#1EK हिंदी ......और दो दिवस....

नंबर-1 भाषा अंग्रेजी है... और नंबर-दो मंदारिन बोले तो चीन की भाषा लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदी कहां पर है? नहीं तो हम आपको बताते हैं कि आज विश्व में हिंदी तीसरे नंबर पर पहुंच चुकी है। इस आंकड़े पर हम इतरा सकते हैं क्योंकि हिंदी हमारी भाषा होते हुए भी हमारे देश भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है लेकिन इसके बावजूद इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। #1EK हिंदी है लेकिन उसे याद करने के लिए दो दिवस मनाए जाते हैं।
पहला 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस और दूसरा 14 सितंबर को हिंदी दिवस। यह हैरान होने वाली बात नहीं है... यह गर्व का विषय है। गौरतलब है कि संविधान सभा ने 14 सितंबर को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया था, तभी से 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इसी दिन 1949 को भारत की संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी को भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया, जो ब्रिटिश भारत में उर्दू के पिछले उपयोग की जगह ले रही थी। इसी प्रकार प्रथम विश्व हिंदी सम्मलेन 10 जनवरी 1975 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। यह सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय स्तर का था, जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इस सम्मेलन का उद्देश्य हिंदी का प्रसार-प्रचार करना था। तब से विश्व हिंदी दिवस इसी तारीख यानी 10 जनवरी को मनाया जाने लगा। इतिहास के पन्ने पलटे तो हमें पता चलता है कि 1950 में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया। आज विश्व में 60 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इतना ही नहीं 176 विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा पढ़ाई जा रही है। दो दर्जन देशों में हिंदी का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है। जहां तक युवाओं की बात करें तो एक सर्वे के अनुसार, करीब 93 प्रतिशत युवा हिंदी यूट्यूब पर हिंदी में वीडियो देखते हैं। इतना ही नहीं करीब 94प्रतिशत की दर से डिजिटल मीडिया में हिंदी सामग्री की मांग बढ़ रही है। हिंदी के प्रचार-प्रसार में सिनेमा और मीडिया का योगदान किसी से छिपा नहीं है। जैसे राज कपूर का रूस में चर्चा पाना रहा हो या बाद के वर्षों में चीन में हिंदी फिल्मों का पहुंचना। विदेशों में अब हिंदी फिल्म स्टार के चाहने वालों की संख्या बहुत है। यही वजह है कि हिंदी फिल्में बेहतर व्यवसाय कर रही हैं। सच है किपहले हिंदी फिल्मों और अब संचार माध्यमों खासकर सोशल मीडिया,टेलीविज़न के धारावाहिकों, वेब सीरिज आने के बाद हिंदी का तीव्र विकास हुआ है। यह बात और है कि हिंदी की भाषा में शुद्धता की बात पर यदि गंभीर बहस की जाए तो यह बात बेमानी लगेगी लेकिन सागर में कितनी नदियां मिलती है, यह वह भी जानना नहीं चाहता और शायद इसी वजह से वह असीमित दिखता है...। ऐसा ही कुछ हमारी हिंदी के साथ भी है। हिंदी सही मायने में भाषा का सागर बन गई है और ऐसे में उसे शुद्धता के पैमाने पर मापना कहां तक जायज है, यह आप स्वयं सोचिए। हमारे मुल्क की बात की जाए तो कहा जाता है कि कोस-कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी यानी हमारे भारत में हर #1EK कोस की दूरी पर पानी का स्वाद बदल जाता है और चार कोस पर भाषा अर्थात वाणी। ऐसे में हरेक व्यक्ति को अपनी भाषा का सम्मान करना चाहिए। चूंकि भारत विविधता भरा देश है, ऐसे में हिंदी के तमाम रूप देखने को मिल जाते हैं। जहां तक व्याकरण की बात है तो साहित्यकार इसकी शुद्धता पर मंथन करें... अपनी किताबों में इसका प्रयोग करें अथवा अखबार आदि माध्यम इस पर सचेत रहे, समझ आता है लेकिन आम जनमानस को इससे फर्क नहीं पड़ता क्योंक‌ि वह स्वतंत्र है...! हिंदी हमारी आन है... हमारी शान है क्योंकि इसमें जान है। कहते हैं कि हिंदी जैसी बोली जाती है, वैसी ही लिखी जाती है। मेरा अपना मानना है कि हिंदी को शुद्धता के चक्कर में बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता है जबकि यह हर भाषा के खुद में समाहित करती जा रही है और तभी शायद इसकी लोकप्रियता दिनोदिन विश्वस्तर पर बढ़ रही है। हिंदी में देशज, विदेशज और स्थानीय शब्दों का जो पुट देखने को मिलता है, वैसा अन्य भाषाओं में जल्दी संभव नहीं हो पाता, और यही वजह है कि हिंदी सर्वश्रेष्ठ बनने की अग्रसर है...। विदेशज शब्द वे शब्द होते हैं जो विदेशी भाषाओं से निकलकर हमारी हिंदी भाषा में शामिल होते गए और देशज देश की अन्य-अन्य बोलियों से आए शब्द हैं। स्थानीय शब्द अपभ्रंश के चलते रूप बदलते गए। मेरा स्पष्ट मानना है कि जैसे हम कहते हैं वसुधैव कुटुबंकम... तो यह क्षमता सिर्फ हिंदी में है कि इसे फलीभूत कर सके। तथास्तु। Dr. Shyam Preeti

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