नेता, न्यूज एंकर और मोबाइल.... तीनों ढपोरशंख के भाई

आभासी दुनिया के धुरंधरों, अर्जुन और बिना गुरु के एकलव्यों...! आप सभी को मेरा राम-राम, सलाम और सश्रियकाल... बोले तो जयहिंद इंकलाब...! मैं हूं खुराफातीलाल।
तो हे पार्थ...! मैं ढपोरशंख... नाम तो सुना होगा आपने...! नहीं सुना तो जान लें मेरे बारे में... “अहम् ढपोर शंखनम् वदामि च ददामि न... अर्थात मैं ढपोर शंख... समय की भांति महज सुनाता भर हूं क्योंकि मैं #1EK विचार हूं... इसलिए मुझे सुनकर आप सोचिएगा जरूर। हे पार्थ...! मेरा परिचय जानने के बाद आप मेरे संबंधियों के बारे में जानना चाहेंगे तो कान खोलकर और दिमाग सि्थर कर सुनिए ढपोरशंख की वाणी...! नेता, न्यूज एंकर और मोबाइल... तीनों मुझ नाचीज के हैं छोटे भाई और हमारी इकलौती बहन है आम जनता, लेकिन उसका घनत्व कुछ ज्यादा ही है। रक्षाबंधन हो या भाईदूज वह हमेशा हमारा सम्मान करती है और हम भी उसे बहुत प्यार करते हैं। हमेशा उसे आश्वासन के झूलों में झुलाते रहते हैं...! लेकिन वह कभी भी हमें प्यार करना नहीं छोड़ती क्योंकि वह हम पर विश्वास करती है और हम भी उसी के सहारे चल रहे हैं। अपने छोटे भाइयों के साथ मैं ढपोरशंख शपथपूर्वक कहता हूं कि आम जनता के बिना हम कुछ भी नहीं हैं। भाई बहन की रक्षा के लिए होते हैं तो हम भी उसकी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन क्या करें यह हमारा स्वभाव ढोल की तरह है। ढोल जो भीतर से खोखला होता है और तभी वह आवाज बहुत करता है। इसी वजह से हम चारों भाई बोले तो मैं ढपोरशंख, नेता, न्यूज एंकर और मोबाइल अपने काम की तुलना में ज्यादा बोलते हैं लेकिन क्या करें, कंट्रोल करने की कोशिश कर नहीं पाते। इस अक्षम्य अपराध के लिए हम गाहे-बगाहे अपनी बहन आम जनता से माफी मांगते रहते हैं। उसका दिल भी बहुत बड़ा है, वह हमेशा हम चारों को माफ भी कर देती है। ढोल की पोल कहावत का अर्थ है... दिखने में ठोस नहीं पर आवाज में है जोर... कुछ ऐसा ही हाल हम चारों भाइयों का है। सबसे पहले नेता भाई के बारे में आपको बताता हूं। वह चुनावों के दौरान खूब वायदे करते हैं लेकिन फिर सब भूल जाते हैं। आश्वासन की घुट्टी यूं पिलाते हैं कि सामने वाला फूल कर गुब्बारा बन जाता है और हवा में उड़ने लगता है। जब उसकी हवा निकलती है तो... टांय-टांय फिस्स...! इनकी सबसे बड़ी खूबी है... अपने विपक्षी सहोदरों की बुराई करना... लेकिन समय देख... शर्तें लागू हैं... क्यों... इस क्षेत्र के महारथी किसी के दुश्मन नहीं होते... कभी दोस्त दुश्मन और दुश्मन दोस्त बन जाएं... कुछ कहा नहीं जा सकता। इनका कद ऊंचा हो या ना हो... सोच जरूर ऊंची होती है। इनका फेवरेट कलर हैं ह्वाइट बोले तो सफेद... तो आगे आप समझदार हैं कि क्यों इन पर बहुत जल्दी दूसरों का रंग चढ़ जाता है। जाति-धर्म से ये ऊपर हैं... विदेशी हो या देसी... किसी से प्यार का गठबंधन कर सकते हैं... कुल मिलाकर कहूं तो दिल के साथ यह दल भी मिलाने की कला के ये महारथी हैं। लेकिन आम जनता को कुछ भी देने से पहले उनका वोट मांगना नहीं भूलते... क्योंकि ये प्रोफेशनल भिखारी हैं। दूसरे भाई साहब हैं... न्यूज एंकर... हकीकत की बात करें तो वह बकर-बकर बहुत करते हैं लेकिन जानता बस रत्ती भर हैं। जब आम जनता के साथ बैठते हैं तो उनसे किसी भी मुद्दे पर