने वाले ‘भारत यात्री’ कहलाएंगे... एक अच्छा विचार है। इसके अलावा यात्रा में कांग्रेस का झंडा नहीं दिखेगा। इसके बजाए तिरंगा दिखेगा। यह भी अच्छा आइडिया है। यात्रा का मकसद समाज से नफरत खत्म करना बताया जा रहा है और करीब 150 दिनों में इस यात्रा का कश्मीर में समापन होगा...! यात्रा के संबंध में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का बयान काबिलेगौर है। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा बोलने वाली नहीं बल्कि सुनने वाली होगी जहां राहुल गांधी भाषण नहीं देंगे बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों की बात सुनेंगे। राहुल भी फरमाते हैं- 'एक तेरा कदम, एक मेरा कदम मिल जाए तो जुड़ जाए अपना वतन, आओ साथ मिलकर भारत जोड़ें।'
गुस्ताखी माफ...! अब मुद्दे की बात कहता हूं... कांग्रेस ने पहल तो अच्छी की है लेकिन यह भी सच है कि पार्टी अपने ही नेताओं को एकजुट रख नहीं पा रही और देश में एका लाने की बात करना कहां तक उसे सफल करेगा, यह समय ही बताएगा। हाल के दिनों में कई कांग्रेसी गुलाम.... पार्टी से ‘आजाद’ हो चुके हैं और कई ‘स्वतंत्र’ होने की ताक में बैठे हैं। मुझे क्षमा करें, राहुल गांधी हाथों की बाह को चढ़ाते हुए एंग्री मैन दिखते जरूर हैं पर राजनीति के धरातल पर कागजी शेर ही साबित होते हैं...! भाजपा के अच्छे दिनों के नारे पर राहुल ने सवाल उठाए पर नतीजा क्या रहा.. सब जानते हैं। राहुल के तंज का मोदी जी जवाब जल्दी नहीं देते हैं.. लेकिन जब देते हैं तो राहुल की आह... निकल आती है। अपनी याद के आप भी घोड़े दौड़ाएं... ऐसे तमाम वाक्ये याद जरूर आ जाएंगे। इन्हीं हालातों में राहुल गांधी को तमाम लोग प्यार से ‘पप्पू’ भी कहते हैं! अब देखना है कि इस बार वह पास होते हैं या...! अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस में मगजमारी चल रही है और कांग्रेस की कलह सबके सामने खुलकर आ रही है। हाथ का पंजा कमजोर नजर आ रहा है... उसे एकजुटता के प्रोट्रीन चढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है लेकिन डॉक्टर नहीं मिल रहा है।
अब कांग्रेस की इस यात्रा के रूट पर गौर फरमाते हैं। कन्याकुमारी से कश्मीर तक... का सफर लगभग भारत के बीच से होकर गुजर रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक कहने में जुमला बहुत अच्छा लगता है पर भारत विविधताओं भरा मुल्क है... यहां कहा जाता है कि कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी...! ऐसे में भारत की दाहिनी और बाई भुजा पर कांग्रेस ने कोई ध्यान न देकर कुछ ‘छोड़-सा’ दिया लगता है। साथ चलेंगे... देश जोड़ेंगे स्लोगन बहुत अच्छा है लेकिन जनता को जोड़ने के लिए धरातल पर उतरना पड़ता है। उसके कंधे से कंधा मिलाकर पसीना बहाना पड़ता है। यह कोशिश भी ऐसी ही लग रही है लेकिन सफलता कितनी हो सकेगी... यह वक्त बताएगा। किसी आयोजन के लिए भीड़ जुटाना उसे साथ बनाए रखने से ज्यादा आसान माना जाता है। चुनावों के दौरान होने वाली राहुल जी की जनसभा में भीड़ उमड़ती जरूर दिखती है पर वोट देते समय वह नजर नहीं आती।
फिलहाल देश में सबसे मजबूत राजनीतिक विरासत वाली कांग्रेस इस समय कमजोर हो गई है। सच यही है लेकिन इसे स्वीकारने का माद्दा किसी कांग्रेसी में नहीं दिखाई देता। यदि खुद को पता हो कि वह बीमार है तो दवा करने के लिए खुद को तैयार करना पड़ता है लेकिन यहां इस सच को स्वीकारने को कोई तैयार नहीं है। चुनाव आते हैं तो बड़े-बड़े दावे किए जाने लगते हैं और नतीजा जब टांय-टांय फिस्स हो जाता है तो कहा जाता है कि जैसी जनता की इच्छा...! हम दोबारा मेहनत करेंगे। लगता है कि कांग्रेस के ग्रह-नक्षत्र खराब चल रहे हैं या कोई और बात... कांग्रेस भाजपा के हमलों से उबर नहीं पा रही है। उसका चुनाव चिह्न हाथ का पंजा है और इसके बावजूद कांग्रेसी हाथ को मुट्ठी बना पाने में कामयाब नहीं हो पा रहे, यह चिंता का विषय है। राहुल गांधी जादूगर जैसा भेष बना सकते हैं पर जादू की छड़ी तो जनता के पास ही है। वह चाहेगी तभी कांग्रेस फिर से सत्ता में लौटेगी। सच यह भी है कि लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष होना अच्छा माना जाता है और ऐसे हालात में कांग्रेस का मजबूत की जगह मजबूर होना... बड़ा हास्यापद लगता है।
पराजय के बाद वैसे भी अच्छे अच्छों का मनोबल टूट जाता है लेकिन राहुल बाबा लगातार जूझ रहे हैं। यह उनका पॉजिटिव नजरिया सच में प्रेरणादायक कहा जा सकता है। लेकिन यह भी सच है कि  एक अच्छा राजनेता वही होता है जो हमलावर कब बनना है, यह समझे और कब हमला झेलना है। यह बात राहुल जी जैसे ही सीख जाएंगे... वैसे ही कांग्रेस का बुरा दौर खत्म हो जाएगा... लेकिन यह दूर की कौड़ी लगती है...। गुस्ताखी माफ... राहुल जी को तमाम लोग प्यार से ‘पप्पू’ कहते हैं! लंदन में वह सूट-बूट में अपने पिता राजीव गांधी की याद दिलाते हैं लेकिन देश में कुर्ता पहने नजर आते हैं। विदेश में दाढ़ी साफ होती है और देश में चेहरे पर थकावट साफ नजर आती है...। अब राहुल जी भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से कितने भारतीयों को कांग्रेसी बना पाएंगे...लेकिन इससे पहले सवाल यह है कि कितने कांग्रेसी कांग्रेस में रह जाएंगे... आजाद के बाद राज बब्बर भी भाजपा की तारीफ कर रहे हैं और कई कमल के मोहपाश में नजर आ रहे हैं... नामों का खुलासा धीरे-धीरे होगा। हम भी देखेंंगे कांग्रेस की कलह क्या गुल खिलाती है। हम‌ फिर मिलते हैं #1EK ब्रेक के बाद...! Dr. Shyam Preeti

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