चर्चा में भारत का #1EK राजदंड बोले तो #सेंगोल

प्राचीन भारत की कहानियों में राजदंड की चर्चा मिलती रही है लेकिन आधुनिक भारत में भी भारत का #1EK राजदंड बोले तो #सेंगोल इस समय जबरदस्त ट्रेंड कर रहा है। दरअसल, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्वतंत्रता के एक 'महत्वपूर्ण ऐतिहासिक' प्रतीक के तौर पर #सेंगोल (राजदंड) की प्रथा को पुनः शुरू करने की भी घोषणा की है।
उनका कहना है यह अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक रहा है। नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु से #सेंगोल प्राप्त करेंगे और वह इसे नए संसद भवन के अंदर रखेंगे। इसे स्पीकर की सीट के पास रखे जाने की तैयारी है। उनका कहना है कि नया संसद भवन हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का सुंदर प्रयास है। इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा- 'इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान कोई हो ही नहीं सकता इसलिए जब संसद भवन देश को समर्पण होगा, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी बड़ी विनम्रता के साथ तमिलनाडु से आए अधीनम (तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित धार्मिक मठ) से सेंगोल को स्वीकार करेंगे।' उन्होंने यह बताया कि #सेंगोल महत्वपूर्ण है। इतिहास के पन्नों के अनुसार, #सेंगोल तमिल भाषा के शब्द 'सेम्मई' से निकला शब्द है। इसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा। इस प्रकार कह सकते हैं कि प्राचीन समय में #सेंगोल बोले तो राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था। #सेंगोल को संस्कृत के संकु से लिया गया #सेंगोल को संस्कृत के संकु शब्द से लिया गया है। इसका अर्थ शंख होता है। #सेंगोल भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक माना जाात था। यह सोने या फिर चांदी के बने होते हैं, जिसे कीमती पत्थरों से सजाया जाता था। #सेंगोल का सबसे पहले इस्तेमाल मौर्य साम्राज्य में किया गया था। इसके बाद चोल साम्राज्य और गुप्त साम्राज्य में इसका प्रयोग किया गया। इसका इस्तेमाल आखिरी बार मुगल काल में किया गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी भारत में अपने अधिकार के प्रतिक के रूप में इसका इस्तेमाल किया गया था। सेंगोल के इतिहास की जानकारी देते हुए गृहमंत्री ने बताया कि 14 अगस्त 1947 को 10:45 बजे के करीब जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से इस #सेंगोल को स्वीकार किया था। यह अंग्रेजों से इस देश के लोगों के लिए सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था। उन्होंने बताया कि इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और इसे नए संसद भवन में ले जाया जाएगा। गौरतलब है कि भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को किया जा रहा है। अमित शाह ने बताया कि सेंगोल जिसे दिया जाता है उससे न्यायसंगत और निष्पक्ष शासन प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है। भारत की स्वतंत्रता के समय इस पवित्र सेंगोल को प्राप्त करने की घटना को दुनियाभर के मीडिया ने व्यापक रूप से कवर किया था। जानकारी के मुताबिक, भारत को स्वर्ण राजदंड मिलने के बाद कलाकृति को एक जुलूस के रूप में संविधान सभा हॉल में भी ले जाया गया था। माउंटबेटन को 'राजाजी' ने समझाया था सेंगोल का महत्व अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण के समारोह पर चर्चा के दौरान, वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से एक प्रश्न किया। माउंटबेटन ने प्रतीकात्मक समारोह के बारे में जानकारी ली। इसके लिए नेहरू ने सी. राजगोपालाचारी (राजाजी) से सलाह मांगी। राजाजी ने चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के मॉडल से प्रेरणा लेने का सुझाव दिया। दरअसल, चोल वंश में एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता सौंपते वक्त शीर्ष पुजारियों का आशीर्वाद दिया जाता था। राजाजी के अनुसार, चोल काल में एक राजा से उसके उत्तराधिकारी को सेंगोल का प्रतीकात्मक हस्तांतरण शामिल था। #सेंगोल को अधिकार और शक्ति के प्रतीक माना गया। राजाजी ने तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित एक धार्मिक मठ, थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया। अधीनम मठ से जुड़े संस्थान हैं जो भगवान शिव की शिक्षाओं और परंपराओं का पालन करते हैं। 500 से अधिक वर्षों से लगातार काम कर रहे थिरुववदुथुरै अधीनम का अधीमों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी विशेषज्ञता और न्याय और धार्मिकता के सिद्धांतों के गहरे जुड़ाव को स्वीकार करते हुए, राजाजी ने सेंगोल की तैयारी में उनकी सहायता मांगी। इस प्रकार तिरुवदुथुराई अधीनम के शीर्ष पुजारी द्वारा एक सेंगोल को बनाया गया जिसकी लंबाई लगभग पांच फीट थी। विशेष रूप से, इसके शीर्ष पर स्थित नंदी प्रतीक था जो न्याय और निष्पक्षता को दर्शाता है। सेंगोल को तैयार करने का काम चेन्नई के जाने-माने जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को सौंपा गया था, जिनको इस क्षेत्र में महारत हासिल थी। सेंगोल के निर्माण में शामिल और वुम्मिदी परिवार के दो सदस्य वुम्मिदी एथिराजुलु (96 वर्ष) और वुम्मिदी सुधाकर (88 वर्ष) आज भी जीवित हैं। इसका तमिल चोल साम्राज्य से क्या वास्ता है? चोल काल के दौरान, राजाओं के राज्याभिषेक समारोहों में सेंगोल का अत्यधिक महत्व था। यह एक भाले या ध्वजदंड के रूप में कार्य करता था जिसमें बेहतरीन नक्काशी और जटिल सजावट होती थी। सेंगोल को अधिकार का एक पवित्र प्रतीक माना जाता था, जो एक शासक से दूसरे शासक को सत्ता के हस्तांतरण के रूप में सौंपा जाता था। चोल राजवंश वास्तुकला, कला और साहित्य और संस्कृति के संरक्षण में अपने असाधारण योगदान के लिए प्रसिद्ध था। सेंगोल चोल राजाओं की शक्ति, सच्चाई और संप्रभुता के प्रतीक चोल शासनकाल के एक प्रतिष्ठित प्रतीक के रूप में उभरा। वहीं समकालीन समय में, सेंगोल को अत्यधिक सम्मानित किया जाता है और गहरा सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह विरासत और परंपरा के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित है, जो विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, त्योहारों और महत्वपूर्ण समारोहों के अभिन्न अंग के रूप में कार्य करता है। Dr. Shyam Preeti

Comments

Popular posts from this blog

#1EK फिल्म 'द केरल स्टोरी' ....

चर्चा का बाजार गर्म हो गया.... हिंदी का महज #1EK शब्द ‘भारत’ लिखा तो...

चंद्रयान #1EK से अब चंद्रयान-3 तक का रोमांचक सफर