बात करिए... वह ज्ञाता बनने का ढोग करते नजर आते हैं... अपनी बात को मनवाने के लिए चिल्लाना उनका सबसे बड़ा हथियार है। इसे उनका ढोग, दंभ या पाखंड आप कुछ भी कह सकते हैं... यह आपका अधिकार क्षेत्र है। उनके लिए साफ कहूं तो करते हैं बकर-बकर पर नतीजा रहता है सिफर बोले तो शून्य। लेकिन क्या करें सगे भाई हैं... इसलिए ज्यादा बुराई नहीं कर सकता। अपने चैनल को नंबर-एक बनाने के लिए ये कितना चिल्लाते हैं कि कई बार इनका भी सिर दर्द करने लगता है लेकिन सामने कैमरा हो तो... अच्छे से अच्छा आदमी भी मुंह नहीं बना सकता... तो ये कैसे करें। ज्ञान देने मेें इनका कोई सानी नहीं है... और आम जनता को ये गोरू बोले तो जानवर समझते हैं... उनको समझाते रहते हैं...। इनके यहां होने वाले बहस के प्रोग्रामों में बहस कम झगड़ा ज्यादा दिखाई पड़ता है... लगता है कि ये आम जनता को समझाने नहीं लड़वाने बैठे हैं...। ये भी क्या करें... धंधा है... टीआरपी बटोरनी है तो टांय-टांय करनी मजबूरी है... लड़ाई से टीआरपी मिलती है और टीआरपी से बिजनेस.. बोले तो माल। चौथे भाई सब कुछ साल पहले ही जन्म लेकर संसार में अवतरित हुए लेकिन दिन दूनी और रात चौगुनी रफ्तार से इनकी लोकप्रियता बढ़ गई है। अब तो हर हाथ में किस्मत की लकीरों के साथ इनकी कुछ ऐसी जुगलबंदी बन गई है कि लगता है कि अंगुलियों के साथ इनका चोली-दामन जैसा साथ लगता है। गप्प हांकने में इनके जैसे दुनिया में अतिरथी ढूंढने से भी न मिलेगाा। आम जनता भी सबसे ज्यादा इसे ही प्यार करती है। ये भी उस पर अपना प्यार और दुलार लुटा रहे हैं.... नतीजा... सबसे ज्यादा आम जनता इन्हीं के गुण गा रही है। एक समय था जब किसी के सामने सिर झुकाना शान के खिलाफ समझा जाता था लेकिन आज मोबाइल भइया के सामने हर कोई अपना सिर नवाता है। बड़े पर्दे की हेकड़ी मोबाइल भइया ने निकाल कर रख दी है। कई सिनेमा हाल तो कैंसरग्रस्त हो कर निपट गए और कई को टीबी हो गया है, वे भी जल्द इतिहास बन जाएंगे। एक समय घर लोगों से भरा होता था और अब घर में लोग रहते हैं लेकिन सभी अपने-अपने मोबाइल में बिजी हैं। अंगूठे की वैल्यू बढ़ गई है और उंगलियां दर्द कर रही हैं पर क्या करें... कंट्रोल नहीं होता। यह ऐसी किताब है, जो कभी खत्म नहीं होती... केवल खराब होती है। और कहीं बैट्री खत्म हो जाए तो... लोग अपनी कम... बैट्री की ज्यादा चिंता करते हैं। इसे फुल करवाने के लिए किसी के सामने हाथ जोड़कर भीख तक मांग सकते हैं... यकीन न हो... आजमा लें... बस एक चार्जर लेकर कहीं भी आया जाया करें... मोबाइल वाले भिखमंगे आपको जरूर मिल जाएंगे... या आप भी भिखमंगे बनकर किसी से चार्जर मांगते नजर आ सकते हैं। अब मैं अपनी क्या कहूं... मैं ढपोरशंख... दुनिया मुझे अज्ञानी समझती है... जो मैं हूं भी क्योंकि मैं ज्यादा सरल हूं। लोग कहते हैं कि मैं ज्ञान बहुत बघारता हूं। जो सत्य है... यह मेरा स्वभाव है। लोग मानते हैं कि मेरी बातों में कोई सार नहीं है और जब मैं बोलना शुरू करता हूं तो बोलता चला जाता हूं। यह भी सत्य है...! अपनी हर कमी मैं स्वीकारता हूं क्योंकि मैं सत्यवादी हूं और सबसे बड़ा तो सत्य को ही कहा गया है। ढपोरशंख की वाणी... आपको कैसे लगी... कमेंट्स जरूर करें। Dr. Shyam Preeti

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